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Organic Farming: ताइवन में गाय-भैंस के गोबर से नहीं, इस तरह से होगी आर्गेनिक खेती

प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. नई दिल्ली. जिस तरह से भारत में जैविक खेती हो रही है. इस तकनीक से अब ताइवान में भी जैविक खेती होगी. हालांकि इसमें एक फर्क होगा. भारत में जैविक खेती के लिए पशु के गोबर का इस्तेमाल होता है. जबकि ताइवान में गाय—भैंस जैसे पशु नहीं हैं, लेकिन वहां मौजूद पशु के मल से ही जैविक खेती की जाएगी. गौरतलब है कि भारत में जैविक खेती की लगातार बढ़ते क्षेत्रफल व तकनीक से आकर्षित होकर ताइवान में भी इसी आधार पर जैविक खेती करने की योजना पर काम हो रहा है. जिसके तहत ताइवान ने राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र को बुलावा भेजा था. राष्ट्रीय जैविक एवं प्राकृतिक खेती केंद्र के डायरेक्टर डॉ. गगनेश शर्मा एक अन्य कृषि विज्ञानी के साथ ताइवान गए और वहां पर जैविक खेती के बारे में ताइवान के लोगों को जानकारी दी. इस दौरान ताइवान के लोगों ने जैविक खेती के फायदे और लागत तकनीक के बारे में भी सीखा.

जैविक खेती के लिए किसानों को जागरुक कर ताइवान से लौटे डॉ. गगनेश शर्मा ने बताया कि ताइवान में गोवंश और महेशवंशी यानी गाय और भैंस नहीं है. जैविक खेती के लिए भारत समेत अन्य देशों में गोवंश व महेशवंशीय जानवरों के गोबर से ही खाद बनाई जाती है. जिन्हें खेत में उगाई जाने वाली फसलों के लिए जैविक पोषण के तौर पर डाला जाता है.

कई अन्य देशों को भी भेजा बुलावा
उन्होंने बताया कि दूध के लिए यहां सोया मिल्क का इस्तेमाल किया जाता है और मांस के लिए सूअर का इस्तेमाल होता है. ताइवान के किसानों ने प्रतिनिधि मंडल जैविक खाद के बारे में पूछा तो भारत से ताइवान गए प्रतिनिधि मंडल ने बताया कि इसमें पशुओं के मल से खाद तैयार की जाती है. फिर खेतों में इसका इस्तेमाल होता है. ताइवान सरकार ने भारत के अलावा के अन्य देशों में जैविक खेती के बढ़ते चलन और क्षेत्रफल को लेकर ऑनलाइन गतिविधियों की तलाश की है. इसके बाद जैविक खेती के लिए काम करने वाले देश में जैसे भारत, अमेरिका, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया में जैविक खेती को लेकर काम करने वाले सरकार के प्रतिनिधियों को बुलवाया भेजा है.

ताइवन में है जैविक खाद की जरूरत
इस बुलावे के बाद वहां गए जनप्रतिनिधियों ने किसानों को जैविक खेती के लिए जरूरी जलवायु संसाधनों के बारे में अवगत कराया है. डॉ. गगनेश शर्मा ने बताया कि ताइवान सरकार की ओर से जैविक खेती के लिए ऑनलाइन ई-मेल से बुलावा भेजा गया था. इसे लेकर प्रमुख सचिव और मंत्रालय को जानकारी दी गई. ई-मेल से बुलावा स्वीकार करने के बाद प्रक्रियाएं पूरी की गईं. एक वैज्ञानिक के साथ ताइवान गए. वहां जलवायु और जैविक खेती की संभावनाएं तलाशी गईं. उन्होंने बताया कि जलवायु जैविक खेती के लिए उपयुक्त है, पर जैविक खाद की वहां जरूरत है.

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