नई दिल्ली. दुधारू पशुओं में कई वजहों से बहुत सी बीमारियां होती हैं. माइक्रो वायरस, बैक्टीरिया, फफूंदी, आंतरिक व बाहरी कीड़े, प्रोटोजोआ, कुपोषण और शरीर के अंदर की चयापचय (मेटाबोलिज्म) क्रिया में समस्या आदि प्रमुख कारणों में हैं. इन बीमारियों में बहुत सी जानलेवा बीमारियां हैं और कई बीमारियां पशु के उत्पादन पर बुरा असर डालती हैं. कुछ बीमारियां एक पशु से दूसरे पशु को लग जाती हैं. जैसे मुंह व खुर की बीमारी, गल घोंटू आदि, इन्हें छूतदार रोग कहते हैं. जबकि कुछ बीमारियां पशुओं से इंसानों में भी आ जाती हैं. जैसे रेबीज (हलक जाना), क्षय रोग आदि इन्हें जुनोटिक रोग कहते हैं.
एक्सपर्ट कहते हैं कि पशुपालक को प्रमुख बीमारियों के बारे में जानकारी रखना आवश्यक है. ताकि वह सही समय पर सही कदम उठा कर अपने आपको आर्थिक नुसान से बचा सकें और इंसानों की हैल्थ की रक्षा में भी सहयोग कर सकें. यहां पशुओंं में होने वाली तमाम बीमारियों में से मुंहपका-खुरपका जिक्र करने जा रहे हैं.
क्या है इस बीमारी का कारण
मुंहपका-खुरपका रोग एक बेहद ही माइक्रो वायरस जिसके अनेक प्रकार तथा उप- प्रकार हैं, से होता है. इनकी प्रमुख किस्मों में ओ, ए, सी, एशिया-1, एशिया-2, एशिया-3, सैट-1, सैट-2, सैट-3 है और इनकी 14 उप-किस्में शामिल हैं. भारत में यह बीमारी आमतौर पर ओ, ए, सी तथा एशिया-1 प्रकार के वायरस द्वारा होती है. नम-वातावरण, पशु की शरीर के अंदर की कमजोरी, पशुओं आौर लोगों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर आवागमन तथा नजदीकी क्षेत्र में रोग का प्रकोप इस बीमारी को फैलाने में सहायक कारक हैं.
बेहद कमजोर हो जाते हैं पशु
माइक्रो वायरस से पैदा होने वाली इस बीमारी को विभिन्न स्थानों पर विभिन्न स्थानीय नामों से जाना जाता है. जैसे कि खरेड़, मुंह पका-खुर पका, चपका, खुरपा आदि. यह बहुत तेजी से फैलने वाला छूतदार रोग है. जोकि गाय, भैंस, भेड़, बकरी और ऊंट आदि पशुओं में होता है. विदेशी व संकर नस्ल की गायों में यह बीमारी अधिक गम्भीर रूप में पायी जाती है. यह बीमारी हमारे देश में हर स्थान पर होती है. इस रोग से ग्रस्त पशु ठीक होकर बेहद ही कमजोर हो जाते हैं. दुधारू पशुओं में दूध का उत्पादन बहुत कम हो जाता है तथा बैल काफी समय तक काम करने योग्य नहीं रहते. शरीर पर बालों का कवर खुरदरा तथा खुर कुरूप हो जाते हैं.
इस तरह फैलती है ये बीमारी
यह रोग बीमार पशु के सीधे सम्पर्क में आने पानी, घास, दाना, बर्तन, दूध निकालने वाले व्यक्ति के हाथों से, हवा से तथा लोगों के आवागमन से फैलता है. रोग के वायरस बीमार पशु की लार, मुंह, खुर व थनों में पड़े फफोलों में बहुत अधिक संख्या में पाए जाते हैं. ये खुले में घास, चारा तथा फर्श पर चार महीनों तक जीवित रह सकते हैं लेकिन गर्मी के मौसम में ये बहुत जल्दी खत्म हो जाते हैं. वायरस जुबान, मुंह, आंत, खुरों के बीच की जगह, थनों तथा घाव आदि के द्वारा स्वस्थ पशु के रक्त में पहुंचते हैं और लगभग 5 दिनों के अंदर उसमें बीमारी के लक्षण पैदा करते हैं.
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