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इस नस्ल का बकरा देश ही नहीं विदेशों में भी खूब किया जाता है पसंद, जानें क्या है इसकी खासियत

नई दिल्ली. जब बकरीद का मौका आता है तो बकरों की खरीद-फरोख्त में बहुत उछाल आता है. इसकी मांग बहुत ज्यादा बढ़ जाती है. गांव से लेकर शहर तक हर जगह बकरों की छोटी बड़ी मंडियां सज जाती हैं. बकरों का खरीदार ये चाहता है कि वो जिस बकरे को खरीदे देखने में खूबसूरत और तंदरुस्त हो. अपनी इस डिमांड को पूरा करने के लिए खरीदार पहले बरबरी नस्ल के बकरे की खूब तलाश करते हैं. वहीं केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा के साइंटिस्ट भी ये कहते हैं कि खूबसूरती और तंदरुस्ती के मामले में बरबरी नस्ल के बकरों को ही सबसे अच्छा माना जाता है. यही वजह है कि बरबरी नस्ल के बकरों की डिमांड देश ही नहीं अरब देशों में भी रहती है.

जानकारों की मानें तो ज्यादातर बकरे और बकरियों की नस्ल के नाम उनके मूल इलाकों के नाम रखे गए हैं. वहीं बरबरी नस्ल के बकरों का नाम भी उनके मूल इलाके अफ्रीकी देश सोमालिया के बेरिया के नाम पर पड़ा था. जबकि संख्या और पालन के लिहाज से बरबरी नस्ल की बकरी—बकरे आज यूपी की खास पहचान बन चुके हैं. खासतौर पर दूध-मीट और जल्दी-जल्दी ज्यादा बच्चे देने के चलते पशु पालक इन्हें खूब पालते हैं. वहीं बरबरे बकरे, ज्यादातर यूपी और राजस्थान ही मिलते हैं. उत्तर प्रदेश में खासतौर पर अलीगढ़, हाथरस, आगरा, मथुरा, फिरोजाबाद, एटा, इटावा और कासगंज जिले में बड़े पैमाने पर इनका पालन किया जाता है.

शहर में भी पाले जाते हैं ये बकरे

सीआईआरजी के बरबरी एक्सपर्ट एमके सिंह कहते हैं कि बरबरी नस्ल को शहरी बकरी भी कहा जाता है. क्योंकि यदि पशु पालक के पास चराने के लिए जगह नहीं है तो इसे खूंटे पर बांधकर या छत पर भी पाला जा सकता है. यदि इन्हें अच्छा चारा खिलाया जाए तो इनका वजन 9 महीने होने तक ही 25 से 30 किलो हो जाता है. एक साल का होने पर ये 40 किलो तक हो जाता है. अगर सिर्फ मैदान या जंगल में चराई कराई जाए तो एक साल का बकरा 25 से 30 किलो का हो जाता है.

कैसे करें बरबरे बकरे की पहचान

साइंटिस्ट एमके सिंह कहते हैं कि बरबरी नस्ल के बकरे और बकरियों की सबसे बड़ी पहचान उनके कान और रंग हैं. इसी से उनकी पहचान की जा सकती है. क्योंकि देश में 37 नस्ल के बकरे और बकरियों में बरबरी नस्ल कुछ ऐसी होती है कि जिसके बकरे और बकरियों के कान ऊपर की ओर उठे हुए नुकीले, छोटे और खड़े होते हैं. उन्होंने कहा कि अगर रंग की बात करें तो सफेद रंग की खाल पर भूरे रंग के धब्बे होते हैं. जबकि इस नस्ल के बकरे और बकरी की नाक चपटी और पीछे का हिस्सा भारी होता है.

ये भी एक पहचान है

बरबरी बकरी 13 से 14 महीने की उम्र पर बच्चा देने लायक हो जाती है.
बरबरी बकरी 15 महीने में दो बार बच्चे देती है.
जब बकरी पहली बार बच्चा देती है तो बाद में दूसरी बार 90 फीसद तक दो से तीन बच्चे देती है.
एक्सपर्ट कहते हैं कि 10 से 15 फीसद तक बरबरी बकरी 3 बच्चे देती है.
बरबरी बकरी 175 से 200 दिन तक दूध देती है.
ये बकरी रोजाना औसत एक लीटर तक दूध देती है.

अरब देशों में होती है खूब डिमांड

बरबरी नस्ल का बकरा वजन में 25 से 40 किलो तक हो जाता है. यही वजह है कि देश के अलावा अरब देशों में बरबरी नस्ल के बकरे की खासी डिमांड रहती है. इस बरबरे बकरे को मीट के लिए खासतौर पर पसंद किया जाता है. डिब्बा बंद मीट के साथ जिंदा बरबरे बकरे भी सऊदी अरब, कतर, यूएई, कुवैत के साथ ही ईरान-इराक में एक्सपोर्ट किए जाते हैं. देखने में भी बरबरी नस्ल के बकरे बहुत खूबसूरत होते हैं तो बकरीद के मौके पर लोग कुर्बानी के लिए मुंह मांगे दाम देते हैं.

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