नई दिल्ली. भारत में न्यूट्रीशियन रिकमंडेड कमेटी की ओर से अंडों का प्रति व्यक्ति इस्तेमाल का जो सुझााव दिया गया है, वो टारगेट पूरा नहीं हो पा रहा है. बल्कि उससे काफी कम है. जबकि ये भी देखा गया है कि शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में अंडों की खपत में एक बड़ी असमानता भी है. सबसे कम ग्रामीण क्षेत्रों में अंडे खाए जाते हैं. इसकी कई वजहें कई हो सकती हैं. हालांकि एक्सपर्ट का मानना है कि इसकी मुख्य वजह अंडों की अनुपलब्धता है. जब लोगों तक अंडा पहुंच ही नहीं रहा है तो लोग इसे अपनी डाइट में शामिल कैसे करें.
गौरतलब है कि अंडों की शहरी क्षेत्रों में ज्यादा खपत है. यहां तक कि उपलब्ध देशी मुर्गियों की कम उत्पादकता और ग्रामीण क्षेत्रों में अंडों का अधिक मूल्य भी कम खपत होने का एक कारण है. इन सभी वजहों से अंडे और मांस की कम खपत होने के कारण प्रोटीन की कमी होती हे और जन्म लेने वाले बच्चे कुपोषित पैदा होते हैं. उनके अंदर जन्म से कई बीमारियां घर कर लेती हैं.
उन्नत नस्ल की मुर्गियों का करें चयन
एक्सपर्ट का कहना है कि आमतौर पर, ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में प्रत्येक घर के पीछे पर्याप्त स्थान होते हैं जो प्राकृतिक खाद्य आधार (गिरे हुए अनाज, कीड़े, केंचुए, रसोई घर वेस्ट, हरी घास आदि) के लिए बहुत अच्छा है. घर-आंगन मुर्गी पालन अपनाने से प्राकृतिक खाद्य आधार को ज्यादा बैलेंस्ड और टेस्टी अंडों और मुर्गी मीट में बदला जा सकता है. इसके बाद ये इंसानों की डाइट में लाया जा सकता है. बस इसके लिए जरूरी है कि ऐसी उन्नत मुर्गियों की नस्लें का चुनाव किया जाए तो ज्यादा से ज्यादा संख्या में अंडों का उत्पादन करती हैं. जबकि मुश्किल मुक्त-क्षेत्र परिस्थितियों में बेहतर जीवन जीती हैं.
ग्रामप्रिया नस्ल है परफेक्ट
ग्रामीण क्षेत्रों में घर-आंगन मुर्गी पालन के कारण पोषण की स्थिति में सुधार होगा और ग्रामीण और आदिवासी क्षेत्रों में लोगों की आर्थिक स्थिति में भी इजाफा होगा. इस दिशा में, कुक्कुट परियोजना निदेशालय ने एक लेयर कुक्कुट किस्म, ग्रामप्रिया विकसित की है जो अधिक संख्या में अंडे देती हैं और देशी मुर्गियों की तरह ही होती हैं. इस पक्षी में कई पंख विन्यास, लंबे शैंक और सुरुचिपूर्ण चाल पायी गयी है और स्थानीय मुर्गी की तुलना में अधिक संख्या में अंडे का उत्पादन करती है. मध्यम शरीर भार के कारण, ग्रामप्रिया के नर, तंदूरी प्रकार के कुक्कुट व्यंजन तैयार करने के लिए सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं.
कई जगहों पर शुरू हुआ है पालन
ग्रामप्रिया की ये खासियत है कि ये जल्दी बीमार नहीं होती हैं. अपनी प्रतिरक्षा क्षमता के कारण विपरीत हालात और मुक्त-क्षेत्र परिस्थितियों में भी आसानी से जिंदा रहती हैं और क्षमता के मुताबिक प्रोडक्शन करती हैं. अपने नार्मल वज़न के कारण, पक्षी आसानी से परभक्षियों से बच सकते हैं. ग्रामीण क्षेत्रों में बहुत सी जगहों पर ग्रामप्रिया मुर्गी पालन बहुत ही सफलता के साथ शुरू किया गया है. इसके मादा चूजे नर्सरी में 6 हफ्ते की उम्र तक पाले जाते हैं और फिर किसानो को दे दिये जाते हैं. जहां इन पक्षियों को घर-आंगन या फिर मुक्त-क्षेत्र पालन में बढ़ने के लिए छोड़ दिया जाता है.
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