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बकरियों के बिक रहे रेडीमेड दो मंजिला मकान का क्या है फायदा, कितनी है इसकी कीमत

नई दिल्ली. ये बात तो सभी पशु पालक जानते ही होंगे कि बारिश के मौसम में उन्हें पशुओं को बचाने के लिए बहुत ही जहमत उठानी पड़ती है. बारिश में जब जलभराव होता है तो ये पशुओं को भी उनता ही परेशान करता है, जितना आम इंसान को. यदि पशुओं के बाड़े में जलभराव हो जाता है तो कई बार तो पूरी रात खड़े-खड़े उन्हें गुजारना होता है. जबकि सबसे ज्यादा दिक्कत ये होती है कि बाड़े में बीमारी फैलने का खतरा बहुत ज्यादा बढ़ जाता है. क्योंकि बारिश के मौसम में डायरिया, खुरपका-मुंहपका और पेट के कीड़ों जैसी तमाम बीमारी हो जाती है. हालांकि इसका भी तोड़ निकल आया है. क्योंकि बकरियों को इस परेशानी से बचाने के लिए प्लाास्टिक के रेडीमेड मकान बाजार में उपलब्ध है. दो मंजिला मकान में पहली मंजिल पर बड़ी बकरियोंको रखने के साथ ही दूसरी मंजिल पर बकरियों बच्चों को रखने की व्यवस्था होती है.

बता दें कि कम जगह होने पर भी बकरी पालन के लिए भी ये रेडीमेड मकान बहुत ही अच्छे साबित हो रहे हैं. केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने बकरी पालन में जगह की कमी को दूर करने के लिए ये दो मंजिला मकान का रास्ता निकाला है. दावा किया जा रहा है कि एक बार इस मकान को बनाने के बाद 18 से 20 साल तक यह मकान चल जाता है. वहीं बकरियों के लिए बने इस प्लास्टिक के इस दो मंजिला मकान में इसकी भी व्यवस्था की गई है कि ऊपरी मंजिल की मेंगनी और बच्चों का यूरिन नीचे बड़ी बकरियों पर न गिरे. इसके लिए बीच में प्लास्टिाक की एक शीट लगाई गई है. इससे बकरी के बच्चों का यूरिन और मेंगनी मकान के किनारे की ओर गिरती हैं.

बच्चे बीमारी से बच जाते हैं

इसका फायदा एक ये भी होता है कि दो मंजिला मकान के इस मॉडल से बकरी की मेंगनी सीधे मिट्टी के संपर्क में नहीं आती, जिसे मेंगनी पर मिट्टी नहीं लगती है और उसकी खाद बनाने में किसी तरह की कोई दिक्कत भी नहीं आती है. यही वजह है कि इस तरह से मेंगनी के अच्छे दाम भी मिल जाते हैं. वहीं सीआईआरजी के प्रिंसीपल साइंटिस्ट डॉ. अरविंद कुमार ने बताया कि बताया कि दो मंजिला मकान से सिर्फ जगह की कमी को ही नहीं पूरा किया जा सकता है बल्कि इसका फायदा यह भी है कि बकरी के बच्चे बीमारियों से बचाए जा सकते हैं. जिन बीमारियों से बचाने के लिए अच्छी खासा पैसा खर्च करना पड़ता है. जब बच्चे मकान के ऊपरी मंजिल पर
रहते हैं तो वो मिट्टी के संपर्क में नहीं आते. इससे वो मिट्टी खाने से बच जाते हैं. नहीं तो बकरी के छोटे बच्चे मिट्टी खाने के चलते बीमार हो जाते हैं, उनके पेट में कीड़े पड़ जाते हैं.

चारा गंदा नहीं होता है तो बच जाते हैं बीमारियों से

वहीं डॉ. अरविंद कुमार ने कहा कि रेडीमेड मकान का दूसरा फायदेमंद पहलू ये भी है कि बकरियों के शेड में बहुत सारा चारा जमीन पर गिर जाता है. इसमें बकरी का यूरिन और मेंगनी (मैन्योर) भी मिल जाता है. जब कभी बकरी के बच्चे इस चारे को खाते हैं तो इससे भी उनमें बीमारी होने का खतरा रहता है. यदि जमीन कच्ची नहीं है तो यूरिन से उठने वाली गैस से भी बकरी और उनके बच्चे बीमार पड़ जाते हैं. उन्होंने कहा कि एक बड़ी बकरी को रहने के लिए डेढ़ स्वाकायर मीटर जगह की जरूरत होती है. वहीं इस दो मंजिला मकान का जो मॉडल बनाया है वो 10 मीटर चौड़ा और 15 मीटर लम्बा बनाया गया है.

कहा कि इस मॉडल वाले मकान में नीचे 10 से 12 बड़ी बकरी को रखे जाने की व्यवस्था है. जबकि ऊपरी मंजिल पर 17 से 18 बकरी के बच्चों को बड़ी ही आसानी से रखा जा सकता है. इस साइज के मकान की लागत 1.80 लाख रुपये तक आती है. इस मकान को बनाने में इस्तेमाल होने वाली लोहे की एंगिल और प्लास्टिक की शीट बाजार में बहुत ही आसानी से मुहैया हो जाती है. जबकि बच्चों को रखने के लिए लिए ऊपरी मंजिल पर बनाए गए फर्श को कई कंपनियां बेचती हैं, ये आनलाइन भी उपलब्ध है.

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