नई दिल्ली. हलारी गधे की नस्ल को बचाने के लिए सरकार काम कर रही है. इसके लिए नेशनल ब्यूगरो आफ एनिमल जेटेटिक रिसोर्सेज यानी एनबीएजीआर हरियाणा पूरी कोशिश में लगा है. देश में हलारी गधों की संख्या इतनी कम है कि इस दूध की उपलब्धता बेहद कम और मुश्किल भी है. इसका इस्तेमाल दवा और कॉस्मेटिक आइटम बनाने में किया जाता है. हरियाणा के अश्व अनुसंधान केंद्र ने गधी के दूध को खाने-पीने में इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी है. इसके लिए संस्थान ने भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को एक पत्र भी लिखा है. संस्थान का मानना है की दूध का इस्तेमाल होने से गधों का महत्व बढ़ जाएगा और उन्हें बचाया भी जा सकेगा.
हलारी गधी का दूध कॉस्मेटिक आइटम बनाने में किया जाता है. हरियाणा के अश्व अनुसंधान केंद्र ने गधी के दूध को खाने-पीने में इस्तेमाल करने की अनुमति मांगी है. इसके लिए संस्थान ने भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को एक पत्र भी लिखा है. इस प्रजाति के गधों की तीन नस्ल पंजीकृत हैं, जिसमें हलारी सबसे प्रमुख नस्ल मानी जाती है. भारत सरकार के केंद्रीय पशुपालन विभाग की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में हलारी नस्ल के महज 439 गधे ही बचे हैं. अब सरकार इस प्रजाति को बढ़ावा देने के लिए काम कर रही है. अश्व अनुसंधान केन्द्र, हिसार (हरियाणा) के निदेशक टीके भट्टाचार्य का कहना है कि संस्थान ने पहले भी भारतीय खाद्य संरक्षा एवं मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) को लाइसेंस देने के लिए पत्र लिखा था. अब एक बार फिर से पत्र भेजा है. अनुमति मिलते ही हमारे संस्थान में गधी के दूध पर काम शुरू हो जाएगा.
बेहद महंगा है हलारी गधी का दूध
विशेषज्ञों की मानें तो वैसे तो सभी नस्ल की गधी का दूध अन्य जानवरों की अपेक्षा काफी महंगा होता है लेकिन हलारी गधी का दूध दूसरी नस्ल की गधी के मुकाबले कई गुना ज्यादा महंगा होता है. गधी का दूध का प्रयोग दवाईयों के साथ-साथ कॉस्मेटिक आइटम बनाने के काम आता है. हलारी गधी का दूध 15 सौ से दो हजार रुपये लीटर तक बिक जाता है.एक दिन में अच्छी हैल्थ की हलारी गधी 800 ग्राम से लेकर एक लीटर तक दूध देती है. विशेषज्ञों के अनुसार हलारी गधी के दूध के रेट तय करने से ज्यादा मुश्किल काम जरूरत के वक्त हलारी का पालन करने वाले मालधारी समुदाय को तलाश करना होता है. सरकारी आंकड़ों के मुताबिक देश में हलारी गधों की संख्या करीब 440 ही बची है.
अश्व अनुसंधान केंद्र ने एफएसएसएआई से मांगी अनुमति
हरियाण के अश्व अनुसंधान केंद्र के डायरेक्टर टीके भट्टाचार्य के अनुसार देश में बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें गाय-भैंस और भेड़-बकरी के दूध से एलर्जी होती है. लेकिन गधी का दूध गाय-भैंस के दूध से बहुत ही बेहतर है. इतना ही नहीं छोटे बच्चों के लिए तो यह मां के दूध जैसा है. गधी के दूध में वसा की मात्रा कम होती है. इसमें वसा की मात्रा सिर्फ एक फीसद तक ही होती है. जबकि गाय-भैंस और मां के दूध में वसा की मात्रा तीन से छह फीसदी तक ही होती है. अगर दूध के उत्पादन दिनभर में एक गधी अधिकत्तम डेढ़ लीटर तक दूध देती है.
जानिए गधों की वो तीन नस्ल
नेशनल ब्यूगरो आफ एनिमल जेटेटिक रिसोर्सेज यानी एनबीएजीआर, करनाल के मुताबिक भारत में प्रमुख तौर पर गधों की तीन नस्ल हैं, जिन्हें रजिस्टर्ड किया गया है. इसमे गुजरात की दो कच्छी और हलारी है. वहीं हिमाचल की स्पीतती नस्ल. बड़ी तादाद में ग्रे रंग के ये गधे यूपी में भी पाए जाते हैं. लेकिन यह नस्ल पंजीकृत नहीं है.अच्छी नस्लो के गधों के मामले में गुजरात अव्वल है. विशेषज्ञों के अनुसार दूध की डिमांड के चलते अब गधी की मांग बहुत होने लगी है.
ऐसे करें हलारी गधों की पहचान
आम तौर पर लोग गधों की नस्ल के बारे में नहीं जानते, मगर इनकी भी कई प्रमुख नस्लें होती हैं. अगर हम हलारी गधे के बारे में बात करें तो आमतौर पर सफेद रंग के होते हैं. मुंह और नाक के पास की जगह काली होती है. इनके खुर भी काले होते हैं. माथा ज्यादातर उभरा होता है. हलारी गधे का शरीर मजबूत और दूसरे गधों के मुकाबले आकार में बड़ा होता है. हलारी गधे की औसत ऊंचाई 108 सेमी और गधी की 107 सेमी होती है. गधे की औसत लंबाई 117 सेमी और गधी 115 सेमी की होती है. एक दिन में यह गधे 35 से 40 किमी तक का सफर तय कर लेते हैं.
सात साल में कैसे घट गए सैकड़ों गधे
मार्च, 2022 में गुजरात की एनजीओ सहजीवन ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था. एनजीओ सहजीवन पशुओं की ब्रीड को बचाने के लिए धरातल पर काम करती है. इस ब्रीड में हलारी गधा भी शामिल है. इसी कार्यक्रम में केंद्रीय मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्री श्री पुरुषोत्तम रूपाला भी शामिल हुए थे. कार्यक्रम के दौरान मंत्री ने बताया था कि वर्ष 2015 में हलारी गधों की संख्या 1200 दर्ज की गई थी. लेकिन साल 2020 में भारत सरकार के केंद्रीय पशुपालन विभाग की ओर से जारी की गई रिपोर्ट में बताया गया है कि देश में हलारी नस्ल के महज 439 गधे ही बचे हैं. साल 2012 की पशुगणना के मुकाबले 2019 की पशुगणना में गधों की संख्या बहुत ही कम रह गई है. 2012 में 3.20 लाख गधे थे. जबकि 2019 में इनकी संख्या सिर्फ 1.20 लाख ही बची है.
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