नई दिल्ली. भेड़ पालन को ज्यादा फायदेमंद बनाने के लिये कुछ जरूरी काम हर भेड़ पालक को कर लेना चाहिए. एक्सपर्ट कहते हैं कि कम उत्पादक और साइंटिफिक व्यूप्वाइंट से बिना काम वाले जानवरों को रेवड़ से तुरंत निकाल देना चाहिए. ताकि हर जानवर की उत्पादकता में कमी न आने पाए. इसके लिए जरूरी है कि पहले ऐसे मेमने जो नस्ल के अनुरूप नहीं हैं, जिनकी शारीरिक ग्रोथ सामान्य नहीं होती, या फिर पैर टेड़े मेड़े होते हैं उन्हें रेवड़ से निकाल देना चाहिए. जिन एडल्ट भेड़ें या नर भेड़ों की प्रजनन क्षमता कम होती है उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखा देना चाहिए. अगर ऐसा नहीं करते हैं तो इससे नुकसान होगा.
अजामुख के डॉ. गोपाल दास, डा. नितिका शर्मा और योगेन्द्र कुमार कुशवाहा का कहना है कि अक्सर रेवड़ में कुछ जानवर ऐसे भी पाये जाते हैं जिन पर इलाज का असर बहुत ही कम पड़ता है. ऐसे जानवरों की छंटनी कर रेवड़ बाहर निकाल देना चाहिए. नर भेड़ की बात की जाए तो रेवड़ में वयस्क भेड़ों से मेमनों के रूप में अगली नस्ल लेने के लिए उचित नर भेड़ों का भी इस्तेमाल किया जाना चाहिए. एक नर भेड़ द्वारा एक प्रजनक मौसम में 30-40 मेमने पैदा किये जा सकते हैं. जबकि एक भेड़ एक प्रजनक मौसम में सिर्फ एक मेमने को जन्म देती है.
ये खास क्वालिटी होती है नर भेड़ों में
गौरतलब है कि एक वर्ष में दो प्रजनक मौसम आते हैं. दो वर्ष में एक भेड़ से अधिक से अधिक तीन बच्चे लिये जा सकते हैं. जबकि दो वर्ष में एक नर भेड़ चार प्रजनक मौसम 120-150 भेड़ों की सेवायें देकर 100 से अधिक मेमनों को जन्म दे सकता है. एक भेड़ छह साल की उम्र तक 5-7 मेमने पैदा कर सकती है. जबकि एक मेढ़ा इसी आयु तक 150-200 मेमनों को जन्म दे सकता है. इसलिए रेवड़ में उन्नत नस्ल के मेमने पैदा करने के लिए नर भेड़े का चयन बेहद ही अहम हो जाता है. क्योंकि भविष्य के रेवड़ की नींव मेढ़े पर ही टिकी होती है. एक मेंढे के चयन में एक भेड़ की तुलना से 30 गुना अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है.
इस बात भी रखना चाहिए ख्याल
वहीं भेड़ों के सेलेक्शन का काम जन्म से पहले शुरू कर देना चाहिए जो भेड़ें शुद्ध नस्ल के सभी पहचान चिन्ह रखती हों उन्हीं से जन्मे नर मेमनों से ही नर भेड़ का चयन करना चाहिए. बात भेड़ की जाए तो आमतौर पर भेड़ों की कम से कम उम्र 10 वर्ष की होती है लेकिन लेकिन इनमें 7 वर्ष पर इनके उत्पादन और प्रोडक्शन क्वालिटी में गिरावट आ जाती है. इनके अधिक बीमार होने की सम्भावना भी बढ़ जाती है. इसके साथ ही बुजुर्ग भेड़ों से हासिल मेमने भी कम शारीरिक भार व कम रोग प्रतिरोधक क्षमता वाले पैदा होने लग जाते हैं. जिनमें मृत्यु दर बढ़ जाती है. इसलिए नियमित रूप से समय-समय पर उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर जानवरों की छंटनी कर निष्कासित करना चाहिये.
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