नई दिल्ली. गलाघोंटू और मुंह-खुर पका रोग यानि एफएमडी पशुओं के लिए बेहद ही खतरनाक है. इससे पशुओं को काफी नुकसान होता है. उनकी मौत भी हो सकती है. गर्मियों के मौसम में बारिश के दौरान उच्च तापमान के साथ-साथ वातावरण में नमी बढ़ जाती है. ऐसे में पशुपालक चिकित्सकों की सलाह के अनुसार इन बातों का ध्यान रखें. यह सुनिश्चित कर लें कि पशुओं को गलघोंटू व मुंहखुर की संयुक्त वैक्सीन लग चुकी हो. न लगी हो तो लगवा लें. यह रोग संक्रमित पशुओं के संपर्क में आने से, दूषित चारा, पानी या बिछावन के माध्यम से फैलता है. गलाघोंटू और मुंह और खुर रोग से बचाव के लिए पशुपालकों को एक्सपर्ट हमेशा ही वैक्सीनेशन और साफ सफाई रखने का की सलाह देते हैं. पशुओं को इन बीमारियों से बचने के लिए टीकाकरण करना बेहद ही जरूरी है.
इस मौसम में पशुओं को इन दोनों ही बीमारी का खतरा है. एहतियात बरतना बेहद ही जरूरी है. वहीं इन बीमारियों से बचाव के लिए वैक्सीनेशन जरूर करवा लेना चाहिए. क्योंकि ये बेहद ही सटीक तरीका पशुओं को इन बीमारियों से बचाने का.
गलाघोंटू और मुंहखुर पका से ये होती है पशुओं को परेशानी: गलाघोंटू से पशुओं को सांस लेने में तकलीफ होती है और उनका गला भी फूल जाता है. जबकि मुंहपका और खुरपका रोग से पशुओं के मुंह और खून में छाले पड़ जा जाते हैं. इससे उन्हें खाने पीने में दिक्कत आती है. पशु कमजोर हो जाते हैं और उनका उत्पादन भी घट जाता है. अगर गलाघोंटू रोग हो जाए तो पशुओं को सांस लेने में तकलीफ होने पर तुरंत इलाज कराना चाहिए. समय पर इलाज न किया जाए तो उनकी मौत भी हो सकती है.
इन बातों का रखें ख्याल
- गर्मियों के मौसम में बारिश के दौरान उच्च तापमान के साथ-साथ वातावरण में नमी बढ़ जाती है. ऐसे में पशुपालक चिकित्सकों की सलाह अनुसार इन बातों का ध्यान रखें. यह तय कर लें कि पशुओं को गलघोंटू व मुंहखुर की संयुक्त वैक्सीन लग चुकी हो.
- इस मौसम में नमी व पाल वाले क्षेत्र में घोंघे व अन्य जीव पनपते हैं. ऐसे जीवों से पशुओं में कई प्रकार के आंतरिक परजीवी का संक्रमण हो सकता है. पशु को तालाब के आसपास की घास न चराएं.
- चिकित्सीय परामर्श से कृमि नाशक दवा का उपयोग करें.
- इस मौसम में मक्खी-मच्छर का प्रकोप बढ़ता है. पशुओं के लिए मच्छरदानी लगाएं.
- काला या फफूंद लगा चारा पशुओं को न डालें.
- पशुओं की खोर भी लगातार साफ करें, जिससे पशुओं का हाजमा खराब न हो.
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