नई दिल्ली. पशुओं को सबसे ज्यादा बीमारियों से बचाने की जरूरत होती है. क्योंकि पशुओं को बीमारी से बहुत परेशानी होती है और इसका असर उत्पादन पर पड़ता है. अगर पशु बीमार पड़ जाएं तो पशुपालकों को हर तरह से नुकसान ही नुकसान उठाना पड़ता है. चाहे वो पशुओं के उत्पादन पर पड़े असर से हो, या फिर पशुओं की बीमारी पर होने वाला अतिरिक्त खर्च हो. इसलिए पशुओं को बीमारी से बचाना चाहिए और अगर इसमें पशुपालक कामयाब हो गए तो फिर प्रोडक्शन भी बेहतर रहता और कमाई भी ज्यादा होती है.
यहां हम पशुओं को होने वाले गिलटी रोग और वाईलेरियोसिस जो एक प्रोटोजोआ से होने वाली बीमारी के बारे में बताने जा रहे हैं. अगर आप भी इन बीमारियों के लक्षण इससे रोकथाम और इस बीमारी के होने से क्या होता है, जानना चाहते हैं तो पूरी खबर पढ़ें.
गिलटी रोग
- एक खतरनाक बैक्टीरियल बीमारी है जो सभी खेतिहर पशुओं को प्रभावित करती है.
- उच्य बुखार, बसन में कठिनाई, प्राकृतिक छेद से खून बहना और अचानक मौत इस बीमारी के खास लक्षण हैं.
- बैक्टीरिया से गंदा चारा व दाना के खाने से यह रोग पनपता है. इस बीमारी के बैक्टीरिया जमीन में 30 साल तक जिंदा रह सकते हैं.
- शुरुआती अवस्था में इलाज किया जाए तो प्रभावी होता है, नहीं तो पशु की मौत हो सकती है.
- इंसानों में संक्रमण बिना पके मांस के खाने से, संक्रमित पशु के संपर्क में आने से हो सकता है.
रोकथाम कैसे करें
- विशेष क्षेत्र में पशुओं के नियमित सालाना टीकाकरण से इस बीमारी को रोका जा सकता है.
- इस रोग होने के कम से कम से कम एक माह पहले ही टीकाकरण करवा देना चाहिए.
- गिलटी रोग से मरे हुए पशु के शव को काट कर कभी भी खोलना या देखना नहीं चाहिए.
- यदि बीमारियों के लक्षण दिखाई दें तो अपने पशु विकित्सक से संपर्क कर रोग नियंत्रण विधियों के बारे में सलाह लें.
वाईलेरियोसिस बीमारी
- युवा संकर विदेशी गाय ज्यादा संवेदनशील होती हैं. गाय की भारतीय नस्ल (जेबु) अपेक्षाकृत रोग प्रतिरोधी हैं.
- बुखार, श्लेष्मा झिल्ली का फीका पड़ना, खून बहना, नाक से पानी आना, पीलिया, लार गिरना, पानी भरी आखें आदि लक्षण दिखई देते हैं.
- गाय का स्वास्थ्य तेजी से गिरता है. पशु पैर मारते हैं. सिर टकराते हैं, लेटे रहते हैं और जल्दी मौत हो जाती है.
रोकथाम और उपचार
- चिचड़ियों का नियमित नियंत्रण इन संक्रमणों को दूर रखने का सबसे अच्छा तरीका है. यदि इन बीमारियों में उपरोक्त लक्षण दिखाई दें तो पशु चिकित्सक से उपचार कराएं.
- क्योंकि उपचार शुरुआती अवस्था में ज्यादा प्रभावी होते हैं. उपचार में देरी से पशु की मौत हो सकती है.
- धाइलेरियोसियस के नियंत्रण के लिए सभी विदेशी व संकर नस्ल के पशु जिनकी आयु 3 माह व उससे अधिक है उसको जीवन में एक बार टीकाकरण कराएं.
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