नई दिल्ली. सरकार खेती किसानी के साथ-साथ पशुपालन के जरिए किसानों की आय दोगुनी करना चाहती है. पशुपालकों को सरकार कई तरह की सुविधाएं दे रही है. आज हम बात कर रहे हैं हिमाचल प्रदेश की खास गाय के बारे में. आइये जानते हैं इस गाय के बारे खास बातें. हिमाचल की पहचान मानी जाने वाली हिमाचली पहाड़ी गाय छोटे कद की गाय होती है. हिमाचली पहाड़ी गाय की अनुमानित संख्या करीब आठ लाख है. ये कुल्लू, चंबा, मंडी, कांगड़ा, सिरमौर में मिलती है वहीं इस नस्ल के लिए किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों की बेहद ठंडी जलवायु अनुकूल है. देशी नस्ल की अन्य गायों जैसे साहिवाल, रेड सिन्धी, गिर सरीखी विख्यात नस्ल के साथ ‘हिमाचली पहाड़ी’ भी शामिल है.
यह नस्ल पहाड़ी इलाकों में रहने और काम करने के लिए अच्छी तरह से अनुकूलित है. इसे दूध के लिए और भार ढोने के लिए भी पाला जाता है. एक दिन में 1 से 3 किलोग्राम दूध देती है. इसके दूध को लेकर कई तरह की चर्चाएं हैं.
हिमाचली पहाड़ी, ये है पहचान: हिमाचली पहाड़ी नस्ल की ये गाय मध्यम से छोटे, छोटे पैर, मध्यम कूबड़, लंबी पूंछ के साथ काले और काले-भूरे रंग के होते हैं। इनके सींग मध्यम होते हैं और मुख्य रूप से पार्श्व और ऊपर की दिशा में घुमावदार होते हैं. यह दूध, सूखे की स्थिति और खाद के स्रोत के रूप में पहाड़ी पशुधन उत्पादन प्रणाली के अनुकूल हैं. यह स्थानीय लोगों की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, क्योंकि यह दूध, खाद और परिवहन प्रदान करता है. इसकी ऊंचाई 90 से 120 सेंटीमीटर तक होती है. ये एक दिन में एक से तीन किलोग्राम तक दूध देती है. इसके दूध में ना केवल औषधीय गुण हैं बल्कि गोमूत्र भी खेती किसानी के लिए लाभदायक है.
दूध में होते हैं औषधीय गुण: जैसा कि इसके नाम में शामिल है, ये पहाड़ के चरागाहों और जंगलों में घास चरने वाली हिमाचली नस्ल की गाय है. वनों में जड़ी बूटियों और खास किस्म की घास चरने के कारण पहाड़ी गाय के दूध में औषधीय गुण आते हैं. हिमाचल के कुल्लू, मंडी, चंबा, कांगड़ा, सिरमौर, लाहौल-स्पीति आदि जिलों में ‘हिमाचली पहाड़ी’ गाय पाई जाती हैं. इसके दूध में ना केवल औषधीय गुण हैं बल्कि गोमूत्र भी खेती किसानी के लिए लाभदायक है.
स्थानीय नामों से भी जानते हैं: हिमाचली पहाड़ी गाय के वयस्क नर का वजन 200 से 280 किलोग्राम होता है. वहीं वयस्क मादा का वजन 140 से 230 किलोग्राम तक होता है. इस नस्ल की ऊंचाई 90 से 120 सेंटीमीटर तक होती है. वहीं इसे ‘पहाड़ी’, ‘देसी’, ‘स्थानीय’, ‘गौरी’ और ‘हिमधेनु’ के नाम से भी जाना जाता है.
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