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Animal Husbandry: गोबर की खाद बनाने का क्या है वैज्ञानिक तरीका, इससे क्या होगा फायदा, पढ़ें यहां

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प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. रासायनिक खादों के गैरजरूरी और ज्यादा इस्तेमाल से मिट्टी की उर्वराशक्ति धीरे-धीरे कम होती जा रही है. इसके कारण मिट्टी में सूक्ष्मजीवों की गतिविधि पर बुरा असर पड़‌ता है. इसके अलावा रासायनिक खादों का मूल्य भी अधिक होने के कारण किसानों को खाद्यान्न उत्पादन पर ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ता है. इसके विपरीत गोबर की खाद जिसे ‘फार्म यार्ड मैन्योर’ भी कहा जाता है. यह गोबर, पशुओं के पेशाब, छोड़ा हुआ तूड़ा इत्यादि के सही गलने और सड़ने से बनती है. सस्ती होने के साथ-साथ यह मिट्टी में सभी प्रकार के मुख्य पोषक तत्वों जैसे-नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, कैल्शियम, मैग्नीशियम, सल्फर व सूक्ष्म पोषक तत्व जैसे आयरन, मैग्नीज, कॉपर और जिंक, पौधों की वृद्धि के लिए चीजों को प्रदान करती है.

एक्सपर्ट राकेश कथवाल और कृष्णा भारद्वाज कहते हैं कि भौतिक, रासायनिक और जैविक विशेषताओं में भी इजाफा करती है. यह मिट्टी की पानी सोखने की क्षमता को भी बढ़ाती है. सान, गोबर की खाद बनाते समय पशु मूत्र का प्रयोग बहुत कम करते हैं. पशु के पेशाब प्रतिशत नाइट्रोजन और 1.35 प्रतिशत पोटेशियम होता है. पेशाब में मौजूद नाइट्रोजन यूरिया के रूप में उपलब्ध होता है. जो गैस के रूप में उड़ जाती है. इसके साथ ही स्टोर करने के समय गैस के रूप और नीचे जाने के कारण नाइट्रोजन कम हो जाता है. गोबर की खाद सही तरीके से बनाने के लिए ट्रेंच खोदनी चाहिए.

फिर दूसरा गड्ढा बा ​लें
पशु पेशाब को सोखने के लिए तूड़ा, मि‌ट्टी इत्यादि को पशु के पेशाब पर डाल दिया जाता है. अगले दिन इस मिश्रण को गोबर समेत ट्रेंच या गड्‌ढे में डाल दिया जाता है. प्रतिदिन गड्‌ढे के एक ओर गोबर, मूत्र व व्यर्थ तूड़े को डालते रहें. जब यह भाग भूमि तल से 45 से 60 सें.मी. ऊंचा हो जाए, तो इसे गोलाकार करके गाय के गोबर और मिट्टी के घोल से लीप दें. इस तरह एक गड्‌ढा भरने के बाद दूसरा गड्‌ढा बनाना चाहिए और यही प्रक्रिया दोहरानी चाहिए। इस तरह गोबर की खाद 4 से 5 महीने में बनकर तैयार हो जाती है.

बुआाई से पहले डाल दें
यदि मूत्र को पहले नहीं लिया गया हो, तो सीमेंट से बने गड्ढे में बाद में भी मिलाया जा सकता है. पेशाब व यूरिया को खराब जाने से रोकने के लिए इसमें रासायनिक प्रोटेक्टर जैसे जिप्सम और सुपर फॉस्फेट मिलाये जाते हैं. इन्हें शेड के नीचे डाला जाता है. ये पेशाब को सोख लेते हैं. तैयार खाद को तुड़ाई से 3 से 4 हफ्ते पूर्व खेत में डालना चाहिए. बाकी बची सड़ी खाद को बुआई के तुरंत पहले डाल देना चाहिए. आमतौर पर 10-20 टन प्रति हैक्टर गोबर की खाद डाली जाती है. चारा फसलों और सब्जियों में 20 टन से ज्यादा खाद प्रति हैक्टर डाली जाती है.

तुरंत न मिलाएं ये तत्व
आलू, टमाटर, शकर कदी, गाजर, मूली, प्याज इत्यादि फसलों में गोबर की खाद डालने से पैदावार में अच्छे परिणाम आते हैं. गन्ना, धान, नेपियर घास और बागवानी के फलदार पौधों जैसे-संतरा केला, आम और नारियल इत्यादि में गोबर की खाद के सकारात्मक प्रभाव देखे जा सकते हैं. गोबर की खाद से नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम तुरंत नहीं मिलते हैं. इसमें 30 प्रतिशत नाइट्रोजन, 60 से 70 प्रतिशत फॉस्फोरस और 70 प्रतिशत पोटेशियम ही पहली फसल को खाद से प्राप्त होते हैं.

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