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GADVSU: गाय-भैंस बेचने वाले दूध के नाम पर अब नहीं कर पाएंगे धोखाधड़ी, गडवासु की ये मशीन बचाएगी फ्रॉड से

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मिल्किंग मशीन और गडवासु के अधिकारी.

नई दिल्ली. गुरु अंगद देव पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, लुधियाना ने एक ऐसी मशीन तैयार कर ली है, जो डेयरी सेक्टर के लिए बहुत ही क्रांतिकारी (Revolutionary) साबित होने वाली है. इस मिल्किंग मशीन से दूध उत्पादन रिकॉर्डिंग की आटोमेटिक मोड पर होगी. मशीन की खासियत ये भी है कि इसमें रिकॉर्ड होने वाला डाटा सेकेंडों में एआई की मदद से क्लाउड में रिकॉर्ड किया जा सकेगा. जिसका इस्तेमाल जरूरत पड़ने पर किया जा सकता है. गडवासु ने इसका पेटेंट हासिल कर लिया गया है. वहीं कुलपति मशीन को लेकर टीम को बधाई दी है.

एनिमल बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट के साइंटिस्ट नीरज कश्यप ने बताया कि पश्चिमी देशों में बड़े फॉर्म में बड़े-बड़े फार्म होते हैं. वहां जानवरों की संख्या ज्यादा होती है. वहां पर एनिमल के आईडेंटिफिकेशन और एनिमल की मिलकिंग के रिकॉर्ड के लिए मशीन की मदद ली जाती है. उनको इससे यह पता चल जाता है कि किस एनिमल की कितनी प्रोडक्टिविटी है. इससे एनिमल को बेचते समय उसका सही दाम किसानों को मिलता है. उन्होंने बताया कि इससे जानवरों का अनुवांशिक सुधार भी हो जाता है. भारत में अधिकतर पशुपालकों के पास ज्यादा जानवर नहीं होते हैं. इसलिए उनके लिए पश्चिमी देशों में इस्तेमाल की जाने वाली मशीन लेना महंगा सौदा है.

रिकॉर्डिंग का नहीं है कोई सिस्टम
उन्होंने बताया कि यहां एक पोर्टेबल मिल्किंग मशीन का इस्तेमाल होता है. जबकि वो भी ज्यादा चलन में नहीं है. ज्यादातर फार्मर हाथ से ही मिलकिंग करते हैं. इंडिया में वह सिस्टम ही डेवलप नहीं हो सका जिससे फार्मर रिकॉर्डिंग करें. उनका पशु कितना दूध दे रहा है. अगर किसी किसान को अपना जानवर बेचना हो, वो ये क्लेम करे कि उसका जानवर एक दिन में 40 लीटर दूध देता है और जब खरीदार चेक करने आए तो किसी वजह से दूध कम मिले. ऐसे में किसान को अपने मवेशी का सही दाम नहीं मिल पाता है. जबकि इस मशीन से बिल्कुल सही जानकारी सामने आ जाएगी.

इस तरह होगा इसका इस्तेमाल
ये एक ऐसी मशीन है जो कंप्यूटर बेस्ड है. इसे स्टोरेज के​ लिए क्लाउड से कनेक्ट किया गया है. क्लाउड में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस भी है. ये मशीन रियल टाइम में मिलकिंग की प्रक्रिया को पूरी कर सकती है. यह जानवरों की सारी चीजों को स्कैन करती है. ये भी पता चल सकता है कि किस डेट में जानवरों ने कितना दूध दिया है. मशीन पर एक बाल्टी रखना है और मिल्किंग शुरू करना है. हर एक धार के बीच में आने वाले गैप और उसके बीच का रिदम रिकॉर्ड होगा और अगर कोई ऊपर से दूध मिलाने की कोशिश करेगा तो मशीन इसे पकड़ लेगी.

कुलपति ने इनोवेशन की तरीफ की
डॉ. नीरज ने बताया कि मिलकिंग कंपटीशन में भी ये बढ़िया काम करेगी और सही रिकॉर्ड को सामने रख देगी. वहीं यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉ. जेपीएस गिल ने डॉ. वाईपीएस मलिक और डॉ. इंद्रजीत सिंह के तकनीकी मार्गदर्शन में इस उपलब्धि के लिए टेक्नोलॉजी के प्रमोटर डॉ. नीरज कश्यप को बधाई दी. डॉ. गिल ने कहा कि यह हमारे लिए गर्व का क्षण है कि हम तकनीकी नवाचार के मामले में सबसे आगे हैं, क्योंकि हमने डेयरी क्षेत्र में प्रामाणिक उत्पादन आंकड़ों की कमी की समस्या का लंबे समय के बाद ही सही समाधान निकाल लिया है, जो आनुवंशिक सुधार कार्यक्रम के राष्ट्रीय स्तर पर कार्यान्वयन में एक बड़ी बाधा रही है.

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