नई दिल्ली. देश के 46 शहरों में एलसीडी यानी लंपी स्किन डिजीज का खतरा पशुओं पर मंडरा रहा है. दरअसल, देश की 9 राज्य के 46 शहर में इस बीमारी का खतरा है. पशुओं के लिए काम करने वाली निविदा संस्था के मुताबिक 46 शहरों में जून के महीने में इस रोग का प्रसार हो सकता है. इसलिए जरूरी सावधानियां बरतनी चाहिए. ताकि लंपी रोग से पशुओं को बचाया जा सके. बता दें कि बता दें कि एलसीडी बीमारी आंध्र प्रदेश के 7 शहर, असम के 10, बिहार के एक, गोवा के एक, गुजरात के छह, कर्नाटक के सात, केरल के पांच, नागालैंड के दो, सिक्किम के चार और त्रिपुरा के तीन शहर इसकी चपेट में सकते हैं.
बीमारी की शुरुआत में प्रभावित पशुओं को बुखार आता है. इसके दो से तीन दिन बाद पशु के शरीर पर 2 से 5 सेंटीमीटर व्यास की गोलाकार गांठे बन जाती हैं. बीमारी की तीव्रता अधिक होने की वजह से गांठे फुटकर त्वचा पर जख्म भी बन जाती हैं. तथा इसे मवाद आने लगता है. या गाठें मुंह गले के अंदर और सांस लेनी वाली नलियां भी बन जाती हैं. दुधारू पशु का दूध उत्पादन घट जाता है. गर्भधारण किए हुए पशुओं का गर्भपात हो जाता है. बीमारी से पीड़ित अधिकतर पशु दो से तीन हफ्ते में ठीक हो जाते हैं. बीमारी की अधिक तीव्रता वाले पशु जिसमें श्वसन तंत्र प्रभावित हो जाता है उनकी मृत्यु हो सकती है. आंध्र प्रदेश में श्रीकाकुलम मिज़ियानगरम, विशाखापत्तनम, पूर्वी गोदावर, पश्चिम गोदावरी, किशना, गुंटूर, कुरनूल, प्रकाशम, अनंतपुर, वाई.सेरी पोटी, श्रीरामुलु और चित्तूर को हाई रिस्क डिस्ट्रिक घोषित किया गया है. वहीं असम में कछार, धेमाजी, गोलाघाट, हैलाकांडी करीमगंज, कोकराझार, लखीमपुर, दीमा हसाओ, सोनितपुर और कामरूप महानगर में अलर्ट जारी किया गया है.
क्या है बचाओ नियंत्रण का तरीका
बीमारी से ग्रसित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए. जिन गांवों में बीमारी फैली हुई है, वहां बीमार पशुओं को स्वस्थ पशुओं से के संपर्क में आने से बचना चाहिए. यह बीमारी मच्छर, मक्खियों चिड़िया द्वारा फैलती है. उनके आवास में साइपिमैथिीन, डेल्टामैविन, अवमतिाज़ दवाओं दो मिली प्रति लीटर में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए. बीमारी वाले क्षेत्र से गैर बीमारी वाले क्षेत्र में पशुओं का आवागमन बंद कर देना चाहिए. बीमारी वाले क्षेत्र से गैर बीमारी वाले क्षेत्र में पशुओं को नहीं ले जाना चाहिए. बीमारी फैलने की अवस्था में पशुओं को पशु पशु मेला इत्यादि में नहीं ले जाना चाहिए.
बायो सिक्योरिटी को जरूर अपनाएं
पशुओं के प्रबंध में प्रयुक्त वाहन एवं उपकरण के साफ-सफाई करनी चाहिए. संक्रमित पशुओं की देखभाल में लगे व्यक्तियों को जैव सुरक्षा उपायों जैसे साबुन, सैनेटाइजेशन करना चाहिए. पशुओं के बाड़े में किसी भी अनावश्यक बाहरी व्यक्ति एवं वाहन के प्रवेश पर रोक लगा देनी चाहिए. पशुशाला में नियमित चूना पाउडर का छिड़काव करना चाहिए. पशु आवास में गोबर मूत्र अपनी गंदगी आदि को गत्रित नहीं होने देना चाहिए. पशु के दूध का उपयोग उबालकर करना चाहिए रोगी पशु की संतुलित आहार हरा चारा दलिया गुण आदि खिलाए जिससे कि पशु की रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत हो.
इस तरह करें उपचार
उपचार की बात की जाए तो यह एक संक्रामक रोग है, इसलिए इसकी कोई सटीक दवा नहीं है. सर्वप्रथम रोगी पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए. पशु चिकित्सा की सलाह लेनी चाहिए. इससे बचाव के लिए एंटीबायोटिक दवा और बुखार एवं सूजन के लिए एंटीपायरेटिक एंटी इंफ्लामेटरी एवं मल्टीविटामिन दवाएं 4 से 5 दिन तक लगवानी चाहिए. पशु की भूख बढ़ाने के लिए हिमालयन बतीसा पाउडर रुचामेक्स पाउडर आदि हर्बल दावों का प्रयोग किया जाना चाहिए. यदि त्वचा पर जख्म बन जाए तो जख्मो पर नियमित रूप से बीटाडीन एवं एंटीसेप्टिक दवा का स्प्रे करना चाहिए. जख्मों के उपचार के लिए कुछ हर्बल दवाएं टॉपिक्योर, स्कैवोन, चार्मिल, हाइमेक्स आदि बाजार में मिल जाती है.
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