नई दिल्ली. आमतौर पर गांवों में गाय-भैंस, बकरी और मुर्गियों को एक साथ पाला जाता है और अब इसी कार्य को करने के लिए केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा ने इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम (आईएफएस) तैयार कर लिया है. हालांकि बहुत से लोग इस बात को नहीं जानते हैं कि ऐसा करने से यानि बकरियों के साथ मुर्गियों को भी पाला जाए तो मुर्गियों को पालने की लागत आधी से भी कम हो जाती है. ऐसे में बकरी पालक सीआईआरजी के इस सिस्टम का इस्तमेाल करके और ज्यादा मुनाफा कमा सकते हैं.
जानकारी के लिए बता दें कि बकरियों की मेंगनी (गोट मेन्योर) का इस्तेमाल कर जिस चारे को उगाया जाता है वो पूरी तरह से अर्गेनिक माना जाता है. इसका फायदा ये है कि जब बकरियां इसे खाएंगी तो दूध भी ऑर्गनिक ही मिलेगा जबकि बकरे इसे खाएंगे तो उनके मीट में चारे वाले पेस्टी साइट का असर नहीं दिखाई देगा. इसका सबसे बड़ा फायदा ये है कि एक्सपोर्ट करने में कोई रुकावट नहीं आएगी और व्यापारियों को बड़ा मुनाफा भी हासिल होगा.
पशु पालकों को फायदा पहुंचाने की नीयत से केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान (सीआईआरजी), मथुरा इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम (आईएफएस) का के बारे में जानकारी मुहैया करा रहा है. जो लोग भी संस्थान में बकरी पालन की ट्रेनिंग के मकसद से आ रहे हैं उन्हें इसके बारे में बताया जा रहा है.
क्या है इंटीग्रेटेड फॉर्मिंग सिस्टम, वर्क कैसे करेगा
सीआईआरजी के साइंटिस्ट डॉ. मोहम्मद आरिफ का कहना है कि सबसे पहले तो आईएफएस सिस्ट्म के तहत एक ऐसा शेड बनाया जाता है. इस शेड में बकरी और मुर्गियां बराबर में साथ-साथ रखने की व्यवस्था की जाती है. दोनों के बीच गैप रहे इसके लिए एक लोहे की एक जाली लगाई जाती है. जब बकरियां अपने वक्त पर चरने के लिए चली जाती हैं तो जाली में लगे गेट को खोल दिया जाता है और फिर इसी रास्ते मुर्गियां बकरियों के स्थान पर आती हैं. जो चारा बकरियों से बच जाता है और लोहे के बने स्टॉल गिरा हुआ होता है मुर्गियां इन्हें बहुत ही शौक के साथ खा लेती हैं. जिससे मुर्गियों के लिए अलग से खाने की व्यवस्था नहीं करना पड़ता है. गौरतलब है कि ऐसे में जो फेंकने वाला चारा होता है, उसे मुर्गियां खा लेती हैं. इस तरह से जो मुर्गी दिनभर में 110 ग्राम या फिर 130 ग्राम तक दाना खाती है तो इस सिस्टम के चलते 30 से 40 ग्राम तक दाने की लागत कम खाती है और जिससे बचत होती है.
बकरी की मेंगनी से मुर्गियों के लिए उगाएं प्रोटीन
वहीं डॉ. आरिफ ने ये भी बताया कि बकरियों की मेंगनी का इस्तेमाल करके मुर्गियों के लिए प्रोटीन उगाया जा सकता है, जिसे अजोला कहा जाता है. इसमें बड़ी मात्रा में प्रोटीन होता है. अजोला को उगाने के पानी का एक छोटा सा तालाब जैसा बनाना होता है. रही बात साइज की तो आप मुर्गियों की संख्या के हिसाब से बना सकते हैं. जबकि गहराई बहुत कम रखनी होती है. इसमे थोड़ी सी मिट्टी डालने के साथ ही बकरियों की मेंगनी मिलाई जाती है. साइज के हिसाब से मिट्टी और मेंगनी का अनुपात भी अलग-अलग होगा.
एक बकरी पर पलती हैं 5 मुर्गियां
डॉ. आरिफ ने आईएफएस के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि इस सिस्टम के तहत आप एक बकरी पर 5 मुर्गी का पालन कर सकते हैं. कहा कि सीआईआरजी ने एक एकड़ के हिसाब से प्लान को तैयार किया है. उन्होंने बताया कि इसकी वजह से बकरियों के साथ मुर्गी पालने के साथ ही बकरियों की मेंगनी से कम्पोकस्ट भी बनाया जा सकता है. इस कम्पोपस्ट का इस्तेमाल आप बकरियों का चारा उगाने में कर सकते हैं. ऐसा करने से आपको एकदम ऑर्गनिक चारा मिलेगा. अजोला भी उगा सकते हैं.
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