नई दिल्ली. मछली पालन में भी सबसे ज्यादा नुकसान बीमारियों की वजह से होता है. मछलियों में कई बीमारियां होती हैं, उन्हीं में से एक बीमारी ड्रॉपसी भी होती है. जिसमें मछलियों का पेट फूल जाता है, या रोग संक्रामक नहीं है लेकिन जल्दी उपचार नहीं किया क्या तो यह टैंक या तालाब में अन्य मछलियों पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. इसके चलते अन्य मछलियां भी बीमार पड़ जाती हैं और इससे तालाब में मृत्यु दर दिखाई देती है. इस वजह से फिश फार्मर को फार्मिंग के काम में मोटा नुकसान उठाना पड़ता है. इसलिए बीमारी से बचाव बेहद ही जरूरी है.
किसी भी बीमारी के इलाज से पहले ये जानना जरूरी है कि बीमारी किस वजह से होती है. अगर उन कारणों पर रोक लगा दी गई तो फिर बीमारी नहीं होगी न ही इलाज करने की जरूरत होगी. बता दें कि आमतौर पर ड्रापसी बीमारी मीठे पानी में पाए जाने वाली मछलियों में ज्यादा होती है. फिश एक्सपर्ट कहते हैं मृगल, कत्ला और रोहू मछलियों में ये बीमारी ज्यादा होती है.
इस बीमारी में क्या होता है
ड्रापसी बीमारी में मछलियों का पेट पूरी तरह से फूल जाता है. गलफड़े की लाली कम हो जाती है. उसमें सफेद धब्बा बन जाता है. मछली के शरीर का रंग फीका पड़ जाता है चमक कम हो जाती है और शरीर पर श्लैष्मिक द्रव की स्राव से शरीर चिपचिपा और चिकना हो जाता है. कभी-कभी आंख, शरीर फूल भी जाता है. मछलियां बेचैन रहती हैं और अनियंत्रित रूप से तैरती हैं. अपने शरीर को अन्य वस्तु से बार-बार रगड़ती हैं. कम फीड खाती हैं. शरीर की स्किन फट जाती है और उसमें खून निकलने लगता है. शरीर में परजीवी आ जाते हैं. इसके अलावा जैसे बीमारी बढ़ती है या लक्षण धीरे-धीरे सामने आते हैं. आंतरिक प्रभावित होते हैं विशेष रूप से गुर्दे पर असर ज्यादा होता है. मछलियां एनीमिया के कारण अपना सामान रंग खो देती हैं और कभी-कभी रीढ़ की हड्डी मुड़ जाती है.
कैसे होती है ये बीमारी
रासायनिक परिवर्तन की वजह से बीमारी होती है. जैसे पानी की गुणवत्ता, तापमान, पीएच ऑक्सीजन, कार्बन डाईआक्साइड आदि की असंतुलित मात्रा मछली के लिए घातक होती है. मछली के अंगों जैसे गलफड़े, चर्म, मुंह के सम्पर्क में आकर उन्हें नुकसान पहुंचाते हैं. कार्बनिक खाद, उर्वरक या आहार जरूरत से अधिक दिए जाने से जहरीली गैसे उत्पन्न होती है जो नुकसानदायक होती है. बहुत से रोगजनक जीवाणु व विषाणु पानी में रहते हैं. जब मछली प्रतिकूल परीस्थिति में कमजोर हो जाती है तो उस पर बैक्टीरिया और वारयस आक्रमण करके रोग ग्रसित कर देते हैं.
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