नई दिल्ली. भेड़-बकरियों को ज्यादातर एन्थ्रेक्स बीमारी का खतरा रहता है. भेड़ के मुकाबले इसका ज्यादा असर बकरियों पर दिखता है. एन्थ्रेक्स रोग एक ऐसा रोग है, जो एक बार अगर पशु को लग जाए तो फिर इससे मौत भी हो सकती है. इसे कई जगह पर गिल्टी रोग, जहरी बुखार, या पिलबढ़वा भी कहा जाता है. इस बीमारी में भेड़-बकरियों को इंजेक्शन दिया जाता है और इसी से इलाज होता है. इससे बचाव के लिए टीकाकरण भी करवाया जा सकता है. एक्सपर्ट का कहना है कि अगर वैक्सीनेशन करवा दिया जाए तो इस बीमारी से पशुओं की जान बचाई जा सकती है.
बताते चलें बारिश के मौसम में बीमारियें का असर पशुओं पर तेजी के साथ होता है. इस वक्त बारिश हो भी रही है. इसलिए बेहद ही जरूरी है कि पशुओं की हिफाजत की जाए और एक्सपर्ट द्वारा बताए गए तमाम नुस्खों को अपनाया जाए. ताकि पशुओं को हर संभव बीमारी से बचाया जा सके. गौरतलब है कि पशुपालन को लेकर काम करने वाली निविदा संस्था के मुताबिक जुलाई और अगस्त के महीने में 52 शहरों में इस बीमारी के प्रसार का खतरा दिखाई दे रहा है. एक्सपर्ट का कहना है कि पशुओं को बीमारी का खतरा तो हमेशा ही रहता है. इसका सबसे पहला इलाज ये है कि बीमारियों के प्रति जगह रहा जाए.
दो राज्यों में खतरा है ज्यादा
अगर इस बीमारी की बात की जाए तो जलुाई में देश के नौ राज्यों के 29 शहरों में फैल सकती है. जुलाई महीने में यह बीमारी सबसे ज्यादा कर्नाटक में फैलने की आशंका जाहिर की गई है. वहीं तमिलनाडु के 5 शहरों में भी यह बीमारी भेड़ बकरियों को अपनी चपेट में ले सकती है. वही अगस्त के महीने में 23 शहर इस बीमारी की चपेट में आ सकते हैं. जिसमें सबसे ज्यादा नौ शहर कर्नाटक के हैं और सात शहर और सा शहर तमिलनाडु के हैं.
बीमारी के बारे में जानें यहां
इस बीमारी को भेड़ पालक रक्तांजली रोग से जानते है यह रोग जीवाणु द्वारा होता है, भेड़ों की उपेक्षा यह रोग बकरियों में अधिक होता है जिसे गददी भेड़ पालक (गंणडयाली नामक) रोग से जानते है. यह रोग भेड़-बकरियों में बहुत तेज़ बुखार आता है, मृत भेड़-बकरी के नाक, कान, मुंह व गुदा से खून का रिसाव होता है. छूआछूत व संक्रमण से पशुओं में फैलनेवाली एंथ्रेक्स बीमारी जानलेवा है. पशु रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि यह एक एपीडेमिक बीमारी है जो एक बार जिस स्थान पर फैलती है. वहीं उसी स्थान पर बार-बार फैलती रहती है. इसे गिल्टी रोग, जहरी बुखार या पिलबढ़वा रोग के नाम से भी पुकारा जाता है.
इस तरह भेड़-बकरियों को बचाएं
इस रोग से मरे भेड़-बकरियों की खाल नहीं निकालनी चाहिए तथा मृत जानवर को गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए तथा चरागाह को बदल देना चाहिए. बीमार भेड़-बकरियों को एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन चार-पांच दिन पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार देना चाहिए. इस रोग से बचाव हेतू टीकाकरण करवाया जा सकता है.
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