नई दिल्ली. किसान मछली पालन की तरफ तेजी से रुख कर रहे हैं. मछली पालन करके अपनी आय में इजाफा कर रहे हें. इंसानों के शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, विटामिन, खनिज लवण आदि की ज्यादा जरूरत होती है. जिसकी पूर्ति मछली से बहुत ही आसानी से की जा सकती है. एक्सपर्ट का कहना है कि मछलियों में लगभग 70-80 प्रतिशत पानी, 13-22 प्रतिशत प्रोटीन, 1-3.5 प्रतिशत खनिज पदार्थ एवं 0.5-20 प्रतिशत चर्बी पायी जाती है. जिस कारण मछली का आहार काफी पौष्टिक माना गया है. इसलिए मछली की मांग आने वाले वक्त में और ज्यादा बढ़ेगी और ये सेक्टर ज्यादा मुनाफे वाला साबित होगा.
पशुपालन हो, पोल्ट्री या फिर मछली पालन, बीमारी सभी की दुश्मन है. मछली पालन में भी बीमारी का खतरा बहुत होता है. अगर एक बार मछली को बीमारी होने लगी तो फिर तेजी के साथ मरने लगती है और फिर इसका नुकसान मछली पालक को होता है. इसलिए जरूरी है कि मछली पालक को पता हो कि मछली के बीमार होने के क्या-क्या लक्षण हैं. एक्सपर्ट कहते हैं कि आमतौर पर रोगी मछली को पहचानने का एक बहुत आसान तरीका यह है कि मछली को पलट दें. पलटने पर यदि आंख की पुतली चलती दिखाई दे तो मछली स्वस्थ है और अगर आंख की पुतली न पलटे तो मछली रोगी है. आइए इस खबर में आपको अन्य तरीकों के बारे में भी बताते हैं.
मत्स्य रोगों के सामान्य लक्षण
मछलियों में बीमारियों के लक्षण भिन्न भिन्न होते है. स्वस्थ मछली चमकीली और साफ रंग की होती है एवं शरीर चोट रहित होता है. बीमार मछलियों में अनेक प्रकार के परिवर्तन देखे जा सकते हैं, जिनको निम्न श्रोणियों में बांटा जा सकता है.
1. व्यवहारिक लक्षण
-मछलियों द्वारा दिये गये खाद्य पदार्थों को ग्रहण न करना.
-मछलियों का तालाब के किनारों एवं सतह पर आना.
-पानी के प्रवेश द्वार पर आना एवं खरपतवार के नीचे रहना.
-उल्टा सीधा चक्कर लगाना एवं सुस्त होकर धीरे-धीरे पानी में तैरना.
-मछलियों का एक साथ एकत्र होना.
-कुछ आवाज करने पर भी मछलियों का सतह पर आते रहना.
2. शारीरिक लक्षण
इस तरह के लक्षणों की जांच रोग ग्रस्त मछलियों के परीक्षण से प्राप्त होती है.
-मछलियों के शरीर पर अत्याधिक म्यूकस (लसलसा द्रव्य) का निकलना.
-शरीर के रंग का पीला पड़ जाना या बदरंग होना.
-शरीर के ऊपर छोटे-छोटे घाव या पंखों के नीचे हल्के-हल्के लाल-लाल घाव दिखाई देना.
-शरीर के ऊपर सफेद या काले रंग के दाग या चकत्ते दिखाई देना.
-पेट का फूलना एवं शल्कों का निकलता अथवा शल्कों के बीच में द्रव्य जमा होना.
-मछलियों के पंखों का टूटना अथवा सड़ना.
-मछलियों की आंखों में सूजन आ जाना.
-मछलियों का शरीर अत्यधिक पतला और सिर बढ़ा दिखाई देना.
-गलफड़ों का टूटना एवं सड़ना, इनमें सफेद रंग की ग्रंथि आकार के कोष्ठ का दिखाई देना.
-मछलियों के मुंह की धुधनी का बढ़ जाना.
-गलफड़ों का रंग अत्याधिक गुलाबी दिखाई देना.
-गलफड़ों तथा शरीर के घावों के ऊपर या पंखों में रुई जैसी संरचना का दिखना.
3. आंतरिक लक्ष्ण
-आंतरिक रोग के परिवर्तनों को प्रयोगशाला में मछली के उदर को काट कर देखा जा सकता है.
-आंत एवं बाह्य भित्ति के बीच गाडे़ सड़न वाले द्रव्य (मवाद) अथवा पानी जैसे द्रव्य का निकलना।
-जिगर का रंग असामान्य होना.
-गुर्दों का टूटा या सड़ा दिखाई देना.
-आंत में कृमि आदि का मिलना.
-जिगर, गुर्दे अथवा अन्य आंतरिक अंगों में छोटे-छोटे गांठ (सिस्ट) दिखाई देना.
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