नई दिल्ली. पशुपालन में पशुओं के बीमाी से उत्पादन तो कम होता ही है. साथ ही पशुओं की सेहत पर भी असर पड़ता है. इसके चलते पशुओं को एक के बाद एक कई बीमारियां लग जाती हैं. इससे पशुपालकों को पशुओं का इलाज कराने में एक्स्ट्रा खर्चा करना पड़ता है. ऐसे में पशुपालन से होने वाला फायदा नुकसान में तब्दील हो जाता है. जबकि कभी कोई भी पशुपालक ये नहीं चाहता है कि उनका पशु कम उत्पादन करे और वो बीमार पड़ जाए. इसलिए जरूरी है कि पशुओं की तमाम हरकतों पर हर वक्त ध्यान दिया जाए. अगर लगे कि पशु की हरकतों में तब्दीली आई तो ये बीमारी के लक्षण हो सकते हैं.
पशु अगर बीमार पड़ता है तो तुरंत ही उसका उपचार कराना चाहिए. अगर मामला गंभीर है तो पशु चिकित्सक की भी सलाह ली जा सकती है. इस आर्टिकल में हम आपको पशुओं की दो बीमारियों उनके लक्षण और निदान के बारे में बताने जा रहे हैं.
सब अक्यूट रूमेनल एसिडोसिस (अल्प-घातक आमाशय अम्लता)
पशु के आहार में ज्यादा रेशेदार तत्वों से अचानक अनाज वाले तत्वों में किए गये बदलाव के कारण आमाशय में ज्यादा अम्ल उत्पादन की वजह से सब अक्यूट रूमेनल एसिडोसिस की दिक्कत हो जाती है. इसके चलते उत्पादन क्षमता में गिरावट हो जाती है. ये बीमाारी संतुलित मिश्रित आहार में रेशेदार की कमी या आहार को बहुत महीन पीसने से होती होती है. लक्षण की बात की जाए तो पशु के चरने में कमी कर देता है. जुगाली में कमी देखी जाती है. वहीं पशु को हल्के दस्त होने लग जाते हैं. गोबर में बिना पचे हुए 6 मिमी से बड़े अनाज के दाने दिखाई देना शुरू हो जाते हैं. दूध के फैट में कमी हो जाती है. पशु में लंगड़ापन, पशु के वजन में कमी, आहार में पर्याप्त ऊर्जा के बाद भी पशु में शारीरिक कमजोरी दिखाई देती है. इसका इलाज पशु के खानपान के तौर तरीकों में सुधार करके किया जा सकता है.
पैर में सूजन की समस्या (लेमिनाइटिस)
ज्यादातर यह वयस्क दुधारू गायों, जब वो सबसे ज्यादा दूध दे रही होती हैं तो उनमें पैर की सूजन की समस्या देखी गई है. अक्सर ये पशु समूह की समस्या होती है. ज्यादा दाना, प्रोटीन, कम चारा, थनैला, गर्भाशय में सूजन एसिडोसिस इत्यादि इस रोग के कारण हैं. ये बीमारी खुरदरे फर्श, लेटने वाले स्थान का पर्याप्त न होने से होती है. रोकथाम करने के लिए मुलायम फर्श की व्यवस्था करना चाहिए. संतुलित आहार की व्यवस्था हो जिसमें उपयुक्त मात्रा में चारा देना हर 15 दिनों पर 2-4 दिनों तक 5 फीसद कॉपरसल्फेट से पशु के पैर धोने की आदत में डालें. नियमित 6 महीने के अंतराल पर खुर छीलने या काटने की व्यवस्था होनी चाहिए. पशु के बैठने की उचित व्यवस्था हो, जिससे वह ज्यादा देर तक खड़ा न रहे. खुर में कोई बोट और लेमितइटिस के लक्षण दिखाई दें तो नियमित अंतराल पर खुर की जांच करें.
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