नई दिल्ली. मछली पालन के साथ बत्तख पालन करने के लिए भी बत्तखों को बाड़े की जरूरत होती है. दिन के समय वो पोखरे में रहती हैं, रात में उन्हें घर की जरूरत होती है. तालाब की मेढ़ पर बांस, लकड़ी से बत्तख का बाड़ा बनाना चाहिए. बाड़ा हवादार व सुरक्षित भी होना चाहिए. तालाब के पानी के सतह के ऊपर तैरता हुआ बत्तख घर भी बनाया जा सकता है, इसके लिए मोबिल आयल के ड्रमों का उपयोग किया जा सकता है. तैरते हुए घर का फर्श इस तरह का होना चाहिए कि बत्तख का वेस्ट सीधे पानी में गिरे. बत्तख घर को हमेशा साफ-सुथरा और सूखा रखना चाहिए.
एक्सपर्ट के मुताबिक बत्तखों का बाड़ा इतना बड़ा होना चाहिए कि प्रति बतख कम से कम 0.3 से 0.5 वर्गमीटर की जगह हो. इसके लिए भारतीय प्रजातियों में सिलहेट मेटे और नागेश्वरी महत्वपूर्ण हैं. मछलियों के साथ बत्तख पालन के लिए इंडियन रनर प्रजाति सबसे उपयुक्त पाई गई है. खाकी केम्पबेल प्रजाति भी लोकप्रिय है. 2-3 माह में बच्चों को जरूरी बीमारी रोधक टीके लगवाने के बाद पालन के लिए उपयोग में लाना चाहिए. आमतौर पर एक हेक्टर के लिए 200-300 बतख पर्याप्त होती है, जो एक हेक्टर जलक्षेत्र के तालाब में खाद के रूप में वेस्ट देने के लिए पर्याप्त होती हैं.
बत्तख को दिया जाना चाहिए ये आहार
तालाब में उपलब्ध प्राकृतिक भोजन बत्तखों के लिए पर्याप्त नहीं होता, इसलिए बत्तखों को पूरक आहार भोजन के रूप में देना चाहिए. पूरक आहार के रूप में बत्तख मुर्गी आहार और राइसब्रान कोढ़ा 12 के अनुपात में 100 ग्राम प्रति बतख प्रतिदिन खिलाया जाता है. आहार बत्तखों के घर या मेड़ पर दिया जा सकता है. बत्तख घर में काफी गहरे 15 सेंटीमीटर चौड़े, 5 सेटीमीटर लम्बे बर्तनों मे पानी रखना चाहिए. आमतौर पर बत्तख 24 सप्ताह की उम्र होने पर अंडे देने शुरू करती है. वहीं 2 वर्ष तक बत्तख अंडे देती है. बत्तख रात में ही अंडे देती है. अंडे देने के लिए बत्तख घर में कुछ सूखी घास बिछाना चाहिए. सुबह अंडे एकत्रित कर लेने चाहिए.
कितनी मात्रा में मिलती है खाद
बत्तखों की विष्ठा यानि वेस्ट का उपयोग खाद के रूप में किया जाता है. बत्तख मल तालाब में त्यागती रहती है. ऐसी स्थिति में अन्य कोई खाद या उर्वरक तालाब में डालने की जरूरत नहीं होती. बत्तख बाड़ा में रात्रि में एकत्र हुई वेस्ट सुबह तालाब में डाल देना चाहिए. एक बत्तख एक दिन में लगभग 125 से 150 ग्राम विष्ठा का त्याग करती है. इस प्रकार प्रति हेक्टर प्रतिवर्ष 1 हजार किलोग्राम से डेढ़ हजार किलो ग्राम वेस्ट हासिल होता है. वेस्ट में 81 फीसदी नमी, 0.51 फीसदी नाइट्रोजन तथा 0.38% फास्फेट होती है. वेस्ट मछली की ग्रोथ के लिए फायदेमंद है.
बत्तखों की हैल्थ की करें हिफाजत
प्रत्येक माह बत्तखों का स्वास्थ्य संबंधी परीक्षण करना चाहिए. बत्तख की आवाज में परिवर्तन, सुस्त चाल, कम मात्रा में भोजन ग्रहण करना, नाक व आंख से लगातार पानी का बहना आदि लक्षण पाए जाने पर बीमार बत्तख को पोखर में नहीं जाने देना चाहिए और तुरन्त पशु चिकित्सक से सलाह लेकर उपचार करवाना चाहिए.
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