नई दिल्ली. मक्का के चारे में कार्बोहाइड्रेट व खनिज लवणों की मात्रा अधिक पायी जाती है. साथ में विटामिन ए व ई भी पर्याप्त मात्रा में होते हैं. इसका साइलेज अच्छा बनता है. कम तापमान-कम आर्द्रता मे इसकी ग्रोथ अच्छी होती है लेकिन अधिक तापमान कम आर्द्रता मे इसकी वृद्धि रूक जाती है तथा पौधे जल जाते है. भारतीय पशु चिकित्सा अनुसंधान संस्थान (IVRI) के मुताबिक ये पशुओं के लिए बेहतरीन चारा फसल है. उन्नत प्रजातियों में अफ्रीकन टाल जो हर जगह लग सकती है, 55-80 चारा देती है. वहीं विजय कम्पोजिट, मोती कम्पोजिट भी 35-47 टन चारा देती है.
एक जुताई मिट्टी पलट हल से तथा 3-4 जुताइयाँ हैरों से कर खेतों को बुवाई के लिये तैयार करते हैं. यदि भूमि में जरूरी नमी न हो तो पलेवा करके खेत की तैयारी करनी चाहिये.
बीज दरः
बीज दर आमतौर पर 50-60 किलोग्राम प्रति हेक्टयर प्रयोग करते हैं लेकिन इसे 70 कि.ग्रा. प्रति हेक्ट. तक भी बढ़ाया जा सकता है.
बुवाई का समयः
मक्का को मार्च से सितम्बर तक किसी भी समय बोया जा सकता है. इसकी बुवाई प्रायः छिटकाव विधि से की जाती है.
खाद एवं उर्वरकः
सिंचित क्षेत्रों में उगाई जाने वाली फसल में 20 टन गोबर की खाद. 50 कि.ग्रा. नाइट्रोजन, 30 कि.ग्रा. फास्फोरस तथा 30 कि.ग्रा. पोटाश प्रति हेक्ट. प्रयोग करनी चाहिये.
गोबर की खाद खेत की तैयारी से पूर्व तथा 1/3 से आधी नत्रजन की मात्रा, पूरी फास्फोरस एवं पोटाश बुवाई के समय खेत में मिला देनी चाहिये.
नाइट्रोजन की बची मात्रा को सिंचाई के बाद एक या दो बार में टाप ड्रेसिंग से देना चाहिये.
सिंचाई एवं निराई गुड़ाईः
वर्षा कालीन फसल में प्रायः सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है. गर्मी में जरूरत के मुताबिक 3-4 सिंचाईयों की आवश्यकता होती है. जिन्हें भूमि तथा फसल की माँग के अनुसार देना चाहिये.
एट्राजिन एक कि.ग्रा. सक्रिय तत्व का 1000 ली. पानी में धोल बनाकर अंकुरण से पूर्व छिड़काव करने से खरपतवार नियन्त्रित रहते हैं.
कटाईः
मक्का की कटाई, बुवाई के 60 से 70 दिन के बाद भुट्टे निकलते समय करनी चाहिये. अच्छी फसल से प्रजाति के अनुसार औसतन 40 से 50 टन प्रति हेक्ट. हरा चारा प्राप्त होता है.
खेत की तैयारीः
एक जुताई मिट्टी पलट हल से तथा 3-4 जुताइयां हैरों से कर खेतों को बुवाई के लिये तैयार करते करते हैं. यदि भूमि में उपयुक्त नमी न हो तो पलेवा करके खेत की तैयारी करनी चाहिये.
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