नई दिल्ली. गाय-भैंस का दूध पोष्टिक होता है लेकिन इनसे भी ज्यादा पोष्टिक दूध भेड़, बकरी और ऊंटनी का बताया गया है. इसलिए पशुपालकों को गाय-भैंस के अलावा भेड़, बकरी और ऊंटनी का भी पालन करना चाहिए. अगर किसान इनका भी पालन करते हैं तो उनकी आमदनी बढ़ सकती है. हाल ही में हरियाणा के करनाल स्थित एनडीआरआई संस्थान के वैज्ञानिकों द्वारा की गई रिसर्च में सामने आया है कि भैंस व गाय की अपेक्षा भेड़, बकरी और ऊंटनी का दूध अधिक पोषक होता है. यही नहीं इनके दूध की बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी ज्यादा होती है. डायबिटीज से लेकर ब्लड प्रेशर आदि बीमारियों को कम करने और इम्युनिटी बढ़ाने में भेड़, बकरी और ऊंटनी का दूध अहम भूमिका निभाता है.
भेड़-बकरी और ऊंटनी है बेहतर विकल्प
संस्थान के वैज्ञानिक कहते हैं कि बच्चों का पाचन बकरी के दूध से अधिक होता है. पशुपालकों को आमदनी बढ़ाने के लिए गाय भैंस के साथ-साथ बकरी, भेड़ और ऊंट, ऊंटनी का भी पालन करना चाहिए. यह बात पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं अनुसंधान (दुवासू) मथुरा के बाइस चांसलर डॉ. एके श्रीवास्तव ने मीडिया से बातचीत में कही थी. डॉ. श्रीवास्तव केंद्रीय भैंस अनुसंधान संस्थान में आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय कार्यशाला में शिरकत करने पहुंचे थे. बता दें कि डॉ.एके श्रीवास्तव करनाल के पूर्व में डायरेक्टर भी रह चुके हैं.
20 सालों से भारत दुग्ध उत्पादन में नंबर-वन
पंडित दीनदयाल उपाध्याय पशु चिकित्सा विज्ञान विश्वविद्यालय एवं अनुसंधान (दुवासू) मथुरा के बाइस चांसलर डॉक्टर एके श्री वास्तव ने कहा कि पिछले 20 बीस साल से भारत विश्व में दुग्ध उत्पादन में नंबर वन पर है. विश्व का 22 प्रतिशत दुग्ध उत्पादन इंडिया से ही मिलता है. भारत के लिए आने वाले समय में अधिक चुनौतियां हैं. भारत में गाय की 50 और भैंस की 19 रजिस्टर्ड ब्रीड़ है, जिसमें मुर्रा नस्ल की भैंस के दूध की की गुणवत्ता सबसे अधिक है. मगर चैलेंज यह है कि मुर्रा 33 से लेकर 34 माह में गाभिन होती हैं. मुर्रा के गाभिन होने के कार्यकाल को घटाना बड़ी चुनौती है ताकि पशुपालकों का इतने अधिक अंतराल का खर्च होने से बचाया जा सके. दूसरी चुनौती देश में पशुओं का कृत्रिम गर्भाधान 30 से 32 प्रतिशत तक ही है, जो बड़ा गेप है. हमें अभी भी 450 मिलियन सीमेन की डोज की आवश्यकता है.
चुनौतिया भी कम नहीं
तीसरी चुनौती 15 से लेकर 20 प्रतिशत तक पशु ऐसे हैं, जो गाभिन होने लायक है. मगर उनकी हीट के समय का सही पता नहीं लगने के कारण आज तक वह गर्भवती नहीं हो सके हैं, जो बड़ा चैलेंज है. हालांकि, कुछ वैज्ञानिकों ने इस पर रिसर्च कर कुछ हद तक सफलता पाई है, जिसे किसानों के बीच तक पहुंचाना है.कार्यक्रम का संचालन प्रधान वैज्ञानिक डॉ. सज्जन सिंह किया. धन्यवाद प्रस्ताव डॉ. वारिज नयन ने पारित किया. वैज्ञानिकों को पशुपालकों के लिए दूध को लेकर भी
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