नई दिल्ली. डेयरी फार्म को साफ-सुथरा रखने से पशुओं को बीमारियों से बचाया जा सकता है. एक्सपर्ट का कहना है कि डेयरी फार्म के फर्श, पानी के बर्तनों और नांदों को समय-समय पर रगड़कर साफ करना चाहिए. साथ-साथ सूरज की रोशनी पड़ने देना चाहिए. इससे डेयरी फार्म का प्राकृतिक रूप से डिसइंफेक्शन हो जाएगा. इसके साथ ही दीवारों, नांद और कुंडों की समय-समय पर सफेदी (व्हाइट वाशिंग) भी की जानी चाहिए. जब कोई महामारी फैलती है, तो विसंक्रमण (Disinfection) की ज्यादा जरूरत पड़ती है. फॉर्म के अंदर 1.5 मीटर की ऊंचाई तक दीवारों को, पानी के कुंडों के भीतरी हिस्से, नांदों, अन्य फिटिंग तथा पशुओं के संपर्क में आने वाले सभी उपकरणों को विसंक्रमित करना चाहिए.
सबसे पहले उपाय के तौर पर सभी तरह की गंदगी और आहार के वेस्ट को दूर करना चाहिए. गोबर, कूड़ा, आहार के वेस्ट को हटा देना चाहिए और उन्हें एकत्रित करके उनका ढेर बनाना चाहिए. ताकि उनके अंदर उत्पन्न गर्मी से रोगाणु (Germs) खत्म हो जाएं. फर्श, 1.5 मीटर की ऊंचाई तक की दीवारों, नांदों के भीतरी भागों तथा पानी के कुंडों आदि को अच्छी तरह रगड़ कर पानी से धो लेना चाहिए.
इस तरह बनाएं खास घोल
एंथ्रेक्स जैसी बीमारी का प्रकोप होने पर गोबर, कूड़े आदि को सबसे पहले, उसी जगह पर दवाओं का छिड़काव करके जगह को कीटाणुरहित किया जाना चाहिए. यदि फर्श मिट्टी का बना हो तो मिट्टी की 10 सेंमी ऊपरी परत को कूड़े के साथ हटा देना चाहिए. गंदगी को हटाने के बाद, उस जगह को रगड़ कर साफ करना चाहिए और 4 प्रतिशत धुलाई वाले सोडा के गर्म घोल यानी, 100 लीटर खौलते पानी में 4 किलोग्राम वाशिंग सोडा से धोना चाहिए. विसंक्रामक घोल को अच्छी तरह से छिड़काव या स्प्रे किया जाना चाहिए और 24 घंटे तक छोड़ देना जाना चाहिए. इसके बाद, पशुशाला को साफ पानी से धोने के बाद हवा और सूरज की रोशनी में सूखने के लिए छोड़ दिया जाना चाहिए.
डेयरी फार्म के आसपास भी इन बातों का रखें ख्याल
पानी के कुंडों, नादों आदि में सफेदी की जानी चाहिए. विसंक्रमण की प्रक्रिया में कीड़ों से होने वाले संक्रमण के सोर्स को खत्म करना शामिल है. पशुओं को गंदगी और जहरीली चीजों से बचाने के लिए जरूरी कदम उठाने चाहिए. डेयरी फार्म के परिसर को विसंक्रमित करने के लिए परिसर से खाद और अन्य गंदगी का तुरंत और उचित निपटान करना चाहिए. आहार और पानी के बर्तनों रोज रगड़ कर सफाई करना तथा सप्ताह में कम से कम एक बार उनके भीतरी हिस्से में व्हाइट वाशिंग करना चाहिए. गौशाला में तथा उसके आसपास की सभी खाइयों, कीचड़ वाले निचले हिस्सों तथा गड्ढ़ों को भरना चाहिए, जिससे उनमें पानी न रुके. गौशाला के चारों ओर गंदे पानी या ठहरे हुए पानी के हौजों (पूल) व तालाबों में बाड़ लगाना चाहिए ताकि पशु की पहुंच उन तक न हो.
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