नई दिल्ली. डेयरी पशुओं के गर्भाधान कराने का सही समय पता होना बेहद ही जरूरी है. क्योंकि सही समय पर गर्भाधान कराने से रिजल्ट भी बेहतर आता है. वहीं पशुओं के हीट में आने का मौसम पर भी प्रभाव पड़ता है. इसका भी ख्याल पशुपालकों को रखना चाहिए. एक्सपर्ट कहते हैं कि पशु में हीट की शुरुआत होने के 12 से 18 घंटे बाद यानि हीट के दूसरे हिस्से में अगर गर्भाधान कराया जाए तो सबसे अच्छा रहता है. मोटे तौर पर जो पशु सुबह गर्मी में दिखायी दें उसमें दोपहर के बाद तथा जो शाम को मद में दिखायी दे उसमें अगले दिन सुबह गर्भाधान कराना चाहिए.
वहीं टीका लगाने का उपयुक्त समय की बात की जाए तो जब पशु दूसरे पशु के अपने ऊपर चढ़ने पर चुपचाप खड़ा रहे तो इसे स्टेंडिंग हीट कहते हैं. बहुत से पशु मद काल में रम्भाते नहीं हैं लेकिन गर्मी के अन्य लक्षणों के आधार पर उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है.
गाय का हीट में आने का क्या है वक्त
वैसे तो साल भर पशु गर्मी में आते रहते हैं लेकिन पशुओं के मद चक्र पर मौसम का प्रभाव भी देखने में आता है. हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में वर्ष 1990 से 2000 तक किये गये कृत्रिम गर्भाधान कार्य के एक विश्लेषण के मुताबिक जून महीने में सबसे अधिक 11.1 फीसदी गायें गर्मी में देखी गयीं. जबकि सबसे कम 6.71% फीसदी गायें अक्टूबर महीने में गर्मी में आईं थीं. प्रजनन के मद्देनजर गायों में सबसे अच्छा महीना मई-जून-जुलाई का रहा. जिसमें 21.74 फीसदी गायों को गर्मी में देखा गया. जबकि सितम्बर-अक्तूबर नवम्बर में सबसे कम 21.9 फीसदी गायें गर्मी में प्राप्त हुई.
किस महीने में ज्यादा गर्मी में आती है भैंसे
भैंसों में मौसम का प्रभाव बहुत अधिक पाया जाता है. वर्षों में माह मार्च से अगस्त तक छह माह की ड्यूरेशन में जिसमें दिन ज्यादा लंबा होता है. वर्ष की 26.17 फीसदी भैंसें मद में रिकार्ड की गयीं. जबकि शेष छह माह सितम्बर से फरवरी के पीरियड में जिसमें दिन छोटे होते हैं, वर्ष की बाकी 73.86 फीसदी भैंसें गर्मी में पायी गयीं. गायों के अपेक्षा भैंसों में मई-जून-जुलाई प्रजनन के हिसाब से सबसे खराब रहा. जिसमें केवल 11.11 परसेंट भैंसें गर्मी में देखी गयीं. जबकि अक्टूबर-नवम्बर-दिसम्बर सर्वोत्तम पाया गया, जिसमें 44.13 फीसदी भैंसों को मद में रिकार्ड’ किया गया. पशु प्रबन्धन में सुधार करके तथा पशुपालन में आधुनिक वैज्ञानिक तरीकों को अपना कर पशुओं के प्रजनन पर मौसम के बेरे असर को जिससे पशु पालकों को बहुत नुकसान होता है, काफी हद तक कम किया जा सकता है.
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