नई दिल्ली. दूध के लिए गाय, भैंस, बकरी और भेड़ को बचाने और उनका पालन करने के लिए सरकार से लेकर पशुपालन तक कवायद करते हैं, मगर क्या कभी सुना है कि गधी का भी अब संरक्षण किया जा रहा है. अगर आपने इस बारे में नहीं सुना तो हम आपको बताते हैं कि दूध के लिए हलारी गधी को बचाने की कोशिश पुरजोर से हो रही है. इसके लिए नेशनल ब्यूगरो आफ एनिमल जेटेटिक रिसोर्सेज यानी एनबीएजीआर हरियाणा पूरी कोशिश में लगा है. वहीं गुजरात भी इस ओर काफी ध्यान दे रहा है. इस प्रजाति के गधों की तीन नस्ल पंजीकृत हैं, जिसमें हलारी सबसे प्रमुख नस्ल मानी जाती है. भारत सरकार के केंद्रीय पशुपालन विभाग की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में हलारी नस्ल के महज 439 गधे ही बचे हैं. अब सरकार इस प्रजाति को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है. बता दें कि हलारी नस्ल के ज्यादातर गधे मालधारी समुदाय के ही पास हैं.
हलारी नस्ल के ज्यादातर गधे मालधारी समुदाय के ही पास
दूध के लिए हलारी गधी को बचाने की कोशिश पुरजोर से हो रही है. इसके लिए नेशनल ब्यूगरो आफ एनिमल जेटेटिक रिसोर्सेज यानी एनबीएजीआर हरियाणा पूरी कोशिश में लगा है. इस प्रजाति के गधों की तीन नस्ल पंजीकृत हैं, जिसमें हलारी सबसे प्रमुख नस्ल मानी जाती है. देश में हलारी नस्ल के महज 439 गधे ही बचे हैं. हलारी नस्ल के ज्यादातर गधे मालधारी समुदाय के ही पास हैं. पशुओं को माल और जो पशुओं के मालिक हैं उन्हें धारी कहा गया है. इन्हीं दो शब्दों को मिलाकर मालधारी बना है. मालदारी समुदाय खासतौर पर गुजरात के जामनगर, द्वारका और राजकोट में रहता है. ये समुदाय उत्तर प्रदेश राजस्थान से गया है. इनका पूरा जीवन यापन पशुओं के पालने पर ही निर्भर करता है. साल के 7 से 8 महीने यह लोग पशुओं को चराने के लिए घर से बाहर रहते हैं.
सात साल में कैसे घट गए सैकड़ों गधे
मार्च, 2022 में गुजरात की एनजीओ सहजीवन ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था. एनजीओ सहजीवन पशुओं की ब्रीड को बचाने के लिए धरातल पर काम करती है. इस ब्रीड में हलारी गधा भी शामिल है. इसी कार्यक्रम में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला भी शामिल हुए थे. कार्यक्रम के दौरान मंत्री ने बताया था कि वर्ष 2015 में हलारी गधों की संख्या 1200 दर्ज की गई थी. लेकिन साल 2020 में भारत सरकार के केंद्रीय पशुपालन विभाग की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में हलारी नस्ल के महज 439 गधे ही बचे हैं.
जानिए गधों की वो तीन नस्ल
नेशनल ब्यूगरो आफ एनिमल जेटेटिक रिसोर्सेज यानी एनबीएजीआर, करनाल के मुताबिक भारत में प्रमुख तौर पर गधों की तीन नस्ल हैं, जिन्हें रजिस्टर्ड किया गया है. इसमे गुजरात की दो कच्छी और हलारी है. वहीं हिमाचल की स्पीतती नस्ल. बड़ी तादाद में ग्रे रंग के ये गधे यूपी में भी पाए जाते हैं. लेकिन यह नस्ल पंजीकृत नहीं है.अच्छी नस्लो के गधों के मामले में गुजरात अव्वल है. विशेषज्ञों के अनुसार दूध की डिमांड के चलते अब गधी की मांग बहुत ोने लगी है.
ऐसे करें हलारी गधों की पहचान
आम तौर पर लोग गधों की नस्ल के बारे में नहीं जानते, मगर इनकी भी कई प्रमुख नस्लें होती हैं. अगर हम हलारी गधे के बारे में बात करें तो आमतौर पर सफेद रंग के होते हैं. मुंह और नाक के पास की जगह काली होती है. इनके खुर भी काले होते हैं. माथा ज्यादातर उभरा होता है. हलारी गधे का शरीर मजबूत और दूसरे गधों के मुकाबले आकार में बड़ा होता है. हलारी गधे की औसत ऊंचाई 108 सेमी और गधी की 107 सेमी होती है. गधे की औसत लंबाई 117 सेमी और गधी 115 सेमी की होती है. एक दिन में यह गधे 35 से 40 किमी तक का सफर तय कर लेते हैं.
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