Home पशुपालन Goat Farming: इन 5 वजहों से बकरी पालन में कम दिलचस्पी दिखाते हैं किसान, पढ़ें यहां
पशुपालन

Goat Farming: इन 5 वजहों से बकरी पालन में कम दिलचस्पी दिखाते हैं किसान, पढ़ें यहां

स्वस्थ भेड़-बकरी की पहचान ये है कि उनकी आंखें एकदम से चमकीली लाल-गुलाबी होती हैं. दूसरी ओर जब उनके पेट में हिमोकस है तो आंख हल्की गुलाबी हो जाती है.
प्रतीकात्मक फोटो: livestockanimalnews

नई दिल्ली. बकरी पालन करके खूब कमाई की जा सकती है. बकरी अब सिर्फ गरीबों का पशु नहीं है, बल्कि इसे बड़े पैमाने पर भी किया जा रहा है. इसलिए बकरी पालन करके अब बहुत से लोग लाखों और करोड़ों कमा रहे हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि बकरी पालन वैसे तो अच्छा व्यवसाय है लेकिन कुछ ऐसी वजह है, जिसके कारण बकरी पालन का विकास नहीं हो पा रहा है. जबकि सरकार भी चाहती है कि हर तरह के पशुपालन से किसान अपनी इनकम को बढ़ाएं और देश की तरक्की में हाथ बटाएं.

गोट एक्सपर्ट मनोज कुमार सिंह का कहना है कि बकरी पालन गरीब ग्रामीणों, खेतीहर मजदूरों, लघु एवं सीमांत किसानों तथा महिलाओं की आय का प्रमुख जरिया है लेकिन कुछ कारणों से भारत में बकरी पालन का उतना विकास नहीं हो पा रहा है जितना होना चाहिए. उन्होंने कहा कि समझ के मुताबिक 5 कारण मुख्य हैं, जिसकी वजह से बकरी पालन उतना तेजी से नहीं हो रहा है, जितनी तेजी से होना चाहिए.

बकरियों को लेकर फैलाया गया है ये झूठ
बकरियों को गरीबी की पहचान माना जाता रहा है साथ ही बकरियों को पर्यावरण के लिए नुकसानदेह और भूमि बंजर करने वाला पशु माना जाता रहा है. जबकि ये झूठ है. यही वजह है कि इसको लेकर जागरूकता फैलाने की जरूरत है.

आवश्यक जानकारी न होना
बकरियों को आमतौर पर बंजर हुए चारागाहों में चराकर पाला जाता है. उनका प्रोडक्शन उम्र, और नस्ल आदि का ध्यान नहीं रखा जाता है. कुपोषण से ग्रसित बकरियों की उत्पादकता घट जाती है. समुचित आवास एवं रक्षक टीकों के अभाव में मृत्युदर 50 प्रतिशत तक पहुँच जाती है.

बीजू बकरों का भारी कमी
क्षमता वाले नर मेमनों को खस्सी कर दिया जाता है. इसके चलते कम उत्पादन क्षमता वाले बीजू बकरे निगेटिव योगदान कर रहे हैं. साथ ही एक बकरे को रेवड़ या गांव में 3-5 वर्ष तक इस्तेमाल किया जाता है. उसी बकरे विशेष के बच्चों को फिर उसी रेवड़ में बीजू बकरे के रूप में उपयोग में लाया जाता है.

बकरी एवं बकरे उत्पाद खरीद और बिक्री
चूंकि बकरी गरीबों द्वारा पाली जाती है. इसलिए स्ट्रेस सेल आर्थिक तंगी होने से बकरियां बहुत कम मूल्य पर बिचौलियों के हाथ बिक जाती हैं. बकरी का दूध में बहुत औषधीय गुण होते हैं. फिर भी बकरी के दूध का बाजार मूल्य गाय-भैंस के दूध की तुलना में लगभग आधा रहता है.

मदद का प्रोसेस है कॉम्पिलीकेटेड
बकरी पालकों की मदद करने वाली संस्थाओं की जटिल प्रक्रिया वित्त प्रदान करने वाली संस्थाओं की प्रक्रिया इतनी कॉम्पिलीकेटेड होती है कि कम पढ़े लिखे और अनपढ़ बकरी पालकों के लिए बैंकों तथा अन्य संस्थाओं से लोन लेना मुश्किल हो जाता है.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

अरुणाचल प्रदेश में, ब्रोक्पा बड़ी मोनपा जनजाति की एक उप-जनजाति है, जो पूर्वी हिमालयी क्षेत्र के पश्चिमी कामेंग और तवांग जिलों में निवास करती है.
पशुपालन

Arunachali Yak: अरुणाचल प्रदेश की पहचान है अरुणाचली याक, जानिए इसकी खासियत

फाइबर के माध्यम से आश्रय और कपड़े प्रदान करते हैं और कठिन...

Why did NDRI say, separate AI department is needed for research and development activities
पशुपालन

Indian Dairy: NDRI से देश को मिलेंगी 98 फीमेल डेयरी साइंटिस्ट और एक्सपर्ट, 22 को मिलेगी डिग्री

जिन साइंटिस्ट को मेडल आदि दिया जाना है उन्हें भी सूचित किया...

animal husbandry
पशुपालन

Animal Husbandry: अच्छा बछड़ा या बछिया चाहिए तो आजमाए ये टिप्स, आमदनी होगी डबल

भैंस के बच्चे को तीन माह तक रोजाना उसकी मां का दूध...

livestock
पशुपालन

Animal News: गर्मी में डेयरी पशुओं को लू से बचाने के लिए पढ़ें टिप्स

पशुओं को लू से बचाने के लिए ठंडी छाया के साथ पोषण...