नई दिल्ली. भारत में हमेशा से ही खेतीबाड़ी के साथ पशुपालन सहायक व्यवसाय के रूप में किया जाता रहा है और ये पुराने समय से ही ग्रामीणों और किसानों की आजीविका का मजबूत सोर्स रहा है. ग्रामीण इलाकों में लोगों द्वारा पशुओं पालन खेतीबाड़ी से ही जोड़कर देखा जाता रहा है. इसके बाद धीरे-धीरे लोगों द्वारा पशुओं के सहयोग से खेतीबाड़ी करना शुरू किया गया. इसलिए यह कहा जाता है कि पशुपालन भारतीय कृषि की रीढ़ रहा है. राजमाता विजयाराजे सिंधिया कृषि विश्वविद्यालय, कृषि विज्ञान केन्द्र, मुरैना के सत्येन्द्र पाल सिंह कहते हैं कि मशीनीकरण के दौर में खेतीबाड़ी में पशुओं का प्रयोग भले ही खत्म हो गया है, लेकिन बावजूद इसके पशुपालन का महत्व कम नहीं हुआ है. पशुओं का इस्तेमाल डेयरी व्यवसाय के लिए हो रहा है.
उनका कहना है कि भारतीय उपमहाद्वीप में पाले जाने वाले पशुओं की नस्लों पर नजर डाली जाये तो इससे साफ पता चलता कि यहां पाली जाने वाले पशुओं- गाय, भैंस, भेड़, बकरी आदि की नस्लों को एक क्षेत्र विशेष की जलवायु के मुताबिक ही पालन को प्राथमिका दी जाती थी. क्योंकि इससे क्षेत्र विशेष की जलवायु के अनुकूल विकसित नस्लों के पालने में जोखिम न के बराबर होता है. आज भी अधिकांश क्षेत्रों में वहां की अनुकूलता के अनुसार ही पशुओं की नस्लों का पालन किया जाता है. इससे प्रोडक्शन भी बेहतर मिलता है.
उत्पादन पर पड़ रहा है असर
उन्होंने बताया कि बदलते जलवायु परिवर्तन को देखते हुये पशुपालन के समक्ष कई चुनौतियां अभरकर सामने आ रहीं है. जलवायु परिवर्तन के नुकसान आसानी से देखे जा सकते हैं. इनका असर खेतीबाड़ी के साथ पशुपालन पर पड़ने लगा है. इससे दुधारू पशुओं का दुग्ध उत्पादन प्रभावित होने से लेकर उनके विकास, प्रजनन और पशु रोगों पर असर पड़ रहा है. आने वाले समय में यदि यही रुख जारी रहा तो जलवायु परिवर्तन का खतरा पशुपालन के सामने गंभीर चुनौती बनकर उभरेगा.
जलवायु परिवर्तन से हो रही हैं दिक्कतें
आज देश के कई भागों में कहीं सूखा तो कहीं बाढ़ की अलग-अलग तस्वीर देखने को मिलती है. इतना ही नहीं कम होती सर्दी, घटते बरसात के दिन, बढ़ता तापमान यह सब जलवायु परिवर्तन के कारण ही हो रहा है. इस सब का प्रभाव पशुपालन पर आसानी से देखा जा सकता है. यदि अभी से इस दिशा में प्रयास नहीं किये गये तो आने वाले वर्षों में इसके घातक परिणाम भी सामने आ सकते हैं.
पशुधन की संख्या में आ रहा बदलाव
जलवायु परिवर्तन के खतरे से धीरे-धीरे ही सही पशुपालकों के सामने कई समस्याएं उभरकर सामने आना शुरू हो चुकी हैं. यह जलवायु परिवर्तन का ही असर है कि पशुधन की संख्या में कमी आ रही है. अगर एक पुराने आंकड़े पर गौर किया जाए तो वर्ष 2007 और 2012 की पशु गणना की तुलना करें तो आसानी से देखा जा सकता है कि पशुधन की संख्या में गिरावट आ रही है. सत्येन्द्र पाल सिंह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन को रोका नहीं गया तो आने वाले समय में औ दिक्कतें हो सकती हैं.
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