नई दिल्ली. जिस तरह से इंसानों को और पशुओं को बीमारी लगती है. उसी तरह से मछलियां भी बीमारी होती हैं. मछलियों में कई बीमारियां है जो उसकी ग्रोथ और प्रोडक्शन दोनों पर ही असर डालती है. मछलियों में परजीवी जनित बीमारी यानि पैरासिटिक बीमारियां भी होती हैं. अंदर के परजीवी, मछली के अंदर के अंगों जैसे से बॉडी कैविटी, ब्लड वैसेल, किडनी आदि में रोग फैलाते हैं. जबकि बाहरी परजीवी मछली के चमड़े, गलफड़ो, पंखों आदि को रोग ग्रस्त कर देते हैं.
इन्हीं बीमारियों में आज हम पांच बीमारियों का इस आर्टिकल में जिक्र कर रहे हैं. जो परजीवी जनित रोग कहे जाते हैं. इसमें ट्राइकोडिनोसिस, माइक्रो एवं मिक्सोस्पोरीडिएसिस, सफेद धब्बेदार रोग, डेक्टाइलो गाइरोसिस व गाइरो डेक्टाइलोसिस और आरगुलौसिस मुख्य हैं. इन बीमारियों के लक्षण और उपचार आदि के बारे में इस आर्टिकल में आपको जानकारी मिलेगी.
- ट्राइकोडिनोसिस-
लक्षण- यह बीमारी ट्राइकोडीना नामक प्रोटोजोआ परजीवी से होता है जो मछली के गलफड़ो व शरीर की बाहरी सतह पर रहता है. संक्रमित मछली में ढीलापन, भार में कमी तथा मरने जैसे अवस्था आ जाती है. गलफड़ों से अधिक मूकस डिसचार्ज होता है. जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है.
उपचार- रसायनों के घोल में संक्रमित मछली को 1-2 मिनिट डूबाकर रखा जाता है.
- 1.5 प्रतिषत सामान्य नमक घोल
- 25 पी.पी.एम. फार्मेलिन
- 10 पी.पी.एम. कॉपरसल्फेट (नीला थोथा) घोल.
2. माइक्रो एवं मिक्सोस्पोरीडिएसिस-
लक्षण- माइक्रोस्पोरीडिएसिस रोग मुख्य रूप से अंगुलिका अवस्था में अधिक होता है ये कोषिकाओं में फिलामेंटस हेल्मिंथ बनाकर रहते हैं. तथा उत्तको को भारी नुकसान पहुंचाते हैं. मिक्सोस्पोरीडिएसिस रोग मछली के गलफडों व चर्म को संक्रमित करता है.
उपचार- इनकी रोकथाम के लिए कोई दवा पूरी तरह से फायदमेंद नहीं है. इसलिए रोग ग्रस्त मछली को बाहर निकाल देते है. मत्स्य बीज संचयन के पूर्व चूना, ब्लीचिंग पावडर से पानी को रोगाणुमुक्त करते हैं.
- सफेद धब्बेदार रोग-
लक्षण- यह रोग इक्थियोथिरिस प्रोटोजोन द्वारा होता है इसमें मछली की त्वचा, पंख व गलफडों पर छोटे सफेद धब्बे हो जाते है. ये उत्तकों में रहकर उतको को नष्ट कर देते हैं.
उपचार- 0.1 पी.पी.एम. मेलाकाइट ग्रीन प्लस 50 पीपीएम. फार्मलिन में 1.2 मिनिट तक मछली को डूबाते हैं.
पोखर में 15 से 25 पीपीएम फार्मेलिन हर दूसरे दिन रोग समाप्त होने तक डालते हैं.
- डेक्टाइलो गाइरोसिस व गाइरो डेक्टाइलोसिस-
लक्षण- यह कार्प एवं हिंसक मछलियों के लिए घातक है. डेक्टाइलोगायरस मछली के गलफडों को संक्रमित करते है इससे ये बदरंग, शरीर की वृद्धि में कमी व भार में कमी जैसे लक्षण दर्शाते हैं. गाइरोडेक्टाइलस त्वचा पर संक्रमित भाग की कोशिकाओं में धाव बना देता है जिससे शल्को का गिरना, अधिक श्लेषक एवं त्वचा बदरंग हो सकती है.
उपचार- 1 पी.पी.एम. पोटेषियम परमेगनेट के घोल में 30 मिनिट तक रखते हैं.
- 1:2000 का ऐसिटिक एसिड के धोल एवं 2 प्रतिषत नमक धोल मे बारी-बारी से 2 मिनिट के लिए डूबाएं.
- तालाब में मेलाथियाँन 0.25 पी.पी.एम. सात दिन के अंतर में तीन बार छिड़कें.
- 5 आरगुलौसिस-
लक्षण-यह रोग आरगुलस परजीवी के कारण होता है. यह मछली की त्वचा पर गहरे जख्म कर देते हैं. जिससे त्वचा पर फफूंद व जीवाणु आक्रमण कर देते हैं व मछलियां मरने लगती है.
उपचार-
- 500 पी.पी.एम. पोटेषियम परमेगनेट के धोल में 1 मिनिट के लिए डूबाए. 0.25 पी.पी.एम. मेलेथियाँरन को 1-2 सप्ताह के अंतरराल में 3 बार उपयोग करें.
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