नई दिल्ली. पशुपालन व्यवसाय में आहार पर सबसे ज्यादा खर्च होता है. इस वजह से संतुलित आहार का बहुत अहम रोल होता है. हरे चारे से न्यूनतम दर पर पोषक तत्वों की आपूर्ति के कारण इन्हें सर्वोत्तम पशु आहार माना गया है. अकाल की स्थिति होने के कारण इनको उपलब्धता बेहद ही कम हो जाती है. चारे को फसलों की बुआई के बाद पानी के अभाव के कारण फसलों की ग्रोथ रुक जाती है और चारा मुरझाकर सूखने लगता है. इसके कारण अविकसित एवं मुरझाये हुये चारे में टॉक्सीन पैदा हो जाते हैं, जिनके सेवन से पशुओं में खाने से टॉक्सीन की समस्या हो जाती है.
इसी में से एक है नाइट्रेट टॉक्सीन. ये हाई नाइट्रेटयुक्त चारे के सेवन से होती है. चारे में नाइट्रेट की मात्रा सामान्य रूप से ज्यादा नहीं होती, लेकिन जब नाइट्रोजनयुक्त उर्वरक अधिक मात्रा में मिट्टी में दे दिये जाते हैं, तो उस मिट्टी में उगने वाले हरे चारे विशेषकर मक्का, नई सुहान घास आदि में नाइट्रेट की मात्रा बढ़ जाती है.
कब हो जाता है चारा जहरीला
हाई नाइट्रेटयुक्त चारे/पानी के अचानक अधिक मात्रा में सेवन से नाइट्रेट, नाइट्राइट में परिवर्तन हो जाता है, जो बेहद जहरीला होता है. यह खून में पहुंच कर हीमोग्लोबिन को मेट-हीमोग्लोबिन में बदल देता है, जिसके कारण शरीर के ऊतकों में ऑक्सीजन नहीं पहुंच पाती है. चारे में सूखे तौर पर 0.15 प्रतिशत तक नाइट्रोजन नुकसानदायक नहीं होती. जबकि 0.45 प्रतिशत से अधिक मात्रा बेहद जहरीली होती है. इसी तरह पीने के पानी में 100 पीपीएम, नाइट्रोजन हानिकारक नहीं होती, किन्तु 300 पीपीएम से अधिक नाइट्रोजनयुक्त पानी के सेवन से विषाक्त हो जाती है.
क्या हैं इसके लक्षण, पढ़ें
नाइट्रेट टॉक्सीन होने पर पशु की सांस एवं नाड़ी दर बढ़ जाती है. सांस लेने में कठिनाई, मांसपेशियों में ऐंठन व कमजोरी आ जाती है. पशु अपने सिर को पेट की तरफ घुमाकर रखता है व मुंह खुला रखता है. ऑक्सीजन की कमी के कारण आंख, नाक एवं मुंह की श्लेष्मा झिल्ली गहरे रंग की हो जाती है. टॉक्सीन ज्यादती होने पर खून का रंग चाकलेट भूरा हो जाता है और पशु की 4 घंटे में मृत्यु हो जाती है.
कैसे करें उपचार
मेथिलीन ब्लू के 1 प्रतिशत विलयन की 50 से 100 मिली मात्रा सीधे ही नस में देनी चाहिये. एस्कॉर्बिक एसिड 5 मि.ग्रा. शरीर भार के अनुसार नस में देना चाहिये. नाइट्रेटयुक्त चारे की थोड़ी-थोड़ी मात्रा देते हुए लगभग एक माह में इसे और बढ़ाकर पशुओं को दी जा सकती है. छोटे. सूखकर ऐंठे हुए व पीले मुझाये हुए पौधों को चारे के रूप में उपयोग में नहीं लाना चाहिये.
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