नई दिल्ली. मछली पालन में अक्सर तालाब का सही आंकलन करने में मछली पालकों से गलती होती है. उत्तर प्रदेश मछली पालन विभाग (Uttar Pradesh Fisheries Department) के एक्सपर्ट का कहना है कि तालाब में मछली का बीज डालने से पहले इस बात का अंदाजा लगा लेना चाहिए कि तालाब में कितनी जगह में पानी है. इसके बाद ही तालाब में मछली डालनी चाहिए. एक्सपर्ट के मुताबिक मछली पालन में जब किसान भाई तालाब के एरिया के मुताबिक बीज डालते हैं, जैसे एक एकड़ में 4000 से 5000 बीज तक तो फिर भी समय पर मछलियों की ग्रोथ नहीं हो पाती है.
यही बहुत बड़ा सवाल है कि आखिर मछली बीज डालने के बाद भी क्यों ग्रोथ नहीं हुई और इसी सवाल की वजह से ज्यादातर किसान फंस जाते हैं. अक्सर मछली पालक ये समझ ही नहीं पाते हैं कि आखिर मछलियों की ग्रोथ सही क्यों नहीं हो रही है. एक्सपर्ट ने लाइव स्टॉक एनिमल न्यूज (Livestock Animal News) को इसी की जानकारी दी है, जो आापके लिए बेहद ही अहम है.
क्या गलती कर जाते हैं मछली पालक
दरअसल, बहुत से तालाब का वाटर एरिया यानी पानी फैलने की वास्तविक जगह पूरी एक एकड़ नहीं होती है.
कई बार तालाब का किनारा ऊंचा-नीचा होने से गहराई कम-ज्यादा होने से या गर्मी के मौसम में पानी सूख जाने से तालाब में केवल 50 फीसद या अधिकतम 70 फीसद ही हिस्सा पानी से भरा होता है.
यहां गलती हो जाती है कि मछली पालक पूरे एक एकड़ तालाब को मानकर बीज डालते हैं, जबकि हकीकत में मछलियों को जीने और बढ़ने के लिए केवल 50 या 70 फीसद तालाब में पानी मिल पाता है.
ऐसे में मछलियों पर दबाव बढ़ जाता है. क्योंकि उन्हें कम जगह में रहना पड़ता है. खाने की कमी भी महसूस होती है. ऑक्सीजन की भी दिक्कत आने लगती है.
इसका नतीजा ये होता है कि मछलियों की ग्रोथ रुक जाती है. बीमारी फैलने का खतरा बढ़ जाता है और आखिरी में उम्मीद के मुताबिक उत्पादन भी नहीं निकल पाता है.
यही कारण है कि तालाब के असली वाटर एरिया का सही आंकलन करना और उसी के हिसाब से बीज डालना बहुत जरूरी है.
निष्कर्ष
नहीं तो मेहनत और निवेश दोनों का सही फायदा नहीं मिल पाएगा. इसलिए हमेशा बीज डालने से पहले तालाब का असली वाटर एरिया क्या है इसका पता लगा लें.
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