नई दिल्ली. भारतीय मृदा एवं जल संरक्षण संस्थान (आईसीएआर-आईआईएसडब्ल्यूसी), देहरादून में आयोजित उत्तराखंड में मत्स्य पालन प्रौद्योगिकियों और अवसरों पर मछली पालकों का प्रशिक्षण 9 मार्च 2024 को संपन्न हुआ. यह 5 से 9 मार्च 2024 तक आयोजित प्रशिक्षण कार्यक्रम के तीसरे बैच के रूप में प्रायोजित किया गया था. उत्तराखंड राज्य मत्स्य पालन विभाग निदेशालय, देहरादून द्वारा विभाग की अनुसूचित जाति उप-योजना (एससीएसपी) योजना के प्रावधान के तहतआईसीएआर-आईआईएसडब्ल्यूसी के निदेशक डॉ. एम मधु ने किसान प्रशिक्षुओं से पाठ्यक्रम के विभिन्न पहलुओं के दौरान प्राप्त तकनीकों और ज्ञान को लागू करने का अनुरोध किया. उन्होंने सरकारी और विकास एजेंसियों के अलावा समुदायों और समूहों के बीच बेहतर समन्वय और बातचीत के लिए कृषि सहकारी समितियों और किसान समितियों पर जोर दिया.
डॉक्टर एम मुरुगानंदम, प्रधान वैज्ञानिक और प्रमुख (पीएमई और केएम) इकाई, आईसीएआर-आईआईएसडब्ल्यूसी, पाठ्यक्रम के समन्वयक ने विभिन्न सवालों और खेती से संबंधित आशंकाओं का जवाब देते हुए नई तकनीकों और उन्नत खेती की अवधारणाओं को सीखने में उनकी रुचि की सराहना की. उन्होंने बताया कि इस प्रशिक्षण से संसाधनों के बेहतर प्रबंधन और उत्पादन क्षमता में सुधार के लिए अनुसंधान उत्पादन और कृषि ज्ञान के बेहतर अनुवाद के लिए उत्तराखंड राज्य मत्स्य पालन विभाग, आईसीएआर-आईआईएसडब्ल्यूसी और राज्य के कृषक समुदायों के बीच तालमेल आया है.
खेती में ड्रोन के बारे में दी जानकारी
मानव संसाधन विकास एवं एसएस प्रभाग के प्रमुख डॉ चरण सिंह ने किसान-केंद्रित संसाधन संरक्षण पर विचार प्रस्तुत किए. पादप विज्ञान के प्रमुख डॉ जेएमएस तोमर ने वन संसाधन प्रबंधन और एकीकृत खेती पर जोर दिया. वरिष्ठ वैज्ञानिक (मृदा विज्ञान) डॉ एम शंकर ने उपयोग का प्रदर्शन किया सेलाकुई अनुसंधान फार्म में खेती में ड्रोन के बारे में जानकारी दी गई. वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. रमन जीत सिंह ने कृषि संबंधी मुद्दों के बारे में बताया और वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. तृषा राय ने मृदा स्वास्थ्य प्रबंधन पर विवरण साझा किया.
इन वैज्ञानिकों ने दिया प्रशिक्षण
सीटीओ राकेश कुमार और सीटीओ सुरेश कुमार ने दखरानी में अनुसंधान फार्म और राज्य मत्स्य पालन विभाग मछली हैचरी का क्षेत्रीय दौरा किया और संग्रहालय का दौरा किया. वरिष्ठ वैज्ञानिक एर एसएस श्रीमाली, वैज्ञानिक डॉक्टर सादिकुल इस्लाम, एसीटीओ एर अमित चौहान, एचएस भाटिया और डॉक्टर प्रमोद लावटे, एसटीओ, आईआईएसडब्ल्यूसी के अलावा राज्य मत्स्य पालन विभाग के अधिकारियों के अलावा अनिल कुमार, उप निदेशक और डॉ. बिपिन विश्वकर्मा, वरिष्ठ शामिल हैं. राज्य मत्स्य पालन विभाग के मत्स्य निरीक्षक ने पूरे प्रशिक्षण कार्यक्रम को सुविधाजनक बनाया.
एकीकृत खेती, ट्राउट खेती के बारे में भी बताया
जानकारी के लिए किसानों को मछली फार्म और दखरानी मछली हैचरी में ले जाया गया. संस्थान के सेलाकुई रिसर्च फार्म में अनुसंधान आधारित मॉडल और सिस्टम तथा खेती-किसानी में ड्रोन के उपयोग के बारे में बताया जाता है. किसानों को बहु-विषयक वैज्ञानिकों के साथ बातचीत करने और विभिन्न कृषि समस्याओं और उनके समाधानों पर ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिला. विशेष रूप से एकीकृत खेती, ट्राउट खेती, पंगेशियस खेती, म्यूरल खेती, मिश्रित कार्प खेती, और रीसर्क्युलेटरी मछली पालन प्रणाली और बायोफ्लॉक फ्रेमिंग सिस्टम जैसी उन्नत प्रौद्योगिकियों के बारे में बताया.
सात जिलों के मछली पालकों को दिया प्रशिक्षण
प्रशिक्षण कार्यक्रम से पिथौरागढ़ और उदम सिंह नगर सहित उत्तराखंड के सात दूर-दराज के जिलों के 26 युवाओं सहित कुल 47 मछली किसानों को प्रशिक्षण लिया. अंत में फीडबैक सत्र के दौरान, प्रशिक्षुओं ने मछली पालन, उन्नत कृषि प्रौद्योगिकियों और 5 दिनों के प्रशिक्षण कार्यक्रम की समग्र पाठ्यक्रम सामग्री पर प्राप्त ज्ञान के अपने अनुभव साझा किए. उन्होंने अपने कृषि प्रयासों और उत्पादन को बेहतर बनाने के लिए संस्थान और वैज्ञानिकों के साथ दीर्घकालिक संबंध रखने में रुचि व्यक्त की.
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