नई दिल्ली. भारत में पाए जाने वाले जमनापरी नस्ल के बकरों की डिमांड एक नहीं कई देशों में है. खासतौर पर नेपाल, भूटान, इंडोनेशिया, फिलीपींस, मलेशिया में तो ये बकरे खूब ही पसंद किए जाते हैं. जबकि इसमें सफेद रंग में पाए जाने वाले बकरे तो सामान्य से ज्यादा लम्बे होते हैं और ये देखने में भी खूबसूरत होते हैं. दूसरे देशों में ये बकरे नस्ल सुधार के लिए भी मांगे जाते हैं. यही सब वजह है कि यूपी के इटावा शहर की इस नस्ल की डिमांड खूब होती है. वहीं केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मथुरा भी लगातार इस नस्ल पर रिसर्च कर रहा है. जिसको लेकर संस्थान को हाल ही में पुरस्कार दिया गया था.
केन्द्रीय पशुपालन मंत्रालय की एक रिपोर्ट पर गौर किया जाए तो जमनापरी बकरियां के मामले में यूपी में 7.54 लाख संख्या के साथ पहले नंबर पर है. दूसरे पर मध्य प्रदेश 5.66 लाख, तीसरे पर बिहार 3.21 लाख, चौथे पर राजस्थान 3.09 लाख और पांचवें नंबर पर पश्चिम बंगाल का नंबर आता है जहां पर इसकी संख्या 1.25 लाख है. वहीं देश में दूध देने वाली कुल बकरियों की संख्या 7.5 लाख के आसपास है. वहीं वर्ष 2019 की पशु जनगणना के की मानें तो देश में 149 मिलियन बकरे-बकरी हैं. जबकि देश में हर साल 1.5 से दो फीसदी तक इजाफा हो रहा है. वहीं सीआईआरजी में आर्टिफिशल इंसेमीनेशन की मदद से इस नस्ल की संख्या बढ़ाई जा रही है. संस्थान हर वर्ष 4-5 साल में 4 हजार के करीब जमनापारी नस्ल के बकरे-बकरी किसानों को देता है.
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सीआईआरजी के सीनियर साइंटिस्टर और जमनापरी नस्ल के विशेषज्ञ डॉ. एमके सिंह कहते हैं कि दूसरे देश भारत से जमनापरी नस्ल के बकरों की डिमांड अपने यहां पाई जाने वाली बकरियों की नस्ल में सुधार के लिए करते हैं. दरअसल, इस नस्ल की बकरी रोजाना 4 से 5 लीटर तक दूध देती है. जबकि इसका दुग्धकाल में 175 से 200 दिन का होता है और इस दौरान ये 500 लीटर तक दूध का उत्पादन करती है. जबकि इसमें अन्य नस्लों की अपेक्षा दो बच्चे देने की दर भी 50 फीसदी तक है. जबकि इस नस्ल का वजन रोजाना 120 से 125 ग्राम तक बढ़ जाता है. वहीं शारीरिक बनावट और सफेद रंग का होना भी इसकी डिमांड बढ़ाता है.
जमनापरी नस्ल की खासियत एक नजर में
यूपी के चकरनगर और गढ़पुरा इलाके में इसकी बहुत नस्ल पाई जाती हैं. यह इलाका यमुना और चम्बल के बीहड़ मिलती है. यहां बकरियों के लिए चराई की अच्छी सुविधा है. इसके अलावा यह मध्य प्रदेश, बिहार, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में भी पाई जाती है. लंबे होने के साथ इसके कान भी लंबे नीचे की ओर लटके हुए होते हैं. इसमें कभी-कभी कान और गले पर लाल रंग की धारियां भी होती हैं. इसकी नाक उभरी हुई होती है और उसके आसपास बालों के गुच्छे होते हैं. जबकि बकरे-बकरी दोनों के पैर के पीछे ऊपर लम्बे बाल होते हैं. बकरे का वजन 45 किलो और बकरी का वजन 38 किलो तक होता है. जबकि बकरी 90 से 100 सेमी और बकरी 70 से 80 सेमी ऊंची होती हैं.
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