Home पशुपालन Goat Farming: डिलीवरी के बाद बकरी के बच्चों का इस तरह रखें ख्याल, जानें कब पिलाना चाहिए खीस
पशुपालन

Goat Farming: डिलीवरी के बाद बकरी के बच्चों का इस तरह रखें ख्याल, जानें कब पिलाना चाहिए खीस

goat baby diet chart, Goat Farming, Goat Baby, Lamb, Goat Diet Chart, CIRG, Goat Breed, Death of Goat Kids, Barbari Goat, Goat Milk
प्रतीकात्मक फोटो

नई दिल्ली. बकरी पालन में सबसे ज्यादा मृत्युदर मेमनों में होती है. इस वजह से इसका खास ख्याल रखना चाहिए. एक्सपर्ट कहते हैं कि प्रसव के बाद मेमनों को बकरी चाटने लगती है, उसे चाटने दें. यदि बच्चे के नधुने, मुंह आदि पर श्लेष्मा लगा हो तो उसे सूखे कपड़े से पोंछ दें. सूखे कपड़े से पूरे शरीर खासतौर पर छाती को पोंछने से बच्चों के खून संचालन की गति में इजाफा होता और उसे ठंड भी कम लगती है. नवजात बच्चों को पैदा होने के बाद तुरंत ही प्रथम दूध (खीस) पिलाना चाहिए. खीस में रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत ज्यादा होती है. यह अन्य अति आवश्यक पोषक तत्वों इम्योनोग्लोबिन एंटीबॉडी, विटामिन, प्रोटीन, उर्जा एवं खनिज लवण से भी भरपूर होता है.

खीस नवजात बच्चों को आधे घंटे के अन्दर उपलब्ध हो जाना चाहिए. यह नवजात मेमनों की आंतों में जमा दूषित मल (म्यूकोनियम) को भी निकालता है. अधिकांश बकरी पालक अनजाने में नवजातों को तब तक खींस नहीं पिलाते हैं. जब तक कि बकरी जेर नहीं गिरा देती. जेर गिरने में कभी-कभी छः से आठ घंटे तक लग जाते हैं. इसलिए बकरी पालक जेर गिरने का इंतजार न करें. बल्कि प्रथम दूध खीस जन्म के बाद नवजातों की जल्द पिला दें. ऐसा करने पर जेर भी जल्दी गिर जाएगी. खीस देर से पिलाने पर उसका आंतों द्वारा अवशोषण 50 प्रतिशत या कम रह जाता है. बकरी के बच्चों को शरीर भार के 10 प्रतिशत खीस दूध पूरे दिन में 3-4 चार में बराबर अंतराल में पिलाना चाहिए.

टिंचर आयोडिन 4-5 दिन तक लगाते रहें
एक ही बार में अधिक दूध पिलाने से तेज दस्त होने से बच्चों की मौत हो सकती है. बच्चों के जन्म लेने के लगभग 2 से 3 घंटे में नाभि से लटकी नाल को शरीर से 2-2.5 सेमी दूर धागे से बांधने के बाद कैंची वा नये ब्लेड द्वारा काट देना चाहिए. उसके बाद इस नाल पर प्रतिदिन 7 फीसदी टिंचर आयोडिन का घोल 4-5 दिन तक लगाते रहना चाहिए. बकरी के नवजात बच्चों को बिल्ली व अन्य जंगली जानवरों सुरक्षित रखना चाहिए. बकरी के बच्चे 2,3 या 4/5 (मल्टीपल) के रूप में पैदा होते हैं. उनका शरीर भार सामान्य से बहुत कम होता है और वे बहुत नाजुक कमजोर होते हैं.

एक माह तक रखें खास ख्याल
इसलिए ऐसे बच्चों की एक माह तक विशेष देखभाल करनी चाहिए. आमतौर पर बकरी पालक अकेले पैदा हुए बच्चों और जुड़वा (मल्टीपल) के रूप में पैदा हुये बच्चों की एक समान रूप से देखभाल करते हैं. जबकि दो या अधिक (मल्टीपल) जन्मे बच्चों की दूध पिलाने, साफ-सफाई, आवास, हवा-धूप आदि से बचाव की विशेष व्यवस्था और अधिक सावधानी से करना पड़ता है. लगभग 15-20 प्रतिशत बकरियां अपने पहले ब्यात में कम दूध देती हैं. ब्याने के 10-20 दिन बाद दूध देना आरम्भ करती हैं. ऐसी परिस्थिति में जिन बकरियों के नीचे अतिरिक्त दूध हो या जो बकरियां उन बच्चों की मां के साथ (लगभग 2-4 दिन आगे-पीछे) ब्याई हों ऐसी बकरियों का दूध कम दूध देने वाली मां के बच्चों को पिलाना चाहिए.

इन वजहों से भी बढ़ जाती है मृत्युदर
जिन बकरी के नीचे बच्चों के लिए दूध कम होता है उनकी बढ़वार दर कम रहती है. साथ ही बीमार होने एवं मरने की दर अधिक होती है. पहले ब्यात में पैदा हुये मेमनों में मृत्यु की संभावना तब बढ़ जाती है जब बकरी को पूरी तरह से विकसित होने से पहले गाभिन करा दिया जाता है. वहीं भरपाई के लिए उन्हें अतिरिक्त दाना-चारा भी नहीं दिया जाता है. यदि ब्यात के समय बकरी की उम्र एवं शरीर भार कम है तो उनसे पैदा हुये बच्चों में मृत्यु दर बहुत बढ़ जाती है.

Leave a comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Related Articles

livestock
पशुपालन

Animal Husbandry: पशुओं के लिए क्यों जानलेवा है ठंड, क्या-क्या होती हैं दिक्कतें, पढ़ें यहां

ये ठंड के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं. इसलिए इनका ख्याल रखना...

livestock animal news
पशुपालन

Fodder Maize: पोल्ट्री और एनिमल फीड की ताकत बनेगी मक्का की ये वैराइटी, पढ़ें इसकी खासियत

अफ्रीकी लंबा मक्का एक हरा चारा फसल है जो अपने उच्च शुष्क...