नई दिल्ली. डेयरी फार्मिंग का काम किसी को भी मालामाल बना सकता है. ये काम बेहतरीन है और हर दिन कमाई कराता है. इसलिए सरकार किसानों को पशुपालन करने के लिए लोन और सब्सिडी आदि भी देती है. अब पशुपालन के काम में कई लोग अच्छा काम भी कर रहे हैं. जिस तरह से मध्य प्रदेश के छतरपुर में महिला ने किया है. यहां महिला समूह लोन लेकर आत्मनिर्भर बन गई है. न सिर्फ कमाई कर रही है, बल्कि पूरे परिवार की जिम्मेदारी को भी अपने कांधो पर उठा लिया है. इससे जहां दूध उत्पादन बढ़ा है तो वहीं उनकी आजीविका में भी सुधार हुआ है.
सिरोज गांव की रानी यादव अब आत्मनिर्भर बन गई हैं. पहले उनके पति रामनरेश यादव फोटोग्राफी और दूध बेचने का काम करते थे. परिवार को आर्थिक हालत कमजोर थी। घर कच्चा था और खेती के लिए जमीन भी कम थी. रानी हमेशा परिवार की स्थिति को लेकर चिंतित रहती थीं. एक दिन गांव की महिलाओं से बातचीत में उन्हें आजीविका मिशन के तहत समूह बनाने की जानकारी मिली. इसके बाद रानी समूह से जुड़ गई। उन्होंने सीआरपी, बैंक सखी और सिलाई का प्रशिक्षण लिया. इससे उन्हें नई स्किल्स मिली और आत्मविश्वास भी बढ़ा.
हर महीने 15 हजार रुपए की कमाई
जानकारी के मुताबिक रानी ने पति के दूध व्यवसाय में हाथ बंटाना शुरू किया. उन्होंने बिक्री बढ़ाने के लिए नए तरीके अपनाए. गांव के बाहर भी ग्राहक तलाशे. समूह से जुड़ने के बाद रानी ने आरएफ से 1000 रुपए, सीआईएफ से 10000 रुपए और बैंक लिंकेज से 3 लाख रुपए का कर्ज लिया. इस पैसे से उन्होंने दूध का व्यवसाय बढ़ाया. रानी ने खेती में भी बदलाव किए. नई तकनीकें अपनाई और फसल उत्पादन भी बढ़ाया. अब वह हर महीने 10 से 15 हजार रुपए कमा रही हैं. उनका परिवार अब अच्छे से चल रहा है.
खुद का काम शुरू किया
पना विकासखंड के तहत अहिरगुवां गांव की महिलाएं, ग्रामीण आजीविका मिशन अंतर्गत स्वसहायता समूह से जुड़कर विभिन्न गतिविधियों के जरिए आर्थिक एवं सामाजिक रूप से सशक्त बनी हैं. गांव की 12 महिलाओं के द्वारा वैष्णव माता स्वसहायता समूह के माध्यम से पॉलीहाउस, किराना दुकान, बैंक कियोस्क, मसाला चक्की एवं सब्जी उत्पादन जैसी आजीविका गतिविधियों का संचालन किया जा रहा है. समूह मसाले का व्यवसाय शुरू किया. अध्यक्ष कृष्णा बर्मन ने बताया कि 2016 में परिवार की आय में बढ़ोत्तरी के लिए किराना दुकान का संचालन प्रारंभ किया गया था.
पॉलीहाउस में कर रहीं पपीता का उत्पादन
इसी क्रम में आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त कर 2024 में छोटे स्तर पर पॉलीहाउस स्थापित कर पपीता का उत्पादन भी शुरू किया. समूह में शामिल अन्य महिलाओं शिखा, गंगा, मोनाभ, संध्या, विद्या ने बताया कि, समूह से जुड़कर सभी महिलाएं सशक्त बनने के साथ ही परिवार का भरण पोषण भी बेहतर रूपसे करने में सक्षम हुई हैं. कम शिक्षित होने के बाद भी महिलाएं 8 से 10 हजार रुपए प्रतिमाह बचत कर रही हैं.
Leave a comment