नई दिल्ली. एक वक्त था कि जब बकरी पालन को गरीबों का व्यवसाय कहा जाता था. बकरी को गरीबों की गाय भी कहा जाता था. गरीब लोग बकरी को पालकर अपनी आजीविका चलाते थे. लेकिन अब बहुत से लोग बड़े पैमाने पर बकरी पालन कर रहे हैं. इसके लिए लाखों रुपयों का इंवेस्ट किया जा रहा है. कई बकरी पालक तो लाखों की नौकरी छोड़कर इस कारोबार से जुड़े हैं. बकरी पालन के लिए बड़े और व्यस्थित शेड तैयार किए जाते हैं और हर साल लाखों में कमाई होती है. बकरी पालन एक बेहतरीन व्यवसाय है लेकिन जब बकरियां बीमार पड़ने लगती हैं तो इसमें नुकसान होने का खतरा रहता है.
बकरियों और बकरों को बीमारियों से बचने के लिए उनकी देखभाल जन्म के बाद से ही शुरू कर देनी चाहिए. उनकी साफ-सफाई, खान-पान, सर्दी और गर्मी से बचाव आदि की व्यवस्था करनी चाहिए. ऐसा करने से न सिर्फ बकरियों को बीमारियों से बचाया जा सकता है. बल्कि बेहतर प्रोडक्शन भी लिया जा सकता है. वहीं बकरियों को समय-समय पर दवाएं दी जानी चाहिए. उनका वैक्सीनेशन भी करना चाहिए. इससे बकरियां बीमारियों से सेफ हो जाती हैं.
कब पिलानी चाहिए कीड़ों के लिए दवा
बकरियों को पेट में होने वाले कीड़ों की शिकायत होती है. इस बीमारी से छुटकारा पाने के लिए बारिश से पहले और बारिश के बाद दवा पिलानी चाहिए. एक्सपर्ट का कहना है कि दवा पिलाने का सही वक्त तब होता है जब मेमनों की उम्र तीन माह के ऊपर हो जाती है. अगर शरीर के ऊपर कीड़े हैं तो मार्च और अक्टूबर में दवा देनी चाहिए. बूटाक्स या इक्टोमिन के 0.1 फीसदी घोल से नहलाना चाहिए. यह काम जब बकरी का बच्चा एक माह का हो जाए तब कर लेना चाहिए.
इन बीमारियों के लिए लगवाएं वैक्सीन
पीपीआर रोग के लिए किसी भी समय जब बकरी के बच्चे की उम्र तीन माह के ऊपर हो जाए तो टीका लगवा देना चाहिए. खुरपका—मुंहपका के लिए भी किसी भी उम्र में टीका लगाया जाता है. एंटरोटॉक्सिमिया के लिए भी तीन माह से ऊपर के बच्चों को टीका लगाया जाता है. गलाघोंटू और बकरी की चेचक के लिए भी बकरी के बच्चे को 3 महीना का हो जाने देना चाहिए और वैक्सीनेशन करना चाहिए. गलाघोंटू और बकरी चेचक के लिए 5 से 7 दिन तक टीका लगाया जाता है. 2 से 6 माह तक के बच्चों को टीका लगता है.
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