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Animal Husbandry: गाय-भैंस के हीट में आने का सही समय और लक्षण समेत पूरी की जानकारी पढ़ें यहां

दुधारू पशुओं के बयाने के संकेत में सामान्यतया गर्भनाल या जेर का निष्कासन ब्याने के तीन से 8 घंटे बाद हो जाता है.
गाय-भैंस की प्रतीकात्मक तस्वीर.

नई दिल्ली. डेयरी पशुओं में प्रजनन की सफलता के लिए पशु पालक को मादा पशु कब हीट में आते हैं ये जानना बहुत जरूरी है. गाय या भैंस सामान्य तौर पर हर 18 से 21 दिन के बाद हीट में आती हैं. जब तक कि वह गर्भधारण न कर लें. बछड़ी में यह हीट साइकिल 16 से 18 माह की उम्र पूरी होने तथा शरीर का वजन लगभग 250 किलो होने पर शुरू होता है. गाय व भैंसों में ब्याने के लगभग डेढ़ माह के बाद यह चक्र शुरू हो जाता है. मदचक्र शरीर में कुछ खास न्यासों (हार्मोन्स) के बहाव से संचालित होता है.

गाय व भैंसों में हीट की अवधि लगभग 20 से 36 घंटे की होती है. जिसे हम 3 हिस्सों में बांट सकते हैं. हीट की प्रारम्भिक अवस्था, बीच की अवस्था और आखिरी अवस्था. मद की विभिन्न अवस्थाओं का हम पशुओं में बाहर से कुछ विशेष लक्षणों को देख कर पता लगा सकते हैं.

हीट की शुरुआती अवस्था
पशु की भूख में कमी आना.

दूध उत्पादन में कमी.

पशु का रम्भाना (बोलना) व बेचैन रहना.

योनि से पतले श्लैष्मिक पदार्थ का निकलना.

दूसरे पशुओं से अलग रहना.

पशु का पूंछ उठाना.

योनि द्वार (भग) का सूजना तथा बार-बार पेशाब करना-

शरीर के तापमान में मामूली सी वृद्धि.

हीट बीच की अवस्था
गर्मी की यह अवस्था बहुत महत्वपूर्ण होती है. क्योंकि कृत्रिम गर्भाधान के लिए यही अवस्था सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसकी अवधि लगभग 10 घंटे तक रहती है. इस अवस्था में पशु काफी उत्तेजित दिखता है और वह अन्य पशुओं में रुचि दिखाता है. इसके कई लक्षण हैं. जिससे इसकी पहचान की जा सकती है. योनि द्वार (भग) से निकलने वाले श्लैष्मिक पदार्थ’ का गाढ़ा होना जिससे वह बिना टूटे नीचे तक लटकता हुआ दिखायी देता है. पशु जोर-जोर से रम्भाने (बोलने) लगता है. भग (योनि द्वार) की सूजन तथा श्लैष्मिक झिल्ली की लाली में इजाफा हो जाता है. शरीर का ताप मान बढ़ जाता है. दूध में कमी तथा पीठ पर टेढ़ापन दिखायी देता है. पशु अपने ऊपर दूसरे पशुओं को चढ़ने देता है यह वह खुद दूसरे पशुओं पर चढ़ने लगता है.

मद की आखिरी अवस्था
पशु की भूख लगभग सामान्य हो जाती है. दूध की कमी भी समाप्त हो जाती है. पशु का रम्भाना कम हो जाता है. भग की सूजन व श्लैष्मिक झिल्ली की लाली में कमी आ जाती है. श्लेष्मा का निकलना या तो बन्द या फिर बहुत कम हो जाता है तथा यह बहुत गाढ़ा व कुछ
अपारदर्शी होने लगता है.

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