नई दिल्ली. भारत के 30 अरब डॉलर के पोल्ट्री कारोबार को आनुवांशिक रूप से संशोधित (जीएम) मक्का के आयात की अनुमति देने और सोयाबीन सहित प्रमुख फीड के प्रोडेक्शन को बढ़ावा देने के लिए नीतिगत समर्थन की बहुत जरूरत है. ये बात हालिया रिपोर्ट में सामने आया है. इस रिपोर्ट ये भी कहा गया है कि ये क्षेत्र, जो पहले प्रतिवर्ष 8% की स्वस्थ दर से बढ़ रहा है, इसमें और भी तेजी देखी जा सकती है.
इस रिपोर्ट में ये भी दर्शाया गया है कि मक्के का औद्योगिक उपयोग और इथेनॉल उत्पादन की ओर पहले की अपेक्षा अब ज्यादा रुझान बढ़ रहा है. इतना ही नहीं भारतीय उद्योग परिसंघ ने भारतीय पोल्ट्री क्षेत्र के लिए विजन डॉक्यूमेंट 2047 में कहा है “देश में मक्का और सोयाबीन उत्पादन का वर्तमान विकास स्तर पूरा करने के लिए अपर्याप्त होगा”
पोल्ट्री उद्योग ने बेहतर आनुवंशिकी और रोग प्रतिरोधी नस्लों और पक्षियों में रोग निगरानी बढ़ाने की भी सिफारिश की गई है. कहा गया है कि कीमतों में लगातार हो रही वृद्धि की वजह से भारत सरकार से जीएम मक्का और सोयाबीन के आयात की अनुमति देने की वकालत करते हुए सीआईआई ने ये भी कहा कि अपने घरेलू उत्पादकों के हितों की भी रक्षा होनी चाहिए. इस बारे में पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के कोषाध्यक्ष रिकी थापर ने एफई को बताया कि “उच्च पोल्ट्री फीड की कीमतें, जो मांस उत्पादन का 65-70% हिस्सा बनाती हैं, उत्पादन लागत को बढ़ाती हैं और जीएम मक्का के आयात की अनुमति देकर कीमतों को स्थिर किया जा सकता है.”
अगस्त-2021 में, सरकार ने फीड की कीमतों में रिकॉर्ड बढ़ोतरी के बाद घरेलू पोल्ट्री उद्योग को समर्थन देने के लिए 1.2 मीट्रिक टन जीएम सोयाबीन की पहली खेप की अनुमति देने के लिए आयात नियमों में ढील दी थी. इस रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि पोल्ट्री उत्पादन मुख्य रूप से साउथ और वेस्ट इंडिया में ही केंद्रित है. सीआईआई ने बिहार जैसे राज्यों में बड़े स्कैल पर परिचालजन की सिफारिश की है, जहां पर प्रमुख चारा मक्का का प्रचुर उत्पादन होता है.
क्या कहते हैं आंकड़े
मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय के अनुसार, 2006-7 से 2021-22 के दौरान पोल्ट्री क्षेत्र में सालाना 8% की वृद्धि हुई. 4.5 मीलियन टन (एमटी) के पोल्ट्री मांस उत्पादन ने 2021-22 में 9.3 मीट्रिक टन के कुल मांस उत्पादन उत्पादन में 51.4% का योगदान दिया.
सीआईआई की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि ‘इनपुट की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए छोटे धारकों को सहकारी समितियों या उत्पादक कंपनियों में एकत्रित किया जाए. टीकाकरण, फीड, विस्तार सेवाएँ, बाजार पहुंच और मूल्य खोज में उच्च भूमिका है. इतना ही नही सीआईआई की रिपोर्ट में कहा गया है कि नई नस्लें रोग प्रतिरोधी होनी चाहिए जो संक्रमण रोगों और रोगजनकों जैसे एवियन इन्फ्लुएंजा (एआई) और अन्य जीवाणु रोगों का सामना कर सकें.
इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि देश में पोल्ट्री क्षेत्र में वृद्धि का श्रेय वाणिज्यिक पोल्ट्री उद्योग को दिया गया है, जिसका उत्पादन 85% है, जबकि शेष 15% उत्पादन पारंपरिक पिछवाड़े पोल्ट्री से आता है. भारत में पोल्ट्री सेक्टर का मूल्य 2021-22 में 28 बिलियन डॉलर से अधिक है.पोल्ट्री पक्षियों के बीच रोग नियंत्रण बढ़ाने के लिए, सीआईआई रिपोर्ट ने बर्ड फ्लू की घटनाओं पर रिपोर्ट के लिए एकीकृत रोग निगरानी और प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को मजबूत करने पर जोर दिया है.
फूड, फीड और फ्यूल की कमी को दूर किया जा सके
पोल्ट्री फेडरेशन ऑफ इंडिया के प्रेसिंडेंट रनपाल डाहंडा और कंपाउंड लाइव स्टॉक फीड मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन के प्रेसिंडेंट सुरेश देवड़ा ने कहा कि फीड की आने वाली परेशानी को देखते हुए डिमांड की है,जिससे फूड, फीड और फ्यूल की कमी को दूर किया जा सके।उन्होंने कहा कि प्रमुख पोल्ट्री मांस उत्पादक राज्यों में कुल उत्पादन का महाराष्ट्र (15%) पश्चिम बंगाल (14%), हरियाणा (12%), आंध्र प्रदेश (11%), तमिलनाडु (10%) और तेलंगाना (9%) शामिल हैं. शीर्ष सात राज्य पोल्ट्री मांस उत्पादन का 80% उत्पादन करते हैं. यह क्षेत्र पशुधन क्षेत्र के उत्पादन के मूल्य में 16% और कृषि और संबद्ध क्षेत्रों के उत्पादन के कुल मूल्य में 5% का योगदान देता है.
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