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Fodder: अब खेत में नहीं गोशाला के कमरों में ही उगेगा गोवंशों के लिए चारा, जानिए केसे होती क्रेट खेती

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. गर्मियों में चारे की कमी होने से गोशाला संचालकों, पशुपालक और किसानों के सामने बड़ी समस्या खड़ी हो जाती है. इन दिनों पशुओं के लिए ये चारा बहुत ही मुश्किल से मिल पाता. ऐसे में पशुओं के लिए पौष्टिक और हरा चारा कहां से लाएं. इसे लेकर पशुपालक बहुत ज्यादा परेशान रहते हैं. अब उत्तर प्रदेश में आगरा की गोशालाओं में हरे चारे की किल्लत नहीं होगी. गोवंशों को गोशाला के बंद कमरे से ही हरा चारा उगाकर खिलाया जाएगा. ये चारा गोवंश को पर्याप्त मात्रा में फाइबर भी देगा. ये काम ग्रामीगो फाउंडेशन कर रहा है. ये संस्था फतेहाबाद की कोलारा कला गोशाला का संचालन कर रही है. फाउंडेशन से जुड़े आईआईटी और आईआईएम के छात्र यहां हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से हरा चारा उगाने की तैयारी में हैं. पूरा सेटअप लग चुका है. जल्द श्रीगणेश होगा.

फतेहाबाद की कोलारा कला गोशाला की हालत किसी से छिपी नहीं है. गोशाला में दम तोड़ते गोवंश और पशुओं के शव की बेकदरी के अक्सर वीडियो सोशल मीडिया पर दिख जाते थे. लेकिन, अब यहां की हालात में सुधार हुआ है. गर्मी हो या सर्दी पशु चिकित्सक की हर समय तैनाती रहती है. साथ ही ग्रामीगो फाउंडेशन के दो-दो कर्मचारी हर शेड पर तैनात हैं. 930 से अधिक यहां गोवंश हैं. इनके चारे की समस्या को समाप्त करने पर कार्य चल रहा है.

तीन से चार दिन के अंदर चारा तैयार होगा
फाउंडेशन के अभय कुमार बताते हैं कि हाइड्रोपॉनिक्स तकनीक से मिट्टी के बगैर खेती होती है. चारे को उगाने के लिए ट्रे में 24 घंटे भीगे हुए मक्का और गेहूं के बीज रखे जाते हैं. आठ दिन तक पौधे बीज से ही पोषक तत्व लेते हैं. रोशनदान से आने वाली रोशनी ही उनके लिए पर्याप्त है. पानी का पीएच मान ठीक होने पर परिणाम बेहतर होते हैं. यहां पर 30 वाई 40 फुट का चरागा बनाने के लिए सेटअप तैयार किया है. इसमें 800 ट्रे रखी जाएंगीं. यहां ट्रे में बीज डालकर उन्हें उगाया जाएगा. एक ट्रे में तीन से चार दिन के अंदर चारा तैयार होगा. एक बार में आठ कुंतल चारा उगाएंगे. भविष्य में इसे दो हजार कुंतल के उत्पादन पर ले जाने की तैयारी है.

आईआईटी व आईआईएम के छात्र जुड़े
अभय खुद आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए करने के बाद खेतों के कार्य से जुड़े हैं. उनकी संस्था में देशभर के आईआईटी और एमबीए के छात्र हैं, जो बेंगलुरु, दिल्ली सहित कई प्रदेशों से आते हैं. वे पढ़ाई के वक्त अभय के साथी रहे हैं. वर्तमान में विभिन्न कंपनियों में काम कर रहे हैं. इसमें भी उनका हाथ बंटाते हैं. उन्होंने बताया कि हाइड्रोपॉनिक्स से चारा उत्पादन उन्होंने सबसे पहले फिरोजाबाद की कारीखेड़ा गोशाला में शुरू किया. यहां 240 ट्रे में उत्पादन किया. रोज 10 ट्रे चारा निकालते थे. एक ट्रे में करीब 10 किलोग्राम चारा होता था.

गोवंश की नहीं देखी गई दुर्दशा
अभय बताते हैं कि गोशाला संचालन की कोई योजना नहीं थी. ग्राम सभा के द्वारा गोशाला का संचालन किया जाता था. एक ट्रॉली गोबर एक हजार रुपये में वे खरीदते थे. उन्हें बायो कंपोस्ट के लिए गोबर चाहिए था, लेकिन जब गोबर लेकर कर्मचारी आते तो वो बताते थे कि गोशाला का बुरा हाल है. गाय भूख से मर रही हैं। गोबर पर्याप्त नहीं है. उन्होंने एक दिन खुद जाकर धरातलीय स्थिति देखी. गोशाला की हालत खराब थी. उन्होंने उसी दिन से गोशाला संचालन की ठान ली. आज गोशालाओं की सूरत बदल रहे हैं.

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