नई दिल्ली. दूध उत्पादन करने वाले पशुओं में प्रजनन कार्यक्रम की सफलता के लिए पशु पालक को मादा पशु में पाए जाने वाले मदचक्र estrous cycle का जानना बहुत जरूरी है. गाय या भैंस सामान्य तौर पर हर 18 से 21 दिन के बाद गर्मी में आती है. जब तक कि वह गर्भधारण न कर ले. बछिया में यह चक्र 16 से 18 माह की उम्र पूरी होने के बाद आता है. इस वक्त बछिया के शरीर का बजन लगभग 250 किलो होता है. गाय व भैंसों में ब्याने के लगभग डेढ़ माह के बाद यह चक्र शुरू हो जाता है. मद चक्र शरीर में कुछ खास हार्मोन्स के बहने से होता है.
एनिमल एक्सपर्ट कहते हैं कि गाय व भैंसों में मदकाल यानि गर्मी की अवधि लगभग 20 से 36 घंटे तक रहती है. जिसे 3 हिस्सों में बांटा जा सकता है. भागों में बांट सकते हैं. (1) मद की शुरुआती कंडीशन (2) मद की बीच की अवस्था (3) मद की आखिरी कंडीशन. तीनों ही स्थिति में हम पशुओं में बाहर से कुछ विशेष लक्षणों को देख कर पता लगा सकते हैं कि गाय या भैंस हीट में है कि नहीं.
हीट की शुरुआती कंडीशन
(1) पशु की भूख में कमी आना शुरू हो जाती है.
(2) दूध उत्पादन में कमी हो जाती है.
(3) पशु रम्भाने (बोलना) लगते हैं और बेचैन रहने लगते हैं.
(4) वजाइना से पतले श्लैष्मिक पदार्थ निकलने लगता है.
(5) दूसरे पशुओं से अलग रहना शुरू कर देते हैं.
(6) पशु बार-बार अपनी पूंछ उठाना शुरू कर देते हैं.
(7) वजाइना द्वार (भग) का सूज जाता है. पशु बार-बार पेशाब करने लगते हैं.
(8) शरीर के तापमान में मामूली सी इजाफा हो जाता है.
हीट की बीच की कंडीशन
गर्मी की यह अवस्था बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. क्योंकि कृत्रिम गर्भाधान के लिए यही अवस्था सबसे उपयुक्त मानी जाती है. इसकी अवधि लगभग 10 घंटे तक रहती है. इस अवस्था में पशु काफी उत्तेजित दिखता है तथा वह अन्य पशुओं में दिलचस्पी दिखाता है. इस अवस्था को ऐसे पहचानें.
(1) वजाइना द्वार (भग) से निकलने वाले श्लैष्मिक पदार्थ’ का गाढ़ा होना जिससे वह बिना टूटे नीचे तक लटकता हुआ दिखायी देता है.
(2) पशु जोर-जोर से रम्भाने (बोलने) लगता है.
(3) वजाइना का शुरुआाती हिस्से की सूजन और श्लैष्मिक झिल्ली की लाली में वृद्धि हो जाती है.
(4) शरीर का तापमान बढ़ जाता है.
(5) दूध में कमी तथा पीठ पर टेढ़ापन दिखायी देता है.
(6) पशु अपने ऊपर दूसरे पशुओं को चढ़ने देता है अथवा वह खुद दूसरे पशुओं पर चढ़ने लगता है.
हीट की आखिरी कंडीशन
(1) पशु की भूख लगभग सामान्य हो जाती है.
(2) दूध की कमी भी कम हो जाती है.
(3) पशु का रम्भाना कम हो जाता है.
(4) वजाइना की शुरुआती हिस्से की की सूजन व श्लैष्मिक झिल्ली की लाली में कमी आ जाती है.
(5) श्लैष्मा का निकलना या तो बन्द या फिर बहुत कम हो जाता है. यह बहुत गाढ़ा व कुछ अपारदर्शी होने लगता है.
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