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Goat Farming: इस तकनीक से मिलते हैं उन्नत नस्ल के बकरे-बकरी और मिलता है अच्छा प्रोडक्शन

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. देश में कुल पशुधन 485 मिलियन है जिसमें गौ-पशु 185.18 मिलियन, भैंस 61-47 मिलियन एवं बकरियां 135.17 मिलियन हैं. देशभर में 43.78 प्रतिशत वध एवं 15 प्रतिशत मृत्युदर के बावजूद भी बकरियों की संख्या में हर साल औसतन 3.5 प्रतिशत की दर से बढ़ रही है. इसी वजह से विकासशील देशों में बकरी पालन व्यवसाय का योगदान काफी महत्वपूर्ण हो गया है. वैसे तो देश में गरीब लोग जिंदगी गुजारने के लिए बकरी पालन करते रहे हैं लेकिन अब बकरी पालन केवल गरीब तक ही सीमित न रह कर एक उद्योग के रुप में पनप रहा है. जिसमें पैसे वाले लोग भी बकरी पालन में आगे आ रहे हैं.

अब बकरी पालन से दूध प्राप्ति के साथ-साथ मांस, खाल, बाल एवं खाद के विक्रय से अच्छी आय हासिल की जाती है. यहां जरूरी बात ये है कि बकरी पालने के लिए हमेशा ही उत्तम पशुओं को चुना जाए. तभी ज्यादा उत्पादन एवं लाभ की आशा की जा सकती है. गोट एक्सपर्ट कहते हैं कि अच्छे उत्पादन के लिए नर और मादा को छांटकर प्रजनन करा कर इच्छित गुणों वाला पशु पैदा कराया जा सकता है. प्रजनन से पहले अच्छी तरह अध्ययन कर लेना चाहिए किस प्रजनन विधि को अपनाया जाए. जिससे अच्छा पशु हासिल हो.

तीन हिस्सों में बांट सकते हैं
भारत की बकरियों की नस्लें उपयोग के अनुसार तीन प्रकार की हैं. (1) दूध देने वाली जैसे जखराना, जमुनापारी आदि. (2) मांस उत्पादन करने वाली जैसे गंजम, ब्लैक बंगाल. (3) दोगली नस्लें जो कि मांस एवं दूध दोनों के लिए उपयोग किए जा सके. रिसर्च ये कहती है कि कुछ नस्लें मांस उत्पादन के साथ साथ पर्याप्त मात्रा में दूध भी दे सकती हैं. जैसे बरबरी नस्ल की बकरी. अन्य नस्लों में दो गुणों की वृद्धि करना केवल संकरण प्रजनन की विधियों को अपनाने से ही हो सकता है.

इस तरह तैयार की जाती है उन्नत नस्ल
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की अखिल भारतीय समन्वित बकरी उन्नयन परियोजना ने भारत में बकरियों के लिए एक ऐसी प्रजनन नीति बनाई है. जिस नीति के अनुसार हर राज्य को कई भागों में बांटकर वहां के लिए वहीं की उचित नस्लों को उन्नयन करने की योजना चलाई गई है. इस नीति का मुख्य उद्देश्य यह है कि वहां स्थानीय नस्लों में चयनित प्रजनन करके तथा अशुद्ध नस्ल की बकरियों में सुधार किया जाए. इसके तहत कुछ फार्म बकरों को तैयार करने के लिए भी खोले गये हैं. वहां सरकारी खर्चे के द्वारा बकरों को तैयार किया जाता है तथा इनका गांवों में कम दर पर किसानों को बेच दिया जाता है. या इनका वितरण गरीब बकरी पालकों को मुफ्त किया जाता है.

इस परीक्षण से गुजरता है बकरी
कई केन्द्रों पर उन्नतशील बकरे बांटने के लिए चयनित बकरी प्रजनकों से बकरों को परियोजना के अंतर्गत खरीद भी लिया जाता है. चयनित प्रजनन प्रणाली से बकरों की प्रजनन शक्ति की परीक्षण में मदद मिलती है. देखा जाता है कि बकरे से कितने मेमनें हुए और मादाओं ने अपनी माताओं से अधिक दूध दिया हैं या नहीं. यह सिद्ध हो जाने पर कि बकरे की मादाओं ने अपनी माओं से अधिक दूध दिया है वह बकरा उत्तम होता है.

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