नई दिल्ली. दाओथिगीर मुर्गी बैकयार्ड मुर्गी पालन के लिए एक अच्छी नस्ल है. असम के बोडोलैंड क्षेत्र में दाओथिगीर नस्ल की मुर्गी पाई जाती है. मुर्गी पालन किसानों की आय का प्रमुख जरिया बनता जा रहा है. इस व्यवसाय को शुरू करके मुर्गी पालक अच्छी खासी आमदनी कमा सकते हैं. ज्यादातर गांव में मुर्गी पालन इस बात को ध्यान में रखकर किया जाता है कि उनसे मांस भले ही कम मिले लेकिन अंडे ज्यादा मिलें. विशेषज्ञों का कहना है कि मुर्गी पालन के लिए हमेशा ही ऐसी मुर्गियों को चुना जाना चाहिए जो ज्यादा बड़े अंडे देने वाली हों. कई क्षेत्रों में अधिकांश आदिवासी परिवारों की तरफ से अस्थाई तौर घर के आंगन में मुर्गी पालन का बिजनेस किया जाता है.
ज्यादातर किसान देसी नस्लों को पालने में यकीन करते हैं. यह नस्ल अंडे और मांस के उत्पादन में कमजोर होती हैं. इस बात को ध्यान में रखते हुए ही किसानों को आय में इजाफा हो और उन्हें इस बिजनेस में ज्यादा फायदा मिले इसके लिए उन्नत नस्ल की शुरुआत की गई है.
दाओथिगीर मुर्गी: देश में पाई जाने वाली ये एक ऐसी नस्ल है, जिसे विशेष रूप से ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में मुक्त-क्षेत्र खेती के लिए विकसित किया गया है. ये एक लेयर किस्म है और इसे ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में मुक्त-क्षेत्र खेती के लिए विकसित किया गया है. यह मजबूत और स्वस्थ होती है. इनका मांस स्वादिष्ट होता है. इनके अंडों का वजन लगभग 54 ग्राम होता है.
असम की पहचान है ये मुर्गी: दाओथिगीर मुर्गी एक मजबूत और अच्छी नस्ल है जो मांस और अंडे दोनों के लिए बेहतर है और यह बैकयार्ड मुर्गी पालन के लिए एक अच्छी पसंद है. दाओथिगीर मुर्गियां एक अच्छी अंडा उत्पादक हैं. एक साल में करीब 230-240 अंडे दे सकती हैं. असम के धुबुरी, कोकराझार, बारपेटा, बोंगाईगांव और नलबाड़ी जिले में ये पाई जाती हैं. हालांकि अब देश के अन्य हिस्सों में भी इनका पालन किया जाता है. धारीदार या धब्बेदार पंख होते हैं और सफेद के साथ काला रंग होता है. इनकी एकल कंघी, लाल और खड़ी होती है. लाल वॉटल्स और पीला/गुलाबी टांग होती हैं.
मिरी मुर्गियां: देश में पाई जाने वाली एक ऐसी मुर्गी की नस्ल है, जो अपनी कठोरता और स्थानीय परिस्थितियों में अनुकूलन क्षमता के लिए जानी जाती है. मिरी मुर्गियां अपनी विशिष्ट रूप के लिए जानी जाती हैं, जैसे कि रंगीन पंख और अद्वितीय कंघी संरचना. मिरी मुर्गियां असम के सिबसागर, लकीमपुर, धिमाजी, डिब्रूगढ़ और मझौली जिले में मिलती हैं. मादा में मटर के आकार की कंघी होती है और नर में एकल कंघी मिलती है. इनकी आंखें भूरी होती हैं और टांग सफेद पीली होती है.
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