नई दिल्ली. पशुओं को सूखे के दौरान हरा जब उपलब्ध नहीं हो पाता है तो पशुपालक साइलेज खिलाते हैं. हालांकि को बनाना और फिर स्टोर करना इतना आसान नहीं है. हालांकि साल 2017 कॉर्नेक्स्ट स्टार्टअप की ओर से लॉन्च किया गया MSB500 AT Pro यानि साइलेज बेलर को कॉर्नेक्स्ट ने बनाया. ये स्वदेशी साइलेज बेलर मशीन यूरोपीय बेलर के मुकाबले काफी कम लागत वाली है और काफी प्रभावी भी है. वहीं सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि साइलेज बेलर ने सभी समस्याओं का समाधान करते हुए 50-60 किलोग्राम के आकार की गांठें बनाईं, जिसे आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाया जा सकता है. बताते चलें कि यह अपनी तरह की पहली मशीन थी जिसे भारत में पेटेंट हासिल हुआ था.
कॉर्नेक्स्ट के फाउंडर फिरोज ने बताया कि साइलेज उत्पादन में पिछले वर्षों के अनुभव ने हमें इसका बहुत महत्व सिखाया है. डेयरी सेक्टर को नई मंजिलों पर ले जाने के लिए रसद लागत को नियंत्रित करना चारे की कमी को दूर करना बेहद ही अहम है. कॉर्नेक्स्ट अकेले इस समस्या का हल नहीं कर पाता, इसलिए सस्ते साइलेज बेलर की जरूरत थी. जिसका निर्माण कंपनी तरफ से किया गया. उन्होंने कहा कि अगर इसकी कीमत की बात की जाए तो MSB500 AT Pro की कीमत एक आयातित बेलर के 1/10वें हिस्से से भी कम होने की वजह से काफी अच्छी है.
चारा उद्यमी कौन है?
ये मशीन आस-पास के क्षेत्रों में रसद लागत और अधिक किफायती बनाती है. डेयरी किसान के के लिए ये बेहतरीन इनोवेश है. जबकि देशभर में इससे साइलेज के बारे में जागरूकता और अपनाने में तेजी लाने में भी मदद मिली है. चारा उद्यमी (एफई) वह व्यक्ति होता है जो बेलिंग तकनीक में निवेश करता है. साइलेज गांठों का उत्पादन करके चारे को संरक्षित करना, डेयरी फार्मों काो उपलब्ध कराना है. वहीं इन चीजों के संचालन के लिए बीओपी संसाधनों को नियोजित करना, साथ ही कच्चे माल की सीधे सीमांत किसानों से खरीद शामिल है.
हमें चारा उद्यमियों की आवश्यकता क्यों है?
उन्होंने बताया कि हमें यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि हमारे नेटवर्क में वर्तमान में 250 से अधिक बेलिंग इकाइयां हैं. देश, लेकिन अभी भी विकास और विस्तार की जबरदस्त गुंजाइश है. औसत परिवहन दूरी को 100 किलोमीटर से कम करने के दृष्टिकोण को साकार करें. हमें हर 100 किलोमीटर पर एक उत्पादन बिंदु की जरूरत है. यह सीमांत किसानों (जो) के लिए बेलेड साइलेज को सुलभ बनाने में महत्वपूर्ण बन जाएगा. भारत में डेयरी फार्मिंग समुदाय का बहुमत ऐसा है जो इसका खर्च वहन नहीं कर सकता है. इसलिए उन तक इसकी पहुंच जरूरी है.
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