नई दिल्ली. देसी मांगुर मछली पालने से आपको अच्छी कमाई हो सकती है. मांगुर मछली की कीमत बाजार में 350 से 600 रुपये प्रति किलो तक होती है. वहीं मांगुर मछली पालने से आप हर महीने 50 से 60 हजार रुपये आसानी से कमा सकते हैं. फिश एक्सपर्ट कहते हैं कि मांगुर मछली के पालन में दाना-पानी और रखरखाव के लिए थोड़ा खर्च आता है. एक हेक्टेयर तालाब में तीन से चार क्विंटल मांगुर मछलियां का उत्पादन आसानी से किया जा सकता है. जबकि मांगुर मछलियों को आसानी से छोटे तालाब में भी पाला जा सकता है जिससे आपको अच्छी कमाई हो सकती है.
मांगुर मछली की फार्मिंग में कुछ बातों का ख्याल रखना पड़ता है. मसलन, तालाब में पानी के प्रवेश और निकास की व्यवस्था का ध्यान देना जरूरी होता है. मछली पालन के लिए तालाब की गहराई और बांध की ऊंचाई का ध्यान रखना होता है. साथ ही मछली की ग्रोथ अगर एक किलो से ज्यादा की है तब आपको ज्यादा दाम मिलेगा. अगर आप भी मांगुर मछली पालन चाहते हैं तो इस आर्टिकल को पूरा पढ़ें, यहां आपको कई अहम जानकारी मिलने वाली है.
इस तरह के तालाब में पालें देसी मांगुर
फिश एक्सपर्ट कहते हैं कि देसी मांगुर की कोलकाता जैसे बाजारों में खासी डिमांड रहती है. अगर बायोफ्लॉक में देसी मांगुर की पालन किया जाए तो ज्यादा अच्छा होता है.
अगर छोटे तालाब हैं तो उसमें भी देसी मांगुर को आसानी से पाला जा सकता है जिससे ज्यादा कमाई की जा सकती है. खासतौर पर इस तरह के तालाब जहां पर जालीय पौधे आ जाते हैं, वो जगह देसी मांगुर की फार्मिंग के लिए बेहतर होती हैं.
देसी मांगुर की फार्मिंग बड़े तालाब में की जा जाए तो इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि तालाब पूरी तरह से सुखा दिया जाए. ताकि आपको हार्वेस्टिंग करने में कोई दिक्कत न आए.
अगर बायोफ्लाक या फिर छोटा तालाब है तो इसमें आपके पास कंट्रोल होगा और आप आसानी से इसकी हार्वेस्टिंग कर सकते हैं.
देसी मांगुर के फायदे की बात करें तो इसमें प्रोटीन ज्यादा होता है और फैट कम होता है. इसके अंदर ओमेगा 3 फैटी एसिड होता है, जो कैंसर से बचाव करता है.
इस वजह से इसकी डिमांड मार्केट में ज्यादा रहती है. मांगुर मछली मौजूद प्रोटीन मस्तिष्क की कोशिकाओं के लिए भी बेहतर होती है. वहीं दिल की बीमारी भी कंट्रोल में रहती है.
देसी मांगुर मछली का पालन कम जगह में भी किया जा सकता है और इसमें कम खर्च आता है. इसलिए इसमें फायदा ज्याद होता है.
आपको बता दें कि मांगुर मछली उथले, दलदली, कम पाननी और प्रतिकूल पर्यावरण में भी बढ़ते रहते हैं. इन्हें काम ऑक्सीजन में भी आसानी से पाला जा सकता है.
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