नई दिल्ली. आमतौर पर लंगड़ा बुखार, गाय, भैंस, और भेड़ों में होता है. ये बैक्टीरिया से होने वाली एक बीमारी है. इसे ब्लैक क्वार्टर, जहरबाद, फडसूजन, काला बाय, लंगड़िया, और एकटंगा नामों से भी लोग जानते हैं. एक्सपर्ट का कहना है कि ज्यादातर इस बीमारी का प्रसार ऐसी जगहों पर होता है जो नमी वाली होती है. वहीं बारिश के मौसम में तो इसका असर ज्यादा होता है. अगर पशुओं को लंगड़ा बुखार हो जाए तो पशु की पिछली और अगली टांगों के ऊपरी हिस्से में सूजन देखने को मिलती है. वहीं इस हिस्से को दबाया जाए तो कड़-कड़ की आवाज़ आती है. वहीं सूजन वाली जगह सूखकर कड़ी भी हो जाती है. दिक्कत ये होती है कि पशु लंगड़ाकर चलने लग जाता है.
एक्सपर्ट का कहना है कि ये बीमारी ज्यादातर गायों को अपना निशाना बनाती हैं. इसमें गायों की मांसपेशियों में हवा भरने के साथ-साथ सूजन भी हो जाती है. एक्सपर्ट कहते हैं कि वैसे तो ये बीमारी भैंस को भी अपनी चपेट में ले लेती है लेकिन भैंस इस बीमारी से बहुत कम ग्रस्त होते है. इस रोग के मुख्य स्रोत दूषित चारागाह होते हैं. आमतौर पर इस रोग से 6 माह से 2 साल के स्वस्थ पशु ज्यादातर प्रभावित होते हैं.
इस बीमारी में क्या होता है
अगर पशुओं को अचानक तेज बुखार हो और इसकी तीव्रता 107-108 डिग्री फार्रेनहाइट हो जाए तो पशु खाना और जुगाली करना छोड़ देता है. वहीं कई बार पशुओं को दर्द के साथ सूजन हो जाती है. ज्यादातर सूजन कमर और कूल्हे में होती है. यही वजह है कि पशुओं लंगड़ापन देखने को मिलता है. कभी-कभी सूजन कंधे, छाती और गले तक फैल जाती है. सूजन वाली जगह को दबाने पर गैस जमा होने के कारण चर चर की आवाज आती लक्षण उभरने के 24-28 घंटे के भीतर पशु मर जाता है. मौत के तुरंत पहले सूजन ठंडी व दर्द रहित हो जाती है.
कैसे किया जाए उपचार
बीमारी विशेष क्षेत्र में बरसात के शुरू होने से पहले 6 माह व उससे अधिक आयु के सभी पशुओं का टीकाकरण करवाना चाहिए. बीमारी विशेष क्षेत्र में मिट्टी के ऊपरी तह को भूसा के साथ जलाने से रोग के जीवाणुओं को खत्म् करने में मदद मिलती है. शव को दबाने के समय उस पर चूना डाल देना चाहिए. उपचार की बात की जाए तो संक्रमण की शुरूआती अवस्था में उपचार प्रभावी हो सकता है. फिर भी अधिकांश मामलों में उपचार सार्थक (लाभदायक) नहीं होता.
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