नई दिल्ली. देश में पिछले साल 160 लाख टन के करीब मछली उत्पादन हुआ था और इसमें से ज्यादातर की खपत भारत में हुई. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मछली डिमांड यहां ज्यादा है. यही वजह है कि अब मछली पालन के लिए नई-नई तकनीक भी आ रही है. मछली पालन में केज कल्चर तकनीक की खूब चर्चा हो रही है. इसके जरिए मछली पालक मछली पाल रहे हैं और उन्हें मुनाफा हो रहा है. ऐसे में आपके भी मन में सवाल उठ रहे होंगे कि आखिर ये सिस्टम क्या है. किस तरह इसमें मछलियां पाली जाती हैं और कितना फायदा होता है? आइए जानते हैं.
बता दें कि केज कल्चर मछली पालन का एक ऐसी तकनीक है जिसमें पानी में एक फिक्स जगह पर फ्लोटिंग केज यूनिट बनाए जाते हैं. जितने केज होते हैं सभी को एक दूसरे से जोड़ दिया जाता है. यूनिट में चार घेरा होत है. हर घेरा 6 मीटर लंबा, चार मीटर चौड़ा एवं चार मीटर गहरा बनाया
जाता है. जबकि प्लास्टिक के बने घेरे के चारों ओर मजबूत जाल भी लगा हेता है ताकि कुछआ और अन्य जीव जंतु अंदर न जा पाएं. ये कहा जा सकता है कि पानी में तैरते हुए इसी जाल में मछली पालन किया जाता है. एक्सपर्ट कहते हैं कि इन जालों में ऊंगली की साइज की मछलियां डाली जाती हैं और हर दिन उन्हें फीड दिया जाता है और पांच महीने में मछलियों का वजन एक से सवा किलो हो जाता है.
क्या है इस तकनीक का फायदा
एक्सपर्ट के मुताबिक इस तकनीक का कई फायदा है. मसलन तालाब या झील की तुलना में केज में मछलियों की ग्रोथ जल्दी होती है. मछलियां हेल्दी और सेफ रहती हैं. मछलियों को आहार देना भी आसान होता है और उनके बीमार होने की संभावना कम होती है. बाहरी मछलियों से संपर्क न होने के कारण संक्रमण का भी खतरा नहीं होता है. वहीं मछली पालक अपनी जरूरत और मांग के हिसाब से केज से मछली निकाल सकते हैं. जरूरत नहीं होने पर मछलियों को केज में ही छोड़ा जा सकता है. सबसे अच्छी बात ये है कि इससे कोई नुकसान हीं होता बल्कि मछलियों को और बढ़ने का मौका मिल जाता है.
एक केज से कितना होगा प्रोडक्शन
बता दें कि केज तकनीक से मछली पालकों को कम लागत एवं कम समय अधिक मुनाफा होना तय है. अगर एक केज में ऊंगली साइज की 6 हजार तक मछली डाली जाए तो 40 से 50 क्विंटल उत्पादन होगा. गौरतलब है कि देश के कई राज्यों में केज कल्चर तकनीक से मत्स्य पालन किया जा रहा है. इससे मछली पालकों को फायदा मिल रहा है. वहीं बिहार सरकार की ओर से तो 70 प्रतिशत सब्सिडी मिल रही है. बताते चलें कि केज यूनिट लगने से लोगो को बर्फ की मछली नहीं खानी पड़ती है. लोगों तक ताजा मछली पहुंच जाती है. इसके अलावा कई लोगो को रोजगार मिल जाता है.
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