नई दिल्ली. मुर्गियों में क्रोनिक रेस्पिरेटरी डिजीज (सीआरडी) भी बेहद ही खतरनाक बीमारी है. ये बीमारी न सिर्फ मुर्गियों की हैल्थ को प्रभावित करती है. बल्कि मुर्गियों के प्रोडक्शन पर भी बुरा असर पड़ता है. जिससे मुर्गी पालन के काम में बड़ा आर्थिक नुकसान होता है. राजस्थान के पशुपालन विभाग के एक्सपर्ट का कहना है कि सीआरडी से मुर्गियां अंडा उत्पादन कम कर देती हैं. जिससे अंडों के कारोबार में पोल्ट्री फार्मर्स को नुकसान होता है. यदि आप ब्रॉयलर मुर्गों को पाल रहे हैं तो उनका वजन जल्दी नहीं बढ़ता है, जिसका भी नुकसान होता है.
बता दें कि सीआरडी छूतदार श्वास से सम्बन्धित मुर्गियों की बीमारी है. यह रोग सभी आयु वाले पक्षियों में होता है लेकिन 4 से 8 सप्ताह की उम्र के चूजों में ज्यादा होता है. इसमें पक्षियों के भार में कमी, अण्डा देने की क्षमता में 30 फीसद की कमी तथा धीरे-धीरे मृत्यु हो जाती है.
क्या है बीमारी का कारण
यह रोग माइकोप्लाज्मा गैलीसैप्टीकम द्वारा फैलता है. ई-कोलाई जीवाणु के संक्रमण पर यह रोग अधिक फैलता है.
लक्षण क्या है इस बीमारी का
ठंड के मौसम में रोगी पक्षियों की दूषित वायु को साँस द्वारा ग्रहण करने पर फैलता है.
रोग से ठीक हुई मुर्गियों के साथ स्वस्थ मुर्गियों को रखने पर भी यह रोग फैलता है.
रोग ग्रसित मुर्गियों के अण्डों से भी नवजात चूजों में यह रोग फैलता है.
पेट में कीड़े, स्थान परिवर्तन, विटामिन ए की कमी, असंतुलित आहार, नमी, ऋतु परिवर्तन, टीकाकरण आदि.
प्रारम्भिक लक्षण रानीखेत व आईबी से मिलते हैं.
इस रोग में श्वास में कठिनाई, नाक से स्राव तथा श्वास नली में रेटलिंग की आवाज आती है.
आहार उपयोग में कमी हो जाती है.
मुर्गी कमजोर व सूख जाती है.
अंडों के उत्पादन में कमी हो जाती है.
बींट पतली हो जाती है.
निष्कर्ष
रोग के निदान एवं उपचार के लिए पशु चिकित्सक से सम्पर्क कर रोग का नियंत्रित करें। रोकथाम के लिये मुर्गी फार्म की सामान्य प्रबन्धन व्यवस्थाएं जैसे भीड़, अमोनिया, धुंआ, धूल, नमी आदि का ध्यान रखते हुए उचित कीटाणुनाशक प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए.
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