नई दिल्ली. गोट फार्मिंग करने वाले किसानों के लिए अच्छी खबर है. जो किसान खास तौर पर बकरों को मीट के लिए पालते हैं, उनके लिए तो ये खबर और ज्यादा अच्छी है. क्योंकि केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान सीआईआरजी मथुरा की एक रिसर्च जिसके जल्द पूरा होने की संभावना है, उसे मीट के लिए बकरा पालने वाले किसानों की इनकम डेढ़ गुना से भी ज्यादा बढ़ाने की बात कही जा रही है. बता दें कि संस्थान में बरबरी, जमनापरी, जखराना, सिरोही, बुंदेलखंडी बकरी और बकरियों के साथ मुजफ्फरनगर भेड़ पर रिसर्च किया जा रहा है. इस रिसर्च में यह शामिल है कि भेड़ का ज्यादा प्रोडक्शन कैसे हो, मृत्यु दर कैसे काम की जाए, दाने और चारे में ऐसा क्या दिया जाए जो खाने से उनकी ग्रोथ को और ज्यादा अच्छा कर दे. दूध ज्यादा और गुणवत्ता वाला हो. इसी कड़ी में संस्थान जीन एडिटिंग पर रिसर्च कर रहा है.
शोध में क्या किया जाएगा
संस्थान के सीनियर साइंटिस्ट एसपी सिंह ने संबंध में बताते हुए कहा कि दैहिकी, जनन और प्रबंधन विभाग में एचओडी एसडी खर्चे के निर्देशन में पिछले डेढ़ साल से जीन एडिटिंग पर रिसर्च की जा रही है. उन्होंने बताया कि इसके तहत बकरे बकरी किसी एक नस्ल पर काम चल रहा है. रिसर्च में बकरियों की जीन को एडिट किया जा रहा है. जो नस्ल के पुराने जीन हैं उन्हें नए जीन से बदला जा रहा है. यानी उनके पुराने जीन से उनसे उनका वजन उनकी नस्ल के हिसाब से 25 किलो ज्यादा हो सकता है. नए जीन को बकरी में ट्रांसप्लांट कर दिया जाएगा. इसके बाद बकरी जो बच्चा देगी, वह नए में आ जाएगा.
मीट के स्वाद को भी परखा जाएगा
उन्होंने दावा किया कि अगर 25 किलो वाले बकरे का वजन 50 किलो नहीं होगा तो कम से कम 40 किलो तो होगा ही. इस रिसर्च का प्रयोग अब बकरियों पर शुरू भी किया जा चुका है. नए जीन के साथ कुछ बकरियों को गर्भवती भी किया गया है. उन्होंने बताया कि जैसे ही नई जीन के साथ बकरी बच्चा का बच्चा बड़ा होगा तो उसका वजन भी उसकी नस्ल के हिसाब से ज्यादा होगा. ऐसे बच्चे पर लैब में फिर से परीक्षण किया जाएगा. प्रशिक्षण में या बात जांची जाएगी कि नए जीन के साथ बड़े हुए खास नस्ल के बकरे के मीट के स्वाद में तो कोई फर्क नहीं आया.
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