नई दिल्ली. पशुपालन में हरे चारे की बहुत अहमियत है. पशुओं के उत्पादन को बढ़ाने के लिए हरा चारा काफी अहम होता है. इसलिए पशुओं को हरा चारा दिया जाना बेहद जरूरी भी होता है. हालांकि ज्यादा गर्मी और ठंड में भी हरे चारे की कमी हो जाती है. इसलिए पशुपालकों को ऐसी चारा फसल को लगाना चाहिए, जो पशुओं को खिलाने से उसका दूध उत्पादन बढ़ाए और उसमें जरूरी पोषक तत्व हों. बात की जाए पैरा चारा फसल की तो यह घास पशुओं के लिए चारे के रूप में इस्तेमाल की जाती है. यह घास बेहद ही उत्पादक भी है. वहीं पैरा घास की पत्तियां लंबी और संकरी भी होती हैं. इन्हें पशुओं को खिलाया जाता है.
आपको बता दें कि पैरा घास को ब्राजिलियन घास भी कहा जाता है. क्योंकि इसे पहली बार ब्राजील में उगाया गया था. इस को भारत में सबसे पहले 1894 में पूना लाया गया. इसे जल घास या बफैलो घास भी कहा जाता है. इसमें जल जमाव सहने की असीम सहन शक्ति होती है. यह दलदली जमीन में भी उगायी जा सकती है.
मिट्टी एवं जलवायुः यह सभी तरह की मिट्टी में उगायी जा सकती है. बलुई दोमट और मटियार भूमि जहां पानी बहुत ज्यादा है वहां उगाई जा सकती है. यह क्षारीयता आम्लीयता और लवणीय मृदा में भी काफी सहनशीलता होती है. यह गर्म नमी युक्त वातावरण पसंद करती है. यह दलदल, जल जमाव एवं बाढ़ग्रस्त क्षेत्र में भी अच्छी उपज देती है. पैरा घास क्षारीय भूमि का सुधार भी करती है.
खेत की तैयारीः पहली जुताई मिट्टी पलटने वाली दल से की जाती है. फिर तीन-चार जुत्ताई कल्टीवेटर से कर हरेक जुताई के बाद पाटा चलाकर खेत की मिट्टी को हल्की एवं मुर-भुरी बना ली जाती है. खेत को खरपतवार एवं अन्य फसल अवशेषों से मुक्त कर लिया जाता है.
रोपाई: यह फरवरी से मार्च में सिंचित क्षेत्र में रोपाई की जाती है. नेपियर घास की तरह इसके रूप स्लिप कटिंग उपयुक्त होता है. इसके कटिंग को 45 डिग्री के कोण पर खेतों में मेड़ बनाकर मेड़ पर गाड़ देते हैं. आधा कटिंग के भाग को ऊपर रखा जाता है. इसकी रोपाई जून-जुलाई में भी की जाती है.
दूरीः कतार से कतार की दूरी 60 सें.मी. एवं पौधों की दूरी 60 सेंटीी मीटर रखी जाती है.
खाद उर्वरकः 150 क्विंटल कम्पोस्ट प्रति हेक्टेयर की दर से देनी चाहिए. रोपाई के 40 दिनों बाद 110 किग्रा. यूरिया प्रति हेक्टर की दर से डालनी चाहिए. फिर प्रत्येक कटिंग करने के बाद 65 किलोग्राम यूरिया प्रति हेक्टेयर की दर से उपरिवेशन कर देनी चाहिए.
सिंचाईः यह पानी पसंद घास है. इसलिए इसकी खेती सिंचित क्षेत्र में ही की जानी चाहिए. इसकी क्यारी हमेशा नमी युक्त, गीली रहनी चाहिए. इसलिए समय एवं मौसम अनुकूल इसे पटाते रहना चाहिए.
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