नई दिल्ली. जानवरों के लिए बैक्टीरिया से होने वाली बीमारी ज्यादा नुकसान पहुंचाती है. आमतौर पर पशुओं में एंथ्रेक्स, ब्रुसेलोसिस, लेप्टोस्पायरोसिस, साल्मोनेला और वहीं बकरियों में इन्टेरोटोक्सीमिया यानि आंतों का जहर की बीमारी ज्यादा होती है. इस तरह की बीमारियों से बचाव जरूरी है. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के एक्सपर्ट ने लाइव स्टक एनिमल न्यूज (Livestock Animal News) को बताया कि दूषित चारे कारण भी ये बीमारी ज्यादा होती है. क्योंकि ये शरीर के तरल पदार्थों के संपर्क में आता है और इससे गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो जाती हैं.
इसलिए इस तरह की बीमारियों से बचाव बेहद ही जरूरी है. इन्टेरोटोक्सीमिया (आंतों का जहर) क्लास्ट्रीडियम परफ्रिजेन्स जीवाणु द्वारा भेड़ और बकरियों की आंतों में उत्पन्न किये गये जहर (टाक्सिन) के आंतों द्वारा अवशोषण से होता है.
किन बातों पर दें ध्यान
IVRI के एक्सपर्ट के मुताबिक ये बैक्टीरिया सामान्यतया आंतों में पाया जाता है और पशु द्वारा आवश्यकता से अधिक दाना चारा खा लेने या खान-पान में अचानक परिवर्तन कर देने से होता है.
असल में इसकी वजह से इससे जुड़े बेक्टीरिया की वृद्धि दर अचानक बढ़ जाती है. जिसके नतीजे में बैक्टीरिया द्वारा टाक्सिन, जहर का बहुत ज्यादा उत्पादन बढ़ जाता है.
इससे बीमारी का असर बहुत ज्यादा हो जाता है. इस बीमारी के मुख्य लक्षणों में अचानक पेट में तीव्र दर्द, जमीन पर गिरकर घिसटना या चक्कर लगाना है.
इसके अलावा चाल में असमानता, लड़खड़ाहट, बैठने की प्रक्रिया में लगातार बदलाव, अफरा व अन्त में काले रंग का दस्त होता है.
खासतौर पर अच्छे व स्वस्थ पशुओं की 4-24 घंटे में मृत्यु हो जाती है. इस रोग की रोकथाम के लिए इन्टेरोटोक्सीमिया का वार्षिक टीकाकरण ही मुख्य उपाय है.
साथ ही इस बात का विशेष ध्यान रखा जाय कि पशु को दिये जाने वाले दाने, चारे में अचानक कोई परिवर्तन न किया जाए.
मेमनों को पहली वैक्सीन 3 महीने की उम्र पर दिया जाता है. इसके बाद दूसरा बूस्टर टीका 3 सप्ताह बाद लगाया जाता है.
इसके बाद प्रतिवर्ष दो टीके 3 सप्ताह के अन्तराल पर देने चाहिए. इस बात का विशेष ध्यान रखा जाए कि पशु को दिये जाने वाले दाने, चारे में अचानक कोई परिवर्तन न किया जाए.
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