नई दिल्ली. चंद देश ही नहीं दुनियाभर के ज्यादा देश भारत के बफैलो (भैंस) मीट को पसंद करते हैं. मीट एक्सपर्ट की मानें तो अगर पशुओं की कुछ बीमारियों पर कंट्रोल कर लिया जाए तो मीट एक्सपोर्ट का आंकड़ा डबल भी हो सकता है. देश से बफैलो मीट समेत भेड़-बकरी का मीट भी एक्सपोर्ट होता है. हालांकि अभी तक मीट एक्सपोर्ट करने में हलाल सर्टिफिकेट का इश्यू भी आता था. लेकिन बाजार में बढ़ती हलाल मीट की डिमांड को देखते हुए भारत सरकार ने भी इसे लेकर कुछ नए नियम बनाए हैं. सभी नए नियम 16 अक्टूबर से लागू हो जाएंगे. इसके बाद 15 देशों को हलाल सर्टिफिकेट पर मीट एक्सपोर्ट किया जा सकेगा. सभी 15 देशों की लिस्ट भी विदेश व्यापार महानिदेशालय (DGFT) की ओर से जारी की गई है.
जानकारों की मानें तो नए नियम के तहत मीट बेचने वालों को इन 15 देशों में मीट की सप्लाई के साथ ही खरीदार को मीट के हलाल होने का सर्टिफिकेट भी देना होगा. ये सर्टिफिकेट देश की कुछ तय की गईं संस्थाएं देंगी. इन संस्थाओं को सरकार ने मान्यता दी है. इन्हें भारत अनुरूपता मूल्यांकन योजना (I-CAS) के हलाल से जुड़े मानकों का पालन करना होगा. इस सब की निगरानी भारतीय गुणवत्ता परिषद (QCI) करेगी. सरकार द्वारा 15 देशों को हलाल सर्टिफिकेट पर मीट एक्सपोर्ट के लिए नए नियमों को बनाने के पीछे एक बड़ी वजह भी है. मीट एक्सपर्ट की मानें तो साल 2021 तक विश्व में हलाल फूड इंडस्ट्री का कारोबार 2 लाख करोड़ डॉलर का था. जो साल 2027 तक 4 लाख करोड़ डॉलर का होने की उम्मीद है. इसमे बड़ी हिस्सेदारी मीट की भी है.
तीन साल में बढ़ गया सवा लाख टन मीट एक्सपोर्ट
अगर एपीडा के जारी आंकड़ों पर जाएं तो अकेले बफैलो मीट का एक्सपोर्ट ही बीते तीन साल में सवा लाख टन बढ़ गया है. आंकड़ों के मुताबिक साल 2021-22 में 11 लाख, 75 हजार, 193 टन बफैलो का एक्सपोर्ट हुआ था. वहीं साल 2022-23 में 11 लाख, 75 हजार, 869 टन मीट एक्सपोर्ट हुआ था. लेकिन साल 2023-24 का आंकड़ा खासा चौंकाने वाला है. बीते साल 12 लाख, 95 हजार, 603 टन बफैलो मीट का एक्सपोर्ट भारत से दुनिया के अलग-अलग देशों को हुआ था. इसकी कीमत 31 हजार करोड़ रुपये थी.
भारत में ये देते हैं हलाल सर्टिफिकेट
भारत में लखनऊ, दिल्ली और मुम्बई में तीन संस्थाएं हैं. ये संस्थाएं मीट एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियों को उनका प्रोडक्ट हलाल होने का सर्टिफिकेट देती हैं. इसमे लखनऊ का हलाल शरीयत इस्लामिक लॉ बोर्ड (HASIL), मुम्बई का JUHF सर्टिफिकेशन प्राइवेट लिमिटेड और जमीयत उलमा ए हिंद हलाल ट्रस्ट शामिल है. कई-कई दिन तक स्लॉटर हाउस में पशु को काटने के तरीके और मशीनों के इस्तेमाल की निगरानी करने के बाद एक मीट एक्सपोर्ट कंपनी को हलाल का सर्टिफिकेट मिलता है.
हलाल के हिसाब से सेट होती है मशीनों की टाइमिंग
आपको ये जानकर हैरत होगी लेकिन सच ये ही है कि मीट प्रोसेसिंग यूनिट में इस्तेमाल होने वाली मशीनों की टाइमिंग भी हलाल सर्टिफिकेट के नियमों के मुातबिक सेट की जाती है. अगर मशीनों की टाइमिंग हलाल के हिसाब से नहीं है तो उस कंपनी को सर्टिफिकेट नहीं दिया जाएगा. इतना ही नहीं कंपनी में जानवर या मुर्गे को हलाल (काटने) करने वाला कर्मचारी मुस्लिम होना जरूरी है.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट
गुरु अंगद देव वेटरनरी और एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी (GADVASU), लुधियाना के पूर्व वाइस चांसलर डॉ. इन्द्रजीत सिंह ने लाइव स्टॉक एनिमल न्यूज को बताया कि देश में भैंस और भेड़-बकरी समेत दूसरे कई जानवर पाले जाते हैं. दूध के लिए तो उनकी खुराक पर खूब ध्यान दिया जाता है, लेकिन मीट की ग्रोथ के लिए उन्हें अलग से कुछ खाने को नहीं दिया जाता है. जिसके चलते मीट में किसी भी केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता है और इसका स्वाद अलग ही आता है.
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