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Animal Disease: देश के 27 जिलों में एन्थ्रेक्स बीमारी फैलने का खतरा, इन राज्यों के जिले हाई रिस्क पर

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फार्म पर चारा खाते बरबरे बकरे

नई दिल्ली. एन्थ्रेक्स एक ऐसी बीमारी है जो ज्यादातर भेड़ और फिर बकरियों को अपनी चपेट में लेती है. एक्सपर्ट के मुताबिक इसका ज्यादा असर बकरियों ज्यादा दिखता है. एन्थ्रेक्स रोग एक ऐसा रोग है, जो एक बार अगर पशु को लग जाए तो फिर इसे मौत भी हो सकती है. इसे कई जगह पर गिल्टी रोग, जहरी बुखार, या पिलबढ़वा भी कहा जाता है. इस बीमारी में भेड़-बकरियों को इंजेक्शन दिया जाता है और इसी से इलाज होता है. इससे बचाव के लिए टीकाकरण भी करवाया जा सकता है. पशुपालन को लेकर काम करने वाली निविदा संस्था ने आने वाले जून माह में इस बीमारी के देशभर के 27 जिलों में फैलने की आशंका जाहिर की है.

संस्था की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में कहा गया है कि जून महीने में ये बीमारी के 11 राज्यों के 27 जिलों बकरियों को अपनी चपेट में ले सकती है. एक्सपर्ट का कहना है कि इसलिए जरूरी है कि पशुपालक जरूरी एहतियात बरत लें और अपने पशुओं का टीकाकरण जरूर करवा लें. बता दें कि ये बीमारी की वजह से तमिलनाडु के तिरुवल्लुर, तिरुवन्नामलाई, विलुप्पुरम में ज्यादा खतरा है. जबकि वेल्लोर हाई रिक्स पर है. वहीं आंध्र प्रदेश का चित्तूर,
वाई.एस.आर., श्री पोट्टी श्रीरामुलु और श्रीकाकुलम भी हाई रिस्क पर है. जबकि कर्नाटक के बेल्लारी, चामराजनगर, कोप्पल, रायचुर, तुमकुर और चिक्कबल्लपुर भी हाई रिस्क पर है.

क्या है ये बीमारी
इस बीमारी को भेड़ पालक रक्तांजली रोग से जानते है यह रोग जीवाणु द्वारा होता है, भेड़ों की उपेक्षा यह रोग बकरियों में अधिक होता है जिसे गददी भेड़ पालक (गंणडयाली नामक) रोग से जानते है. यह रोग भेड़-बकरियों में बहुत तेज़ बुखार आता है, मृत भेड़-बकरी के नाक, कान, मुंह व गुदा से खून का रिसाव होता है. छूआछूत व संक्रमण से पशुओं में फैलनेवाली एंथ्रेक्स बीमारी जानलेवा है. पशु रोग विशेषज्ञ बताते हैं कि यह एक एपीडेमिक बीमारी है जो एक बार जिस स्थान पर फैलती है. वहीं उसी स्थान पर बार-बार फैलती रहती है. इसे गिल्टी रोग, जहरी बुखार या पिलबढ़वा रोग के नाम से भी पुकारा जाता है.

रोग से बचाव कैसे करें
इस रोग से मरे भेड़-बकरियों की खाल नहीं निकालनी चाहिए तथा मृत जानवर को गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए तथा चरागाह को बदल देना चाहिए. बीमार भेड़-बकरियों को एन्टीवायोटिक इन्जेक्शन चार-पांच दिन पशु चिकित्सक की सलाह अनुसार देना चाहिए. इस रोग से बचाव हेतू टीकाकरण करवाया जा सकता है.

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